गांधी@150: 72 साल बाद भी वैसा ही है यह कमरा जिसमें 214 दिन ठहरे थे महात्मा गांधी, चरखा, मेज, बिस्तर आज भी मौजूद

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi ) ने विश्व को सत्य की शक्ति से परिचय करवाया। गांधी के सत्याग्रह की ही बदौलत अंग्रेज भारत छोड़ने पर मजबूर हो गए। 2 अक्टूबर 1869 में गुजरात के पोरबंदर में पैदा हुए मोहनदास करमचंद गांधी को पूरी दुनिया अहिंसा के पुजारी के रूप में पूजती है। आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती (Mahatma Gandhi 150th Birth Anniversary) है। महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर आज पूरे देशभर या कहे पूरी दुनिया में अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। आज महात्मा गांधी की जयंती पर हम आपको एक ऐसे कमरे से मिलाने जा रहे है जिसमें महात्मा गांधी ने 214 दिन बिताए थे। अप्रैल 1946 से जून 1947 तक महात्मा गांधी दिल्ली के वाल्मीकि मंदिर (Valmiki Mandir) परिसर के एक कमरे में रुके थे। इस बात को 72 साल बीत चुके हैं, लेकिन उनसे जुड़ी यादों को आज भी उसी तरह संजो कर रखा गया है। उनका चरखा, मेज, लकड़ी से बना कलम स्टैंड, आसन और बिस्तर वैसा ही है जैसा उन्होंने इसका इस्तेमाल किया था।

मंदिर की देखरेख करने वाले एक सहायक कृष्ण शाह विद्यार्थी का कहना है कि गांधीजी की 150 वीं जयंती के पहले ‘बापू आवास’ को सजाया गया है और रंगरोगन किया गया है। उन्होंने कहा कि बुधवार की सुबह प्रार्थना और कीर्तन होगा और बाद में इस अवसर पर एक मार्च का आयोजन होगा। मंदिर के दायें तरफ एक एकड़ का भूखंड है। यहीं पर गांधीजी ने सभा की थी।

वाल्मीकि सत्संग शिक्षा केंद्र मंडल के एक सदस्य हितेश वाल्मीकि ने बताया कि बहुत लोगों को पता नहीं है कि गांधीजी यहां 200 से ज्यादा दिन ठहरे थे। हितेश वाल्मीकि ने बताया यहां महात्मा गांधी वाल्मीकि कॉलोनी के 60-70 बच्चों को अंग्रेजी-हिंदी सिखाते थे। उनका आसन, मेज, चरखा, लकड़ी का कलम स्टैंड आज भी उसी तरह से मौजूद है। उन्होंने दिवार को ब्लैकबोर्ड बना रखा था। ब्लैकबोर्ड के नीचे छोटे से बिस्तर पर गांधीजी की एक तस्वीर लगी है। बिस्तर को सफेद चादर से लपेट कर रखा गया है। दीवार पर जवाहरलाल नेहरू, लार्ड माउंटबेटन, वल्लभभाई पटेल आदि नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें लगी हुई हैं। एक अन्य हिस्से में महर्षि वाल्मीकि, पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन और 2014 में मंदिर आए वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें लगी हुई है।

96 साल के राम कृष्ण पालीवाल बताते हैं कि गांधी जी समुदाय के लोगों के साथ बेहद घुलमिल गए थे। दूसरे लोग बस्ती के लोगों को अछूत मानते थे, लेकिन गांधी उनके हाथों का बना खाना खाते थे। वह बताते हैं कि मुझे याद है, गांधीजी झाड़ू से अपना आंगन बुहारते थे। उनकी दो बकरियां भी थीं जो मैदान में चरती रहती थीं और हम वहीं पर खेलते रहते थे।

बापू के अनमोल विचार


- व्यक्ति अपने विचारों के सिवाय कुछ नहीं है, वह जो सोचता है, वह बन जाता है।

- कमजोर कभी क्षमाशील नहीं हो सकता है। क्षमाशीलता ताकतवर की निशानी है।

- ताकत शारीरिक शक्ति से नहीं आती है। यह अदम्य इच्छाशक्ति से आती है।

- धैर्य का छोटा हिस्सा भी एक टन उपदेश से बेहतर है।

- गौरव लक्ष्य पाने के लिए कोशिश करने में हैं, न कि लक्ष्य तक पहुंचने में।

- हम जो करते हैं और हम जो कर सकते हैं, इसके बीच का अंतर दुनिया की ज्यादातर समस्याओं के समाधान के लिए पर्याप्त होगा।