बेंगलूरू। कर्नाटक के राजस्व विभाग ने एक दस्तावेज में बताया है कि पिछले 15 महीनों में कर्नाटक में 1,182 किसानों ने आत्महत्या की है। राजस्व विभाग ने इन आत्महत्याओं के लिए गंभीर सूखा, फसल का नुकसान और भारी कर्ज को मुख्य कारण बताया है।
कर्नाटक में किसानों की आत्महत्या के सबसे ज़्यादा मामले बेलगावी, हावेरी और धारवाड़ के तीन ज़िलों में सामने आए, जहाँ क्रमशः 122, 120 और 101 ऐसे मामले सामने आए। इसी अवधि के दौरान चिकमंगलूर में 89 किसानों ने आत्महत्या की, कलबुर्गी में 69 और यादगिरी में 68 किसानों ने आत्महत्या की।
कर्नाटक के 27 जिलों में से जहां किसानों ने विभिन्न कारणों से आत्महत्या की, केवल छह जिलों में ही एकल अंकों में किसानों की आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए। दुर्भाग्य से, शेष 21 जिलों में 30 या उससे अधिक किसान आत्महत्या के मामले देखे गए।
चिक्काबल्लापुर और चामराजनगर में दो-दो किसानों ने आत्महत्या की। पिछले साल सितंबर में कर्नाटक के गन्ना विकास और कृषि उपज मंडी समिति (एपीएमसी) मंत्री शिवानंद पाटिल ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि सरकार द्वारा मृतक के परिवारों को दिए जाने वाले मुआवजे की राशि बढ़ाकर 5 लाख रुपये करने के बाद राज्य में किसानों की आत्महत्या की संख्या में काफी वृद्धि हुई है।
पाटिल ने अपने बयान का समर्थन करते हुए बताया कि यह मुआवजा उन किसानों के परिवारों द्वारा मांगा गया है, जो फसल नुकसान और कर्ज चुकाने में असमर्थता के कारण वित्तीय संकट के कारण आत्महत्या कर चुके हैं।
इस बीच, पाटिल की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा कि ऐसे लोग जो 'अपने स्वयं के कारणों से' आत्महत्या करते हैं, उन्हें किसान नहीं कहा जा सकता।
उन्होंने कहा, आत्महत्या करने वाले कहां हैं? मुझे बताएं। जो लोग अपने स्वयं के कारणों से आत्महत्या करते हैं, क्या हम उन्हें किसान कह सकते हैं? यह सब झूठ है।