वैज्ञानिकों ने बनाई जेनेटिकली मोडिफाइड गाय, स्किन पर काले की जगह विकसित किए ग्रे चकत्ते

वैज्ञानिकों ने जानवरों को जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए जीन एडिटिंग का तरीका चुना है जिसका प्रयोग गायों पर किया गया है और वैज्ञानिकों को इसमें कामयाबी भी मिली है। आमतौर पर गायों के शरीर पर काले चक्कते दिखते हैं लेकिन वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग तकनीक की मदद से काले चक्क्तों का रंग ग्रे कर दिया है। यह प्रयोग न्यूजीलैंड के रुआकुरा रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने किया है।

ग्रे रंग के चकतों से नुकसान कम होगा


वैज्ञानिकों का दावा है कि जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ने पर तापमान बढ़ेगा। ऐसे में गायों के शरीर पर यह ग्रे रंग गर्माहट को कम अवशोषित करेगा और उन्हें नुकसान कम पहुंचेगा। दरअसल, वैज्ञानिकों का मानना है कि काला रंग सूर्य की रोशनी से निकली गर्माहट को अधिक अवशोषित करता है। जब सूर्य की किरणें जानवरों पर पड़ती हैं तो काले चकत्ते वाला हिस्सा इन्हें अधिक अवशोषित करता है और ये हीट स्ट्रेस का कारण बनती हैं। हीट स्ट्रेस का बुरा असर जानवरों में दूध की मात्रा और बछड़ों को पैदा करने की क्षमता पर पड़ता है।

रिसर्च कहती है कि गर्मियों के महीने में डेयरी फार्म के जानवर 25 से 65 डिग्री फारेनहाइट तापमान तक गर्मी सहन कर लेते हैं। लेकिन जब तापमान 80 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंच जाता है, तो हीट स्ट्रेस बढ़ जाता है। नतीजा, ये चारा खाना कम कर देते हैं। इसके कारण दूध का उत्पादन घट जाता है। हीट स्ट्रेस के कारण जानवरों की फर्टिलिटी पर भी बुरा असर पड़ता है।

ऐसे में जीन एडिटिंग की मदद से डीएनए में बदलाव किया जाता है। अगर आसान भाषा में इसको समझें तो भ्रूण के जीन का डिफेक्टेड, गड़बड़ या गैरजरूरी हिस्सा हटा दिया जाता है ताकि अगली पीढ़ी में इसका गलत असर न दिखे। इस तकनीक की मदद से आनुवांशिक रोगों में सुधार की उम्मीद बढ़ जाती है।

ऐसे तैयार हुई जेनेटिकली मोडिफाइड गाय

वैज्ञानिकों ने लैब में बछड़े के 2 भ्रूण तैयार किए। जीन एडिटिंग के जरिए भ्रूण के जीन का वो हिस्सा हटा दिया, जो काले रंग के चकत्ते के लिए जिम्मेदार है। फिर इस भ्रूण को गाय में ट्रांसफर कर दिया। गाय ने दो बछड़ों को जन्म दिया। 4 महीने के बाद दो में से एक बछड़े की मौत हो गई। एक बछड़े के शरीर पर ग्रे रंग के चकत्ते थे।