भारत में Pfizer की वैक्सीन को आसानी से नहीं मिलने वाला इमरजेंसी अप्रूवल, ये है वजह

अमेरिका, ब्रिटेन समेत करीब 5 से ज्यादा देशों में फाइजर (Pfizer) की कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) को इमरजेंसी अप्रूवल (Emergency Approval) मिल चुका है लेकिन भारत में वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल आसानी से नहीं मिलने वाला। इमरजेंसी अप्रूवल की सिफारिश करने वाली ड्रग रेगुलेटर की सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी उससे भारत में ट्रायल्स के लिए कह सकती है।

मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक फाइजर ने जो ट्रायल डेटा पेश किया है, उसमें भारतीय एथनिसिटी से जुड़े वॉलंटियर्स से जुड़ा ट्रायल डेटा पर्याप्त नहीं है। वैक्सीन की रेगुलेटरी प्रोसेस से जुड़े एक रिसर्चर ने कहा कि आपको किसी भी वैक्सीन के लिए स्थानीय आबादी पर हुए ट्रायल्स का डेटा देना होता है। अगर फाइजर के ग्लोबल ट्रायल्स में भारतीय आबादी पर हुए ट्रायल्स का कुछ डेटा होता तो उसे क्लीनिकल ट्रायल्स की अनिवार्यता से छूट दी जा सकती थी पर लगता है कि उसका डेटा पर्याप्त नहीं है। क्लिनिकल ट्रायल की छूट देने की संभावना इस समय काफी कम लग रहा है।

इससे पहले देश की टॉप वैक्सीन साइंटिस्ट और क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. गगनदीप कंग ने भी संभावना जताई थी कि भारत का ड्रग रेगुलेटर इमरजेंसी अप्रूवल के लिए आवेदन करने पर विदेशी वैक्सीन को भारत में ट्रायल्स के लिए कह सकता है। हो सकता है कि यह ट्रायल्स 100 भारतीयों पर करने को कहा जाए। यह सब दुनियाभर में किए ट्रायल्स के डेटा पर तय होता है।

क्यों जरूरत है लोकल ट्रायल्स की?

ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया वीजी सोमानी और सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी ने अगर फाइजर की वैक्सीन को मंजूरी दी तो यह हमारे यहां बिल्कुल ही नई टेक्नोलॉजी होगी। दरअसल, फाइजर की वैक्सीन मैसेंजर-RNA या mRNA टेक्नोलॉजी से बनी है, जिसके ट्रायल्स भारत में नहीं हुए हैं।

ऐसे में सिर्फ ग्लोबल ट्रायल डेटा के आधार पर इमरजेंसी अप्रूवल देना जोखिम से भरा हो सकता है। फाइजर के ग्लोबल फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल में 37,000 वॉलंटियर्स शामिल हुए थे। इसमें सिर्फ 4.3% लोग ही एशियाई मूल के थे।

भले ही वैक्सीन की ओवरऑल इफेक्टिवनेस 95% रही हो, एशियाई मूल के लोगों पर इसकी सफलता की दर 74.4% ही थी। कोरोना वैक्सीन के लिए 50% को कट-ऑफ माना जा रहा है, ऐसे में 74.4% भी अच्छा आंकड़ा माना जा सकता है। पर इससे यह भी साफ है कि सैम्पल साइज पर्याप्त नहीं था।

'Covaxin' के आने में हो सकती है देरी

भारत बायोटेक (Bharat Biotech) द्वारा विकसित की जाने वाली कोविड-19 वैक्‍सीन (Covid-19 Vaccine) के आम लोगों के बीच पहुंचने में देरी हो सकती है। दरअसल इस वैक्‍सीन का ह्यूमन क्‍लिनिकल ट्रायल एम्‍स (All India Institute of Medical Sciences, AIIMS) में जारी है लेकिन तीसरे चरण के दौरान ट्रायल शॉट लेने के लिए इसके पास लोग नहीं हैं। इस प्रोजेक्‍ट के हेड ने यह बात आइएएनएस को बताई। कोवैक्‍सीन (Covaxin) ट्रायल के प्रिंसिपल इंवेस्‍टिगेटर संजय राय ने बताया कि इस बात की संभावना है कि सार्वजनिक उपयोग के लिए वैक्‍सीन आने में देर लग सकती है।

अंतिम चरण के ट्रायल में भागीदारी से इनकार

उन्‍होंने आगे बताया, 'वैक्‍सीन के रोलआउट में देरी हो जाएगी यदि सैंपल के निर्धारित आंकड़े नहीं मिले और ट्रायल में प्रतिभागियों की कमी रही।' एम्‍स में भारत बायोटेक की वैक्‍सीन का ह्यूमन क्‍लिनिकल ट्रायल के लिए कैंडिडेट का एनरोलमेंट जारी है लेकिन इसमें भागीदारी से बड़ी संख्‍या में लोगों का इनकार आ रहा है। एम्‍स के कम्‍युनिटी मेडिसीन डिपार्टमेंट को संभालने वाले संजय राय ने बताया कि तीसरे चरण के ट्रायल में भागीदारी से इनकार का दर करीब 80% है जबकि पहले और दूसरे चरण में यह मात्र 8% था।

इस वैक्‍सीन के पहले चरण के ट्रायल में 375 प्रतिभागी शामिल थे। वहीं तीसरे चरण में देश भर के 25 विभिन्‍न इलाकों से कुल 25,800 प्रतिभागियों का होना जरूरी है। पहले चरण के ट्रायल के परिणाम के बारे में बताते हुए संजय राय ने कहा कि इससे पता चलता है कि वैक्‍सीन सुरक्षित है और इससे होने वाले साइड इफेक्‍ट भी मामूली है जिन्‍हें नजरअंदाज किया जा सकता है।