समलैंगिक विवाह याचिका सुनवाई से हटे जज संजीव खन्ना, नई बेंच का गठन करेंगे CJI

नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला टल गया है। दरअसल न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने निजी कारणों से खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया है। सुप्रीम कोर्ट अपने 17 अक्टूबर 2023 के फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं पर विचार करने वाला था। अब न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने संबंधी फैसले की समीक्षा का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। न्यायमूर्ति खन्ना के इस निर्णय के कारण अब इस मामले पर सुनवाई के लिए एक नई बेंच का गठन किया जाएगा।

भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली इस पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, हिमा कोहली, बीवी नागरत्ना और पीएस नरसिम्हा शामिल थे। न्यायमूर्ति खन्ना और नागरत्ना ने पिछली पीठ के सेवानिवृत्त सदस्यों न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति रवींद्र भट की जगह ली है। हालांकि अब न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया है। न्यायमूर्ति खन्ना के अप्रत्याशित रूप से अलग होने से पीठ में आवश्यक न्यायाधीशों की संख्या कम हो गई है। इससे समीक्षा प्रक्रिया अस्थायी रूप से रुक गई। सीजेआई चंद्रचूड़ को अब पीठ का पुनर्गठन करना होगा।

ज्ञातव्य है कि पुरुष समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं को झटका देते हुए प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल 17 अक्टूबर को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था। फैसले में कहा गया था कि केवल संसद और राज्य विधानसभाएं ही उनके वैवाहिक संबंधों को मान्यता दे सकती हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गई हैं। इन पुनर्विचार याचिकाओं पर विचार करना है या नहीं करना है इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक पीठ गठित की थी।

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने समीक्षा के लिए दायर याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई करने की अनुमति देने से मंगलवार को इनकार कर दिया था। मंगलवार को वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी और एन के कौल ने मामले का उल्लेख किया तथा प्रधान न्यायाधीश से खुली अदालत में पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई करने का आग्रह किया था। कौल ने न्यायालय से कहा, ‘‘मेरा कहना है कि क्या इन याचिकाओं की खुली अदालत में सुनवाई की जा सकती है...।’’ प्रधान न्यायाधीश ने उनसे कहा कि ये संविधान पीठ द्वारा समीक्षा किये जाने वाले मामले हैं, जिन्हें कक्ष (चैम्बर) में सूचीबद्ध किया गया है। परंपरा के अनुसार, पुनर्विचार याचिकाओं पर न्यायाधीशों द्वारा कक्ष में विचार किया जाता है।

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली 21 याचिकाओं पर चार अलग-अलग फैसले सुनाए थे। सभी पांच न्यायाधीश विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने को लेकर एकमत थे। पीठ ने कहा था कि इस तरह के संबंध को वैध बनाने के लिए कानून में बदलाव करना संसद के अधिकार क्षेत्र में है।