भगतसिंह गुनगुनाते रहते थे ये शायरियाँ, देती हैं देशभक्ति का सन्देश

भगत सिंह जैसे देशभक्त और आजादी के दीवाने अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए जाने जाते थे। अपनी इसी दीवानगी के चलते 23 मार्च 1931 को फांसी के तख्ते पर लटक गए और देश में आजादी की लड़ाई की अलख जगा गए। क्रांतिकारी भगत सिंह के अन्दर एक अजीज शायर भी छिपा था। जिसेक चलते वे जेल में और अपने भाषणों में शायरियों का इस्तेमाल करते थे, जो कि देशभक्ति का सन्देश देती थी। आज हम आपको भगतसिंह की कुछ ऐसी शायरियों के बारे में बताने जा रहे हैं जो वे गुनगुनाते रहते थे।

* 'दिल दे तो इस मिजाज का परवरदिगार दे
जो गमों की घड़ी भी खुशी से गुजार दे'

* 'ये न थी हमारी किस्मत की बिसाले यार होता
अगर और जीते रहते तो यहीं इंतजार होता
तेरे वादे पर जिए हम तो यह जान झूठ जाना
कि खुशी से मर न जाते अगर एतबार होता'

* 'लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा
मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा
मैं रहूं या न रहूं पर ये वादा है मेरा तुमसे कि
मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा'

* 'उसे यह फिक्र है हरदम नया तर्जे जफा क्या है
हमें यह शौक हैं देखें सितम की इंतहा क्या है'

* 'दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें
सारा जहां अदू सही आओ मुकाबला करें'

* 'हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली
ये मुश्ते खाक है, पानी रहे न रहे'