भारत की आजादी के संघर्ष में अंग्रेजी हुकूमत को कमजोर करने के कई प्रयास हुए हैं। जिसमें से एक था काकोरी काण्ड जो कि नौ अगस्त 1925 को हुआ था। अदालत में इस काण्ड का मुकदमा 10 महीने तक चला था, जिसमें हमारे कई क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी और वे शहीद हो गए थे। भारत के स्वाधीनता आंदोलन में काकोरी कांड की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन लोगों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं हैं जबकि इस काण्ड के बाद ही क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा था। इसलिए आज हम आपको इस काकोरी काण्ड की जानकारी देने जा रहे हैं।
8 अगस्त 1925 को राम प्रसाद 'बिस्मिल' के घर पर हुई एक इमर्जेन्सी मीटिंग में अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की एक धमाकेदार योजना बनायी। 9 अगस्त 1925 को इस योजनानुसार दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 'आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन' को चेन खींच कर रोका।पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद व 6 अन्य सहयोगियों ने समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया।
ख़जाना लूटने में तो क्रांतिकारी सफल हुए लेकिन पुलिस ने शीघ्र ही उन्हें खोज निकाला। चंद्रशेखर आजाद तो पुलिस के हाथ नहीं आए लेकिन काकोरी कांड में सम्मिलित रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खां और राजेंद्र प्रसाद लाहिड़ी को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई थी। शेष कुछ क्रांतिकारियों को 4 वर्ष का कारागार और अन्य को काला पानी की सजा सुनाई गई।