नई दिल्ली। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बालिग जोड़े को एक साथ रहने की आजादी है। माता -पिता समेत किसी को भी उनके जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। भले ही वो किसी भी जाति धर्म के हो। अदालत ने कहा बालिग जोड़ो के लिव इन रिलेशनशिप में रहने पर यदि कोई परेशान करता है या धमकाता है तो उसके अर्जी देने पर पुलिस कमिश्नर संरक्षण मुहैया कराएं।
अदालत ने कहा बालिग जोड़े को अपनी पसंद से साथ रहने या शादी करने की पूरी आजादी है। किसी को भी उसके जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। उसके इन अधिकारों में हस्तक्षेप अनुच्छेद 19 व 21 का उल्लंघन होगा। यह आदेश न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह की एकल पीठ ने गौतमबुद्ध नगर की रजिया व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया।
याची का कहना था कि दोनों ही बालिग है और अपनी मर्जी से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं। भविष्य में शादी करना चाहते हैं। मां-बाप या परिवार के लोग नाराज हैं और धमका रहे हैं। आशंका है कि उसकी ऑनर किलिंग की जा सकती है। 4 अगस्त 2023 को पुलिस कमिश्नर को शिकायत कर संरक्षण मांगा पर कोई कार्रवाई नहीं होने पर हाईकोर्ट की शरण ली। याचियों के खिलाफ अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है।
अपर शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि दोनों अलग धर्म के हैं। इस्लाम में लिव इन रिलेशन में रहना गुनाह माना गया है। इस पर कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के हवाले से कहा कि जाति व्यवस्था राष्ट्र के लिए एक अभिशाप है और इसे जितनी जल्दी नष्ट किया जाए उतना अच्छा है। वास्तव में, यह देश को ऐसे समय में विभाजित कर रहा है जब हमें एकजुट होकर राष्ट्र के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए एकजुट होना होगा।
इसलिए, अंतर -जातीय विवाह वास्तव में राष्ट्रीय हित में हैं क्योंकि इसके परिणामस्वरूप जाति व्यवस्था नष्ट हो जाएगी। किसी भी बालिग जोड़े को अपनी मर्जी से साथ रहने का अधिकार है। भले ही उनका जाति धर्म अलग क्यों न हो। यदि कोई परेशान करे, या हिंसा करे तो पुलिस उस पर कार्रवाई करे। इसी के साथ कोर्ट ने याचिका का निस्तारण कर दिया।