इस जीव का नीला खून है 'अमृत', 11 लाख रु. लीटर कीमत, बनेगी कोरोना वैक्सीन

दुनिया में कोरोना वायरस संक्रमण के अब तक 2 करोड़ 21 हजार 321 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें 1 करोड़ 28 लाख 96 हजार 895 मरीज ठीक हो चुके हैं। 7 लाख 33 हजार 918 की मौत हो चुकी है। कोरोना के बढ़ते मरीजों को बीच दुनियाभर में कोविड-19 की 5 वैक्सीन सबसे ज्यादा चर्चा में है। ये ह्यूमन ट्रायल के अंतिम चरण में हैं और अब तक सामने आए नतीजों में सुरक्षित साबित हुई हैं। जैसे-जैसे ये ट्रायल के अंतिम चरण की ओर बढ़ रही हैं। वहीं, इस बीच खबर आ रही है कि हॉर्सशू क्रैब के खून से कोरोना वैक्सीन बनाई सकती है। इस क्रैब का खून नीले रंग का है।

आपको बता दे, नॉर्थ अमेरिका के समुद्र में पाए जाने वाला यह क्रैब यानी केकड़ा एक दुर्लभ प्रजाति है। यह केकड़ा बिल्कुल घोड़े की नाल की तरह दिखाई देता है, इसलिए इसका नाम हॉर्सशू क्रैब रखा गया। रिपोर्ट के मुताबिक, केकड़े की ये प्रजाति करीब 45 करोड़ (450 million years) सालों के पृथ्वी पर है। मेडिकल साइंस में इस केकड़े का खून इसकी एंटी बैक्टीरियल प्रॉपर्टी की वजह से इस्तेमाल किया जाता है। इस जीव के एक लीटर नीले खून की कीमत 11 लाख रुपये है। जैसा की इंसानों और अन्य जीवों में लाल खून होता है और हीमोग्लोबिन पाया जाता है, ठीक उसी तरह इस केकड़े का खून नीला होता है। खून में कॉपर बेस्ड हीमोस्याइनिन (Hemocyanin) होता है, जो ऑक्सीजन को शरीर के सारे हिस्सों में ले जाता है।

दवा कंपनियों का मानना है कि इस जीव के खून से बहुत सारी दवाओं को सुरक्षित बनाया जाता है। इसके खून में लिमुलस अमीबोसाइट लाइसेट (limulus amebocyte lysate) नाम का तत्व होता है जो शरीर में एंडोटॉक्सिन (endotoxin) नाम का बुरा रासायनिक तत्व खोजता है। ये तत्व किसी भी संक्रमण के दौरान शरीर में निकलता है।

अटलांटिक, हिंद और प्रशांत महासागर में पाए जाने वाले हॉर्स शू केकड़े बसंत ऋतु से मई - जून के माह तक दिखाई देते हैं। सबसे ख़ास बात तो यह कि पूर्णिमा के वक्त हाई टाइड में यह समुद्र की सतह तक आ जाते हैं।

अब बात इन केकड़ों की कीमत की करें तो इनका एक लीटर नीला खून अंतरराष्ट्रीय बाजार में 11 लाख रुपये तक बिकता है। यह दुनिया का सबसे महंगा तरल पदार्थ भी कहा जाता है। बताया जाता है कि हॉर्स शू केकड़े के खून का इस्तेमाल साल 1970 से वैज्ञानिक कर रहे हैं। इसके जरिये वैज्ञानिक मेडिकल उपकरणों और दवाओं के जीवाणु रहित होने की जांच करते हैं। इनमें आईवी और टीकाकरण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मेडिकल उपकरण शामिल हैं। अटलांटिक स्टेट्स मरीन फिशरीज़ कमीशन के अनुसार, हर साल पांच करोड़ अटलांटिक हॉर्स शू केकड़ों का इस्तेमाल मेडिकल कामों में होता है।

हॉर्स शू केकड़े के नीले खून में तांबा मौजूद होता है। साथ ही एक ख़ास रसायन होता है जो किसी बैक्टीरिया या वायरस के आसपास जमा हो जाता है और उसकी पहचान करता है। साथ ही उसे निष्क्रिय करने में मदद करता है।

कैसे निकालते हैं खून

हॉर्स शू केकड़ों का खून उनके दिल के पास छेद करके निकाला जाता है। एक केकड़े से तीस फीसदी खून निकाला जाता है फिर उन्हें वापस समंदर में छोड़ दिया जाता है। 10 से 30% केकड़े खून निकालने की प्रक्रिया में मर जाते हैं। इसके बाद बचे मादा केकड़ों को प्रजनन में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।