गोवर्धन पूजा में शामिल होने गए छत्तीसगढ़ CM भूपेश बघेल को एक शख्स ने मारे कोड़े, देखे तस्वीरें

छत्तीसगढ़ (Chhattishgarh) के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) को उनके गृह जिले दुर्ग में गोवर्धन पूजा (Goverdhan Pooja) के दिन एक सख्स ने कोड़े मारे। पूजा में शामिल होने गए सीएम पर शख्स ने कोड़े से प्रहार किया। हर साल की तरह तरह इस बार भी दीपवाली के बाद गोवर्धन पूजा के लिए सीएम भूपेश बघेल रविवार को दुर्ग जिले के ग्राम जजंगिरी पहुंचे। यहां पहुंचकर सबकी मंगलकामना के लिए सांटा का प्रहार झेलने की परंपरा निभाई।

हर बार गांव के बुजुर्ग भरोसा ठाकुर यह प्रहार करते थे, लेकिन उनके निधन के कारण इस साल यह परंपरा उनके बेटे बीरेंद्र ठाकुर ने निभाई। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सुंदर परंपरा सबकी खुशहाली के लिए मनाई जाती है। सीएम ने कहा कि इस बात का दुख है कि इस बार भरोसा ठाकुर हमारे बीच नहीं हैं। खुशी इस बात की है कि उनके सुपुत्र बीरेंद्र, उनका परिवार और जजंगिरी के ग्रामीण इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस बार दीवाली कोरोना काल में आई है। हमेशा मास्क पहने रहे, हाथ साबुन से धोएं तथा फिजिकल दूरी का पालन करें। मुख्यमंत्री भूपेश ने इस अवसर पर कुम्हारी में गौरा गौरी की पूजा अर्चना कर प्रदेशवासियों की सुख समृद्धि की कामना की।

आपको बता दे, दीपावली (Diwali 2020) की अगले दिन गोवर्धन पूजा (Goverdhan Pooja) की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।

जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।