कारगिल विजय दिवस: पाकिस्तानियों की 15 गोलियां भी कुछ नहीं बिगाड़ पाईं भारत के इस वीर का, टाइगर हिल पर फहराया तिरंगा

20 साल पहले 26 जुलाई 1999 में करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर हुए कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने साहस और जांबाजी का ऐसा उदाहरण दिया था जिस पर हर देशवासी को आज गर्व होना चाहिए। 60 दिन तक चले कारगिल युद्ध (Kargil War) को हर साल 26 जुलाई को विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के तौर पर मनाया जाता है। इस खास मौके पर आज हम आपको कारगिल युद्ध के वीर के बारे में बताने जा रहे है जिन्होंने 15 से अधिक गोलियां लगने के बाद भी टाइगर हिल से पाकिस्तानियों को खदेड़ दिया। देश के 21 परमवीर चक्र विजेताओं में से एक हैं योगेंद्र सिंह यादव। कारगिल युद्ध में उन्होंने जिस अदम्य साहस का परिचय दिया उसी के लिए उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया। योगेंद्र इन दिनों 18 ग्रेनेडियर्स में सूबेदार हैं और बरेली में तैनात हैं।

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक गांव है जिसका नाम है औरंगाबाद अहीर। इसी गांव के रहने वाले हैं योगेंद्र यादव। इनके पिता रामकरन यादव भी फौज में थे। रामकरन ने 1965 और 1971 के युद्ध में हिस्सा लिया था और अपने बच्चों को वीरता की कहानियां सुनाई थीं।

17 साल की उम्र में ही योगेंद्र को फौज में नौकरी मिल गई थी। 27 दिसंबर 1997 को नौकरी शुरू करने वाले योगेंद्र को शादी के 15वें दिन ही 20 मई 1999 में बॉर्डर पर जाने का फरमान आ गया। पत्नी के मेहंदी लगे हाथों को छोड़ कर योगेंद्र ने बंदूक थाम ली और बॉर्डर की हिफाजत के लिए चल पड़े।

कारगिल का युद्ध छिड़ चुका था और योगेंद्र के लिए यह जंग यादगार बनने वाली थी। 22 जून 99 में उन्हें तोलोलिंग पहाड़ी पर भेजा गया। 22 दिनों तक यहां जंग जारी रही और भारतीय सेना को फतह हासिल हुई। इसके बाद 12 जुलाई को टाइगर हिल्स पर जाने का ऑर्डर मिला।

युद्ध बेहद ऊंचाई पर चल रहा था। खून जमा देने वाली ठंड थी लेकिन भारत भूमि को घुसपैठियों से आजाद कराना था। वे रात में भी पहाड़ पर चढ़ते थे ताकि आमने सामने की लड़ाई की जा सके। ऊंचाई पर होने के कारण पाकिस्तानी घुसपैठियों को फायदा हो रहा था।

उनकी आखों के सामने कई साथी शहीद हो गए। उनका एक हाथ टूट गया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। ग्रेनेड खत्म हुए तो उन्होंने बंदूक उठा ली। कई पाकिस्तानी घुसपैठियों को उन्होंने मार गिराया। टाइगर हिल्स पर तिरंगा फहराने के बाद ही वे बेहोश हुए।

इसी साहस के कारण उन्हें 19 साल की उम्र में ही परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। जब डॉक्टरों ने उन्हें देखा तो वो हैरान रह गए। 15 से अधिक गोलियां लगने के बाद भी वे जिंदा थे। कई महीने उनका इलाज चलता रहा और आखिरकार वह सही हो गए।