रेलवे का फैसला अब श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को चलाने के लिए राज्यों से सहमति की जरूरत नहीं

रेलवे ने मंगलवार को बताया कि प्रवासी मजदूरों के लिए चलाई गई श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को चलाने के लिए राज्यों की सहमति की अब जरूरत नहीं है। विभिन्न राज्यो में फंसे दूसरे राज्यों के मजदूरों की आवाजाही को लेकर जारी की गई नई एसओपी में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा, 'श्रमिक ट्रेनों की आवाजाही की अनुमति गृह मंत्रालय से बातचीत के आधार पर रेल मंत्रालय देगा।' रेलवे के प्रवक्ता राजेश बाजपेयी ने बताया कि नई एसओपी के बाद श्रमिक विशेष ट्रेनों को चलाने के लिए राज्यों की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी।

रेल मंत्रालय की ओर से 2 मई को जारी सूचना, जिसमें कहा गया था कि श्रमिक ट्रेनें चलाये जाने के लिए संबंधित राज्यों की सहमति मांगी जाएगी, यह कदम उस सूचना से उलटा है।

अभी तक क्या हो रहा था?

पहले SOP में कहा गया था, 'यदि फंसे हुए श्रमिकों का एक समूह एक राज्य से दूसरे राज्य के जाना चाहता है, तो जो राज्य उन्हें भेज रहा है और जिस राज्य में वे जा रहे हैं, दोनों एक-दूसरे से परामर्श कर सकते हैं और रेल के जरिए यातायात के लिए सहमत हो सकते हैं।'

पहले यह ट्रेनें राज्य सरकार की मांग पर चल रही थीं। इस दौरान गृह मंत्रालय की गाइडलाइन का पूरा पालन किया जा रहा था। कोच में यात्रियों को सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बैठाया जा रहा था। रवानगी और संबंधित स्टेशन पर पहुंचने पर उनकी थर्मल स्क्रीनिंग की जाएगी। गृह जिले में 14 दिन क्वारैंटाइन करने के बाद ही उन्हें घर भेजा जाएगा। इतना ही नहीं शुरुआती और आखिरी स्टेशन के बीच में ट्रेनें कहीं नहीं रुकेंगी। श्रमिकों को ट्रेन में बैठाने से पहले स्क्रीनिंग करवाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होगी। जिन लोगों में लक्षण नहीं होंगे, उन्हें ही जाने की इजाजत मिलेगी।

अब गृह मंत्रालय की ओर से मंगलवार को जारी नई अधिसूचना में सहमति के किसी भी संदर्भ को हटा दिया गया है और कहा गया है कि नोडल अधिकारी फंसे हुए मजदूरों को रिसीव करने और भेजने के लिए आवश्यक व्यवस्था करेंगे। साथ ही यह भी कहा गया कि रेलवे स्टॉपेज और लक्ष्य स्टेशन सहित ट्रेन शेड्यूल को अंतिम रूप देगा।

श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को लेकर हुए विवाद

दरअसल, श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को लेकर विवाद उत्पन्न हो रहा था। कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार मजदूरों से ट्रेन का किराया ले रही है, जो कि शर्मनाक है। हालाकि, इसके बाद सफाई देते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव लव अग्रवाल ने बताया कि श्रमिक ट्रेनें राज्यों की डिमांड पर चलाई जा रही हैं और इसमें यात्रा का 85% खर्च केंद्र सरकार उठा रही है, जबकि 15% राज्य सरकारों को देना है। वहीं, इसके साथ यह भी आरोप लग रहा था कि राज्य राज्य ट्रेनें चलाने की अनुमति नहीं दे रही है। इसके लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को निशाना बनाया गया था। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि ममता ट्रेनों की मंजूरी न देकर मजदूरों के साथ अन्याय कर रही हैं। इसके बाद खुद रेल मंत्री पीयूष गोयल ने भी ऐसे ही आरोप लगाए थे।