स्वतंत्रता दिवस विशेष : जलियांवाला बाग़ नरसंहार बना स्वतंत्रता संग्राम की आग के लिए सबसे बड़ी चिंगारी

स्वतंत्रता संग्राम अर्थात आजादी की लड़ाई देश में कई सालों तक चली, तब जाकर कहीं देश को अंग्रेजों से आजादी मिली। वैसे तो 1857 की क्रांति ने इस आजादी की लड़ाई को आग में बदलने का काम किया ही था, लेकिन इसकी सबसे बड़ी चिंगारी बनी जलियांवाला बाग़ नरसंहार। जी हाँ, जलियांवाला बाग़ नरसंहार अंग्रेजों की एक ऐसी शर्मनाक हरकत थी, जिसने लोगों के आक्रोश को ओर बढ़ा दिया और लोगों के दिलों में पनप रही चिंगारी को आग में बदल दिया। आज हम आपको इस चिंगारी अर्थात जलियांवाला बाग नरसंहार के बारे में बताने जा रहे हैं।

दिनांक 13 अप्रेल 1919 को जलियांवाला बाग में हुआ नरसंहार भारत में ब्रिटिश शासन का एक अति घृणित अमानवीय कार्य था। पंजाब के लोग बैसाखी के शुभ दिन जलियांवाला बाग, जो स्वर्ण मंदिर के पास है, ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ अपना शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शित करने के लिए एकत्रित हुए। अचानक जनरल डायर अपने सशस्त्र पुलिस बल के साथ आया और निर्दोष निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई, तथा महिलाओं और बच्चों समेंत सैंकड़ों लोगों को मार दिया।

इस बर्बर कार्य का बदला लेने के लिए बाद में ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग के कसाई जनरल डायर को मार डाला। प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के बाद मोहनदास करमचन्द गांधी कांग्रेस के निर्विवाद नेता बने। इस संघर्ष के दौरान महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक आंदोलन की नई तरकीब विकसित की, जिसे उसने "सत्याग्रह" कहा, जिसका ढीला-ढाला अनुवाद "नैतिक शासन" है। गांधी जो स्वयं एक श्रद्धावान हिंदु थे, सहिष्णुता, सभी धर्मों में भाई में भाईचारा, अहिंसा व सादा जीवन अपनाने के समर्थक थे। इसके साथ, जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस जैसे नए नेता भी सामने आए व राष्ट्रीय आंदोलन के लिए संपूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य अपनाने की वकालत की।