IT नियमों को लेकर केंद्र की सख्ती, रविशंकर प्रसाद बोले - कानूनी सुरक्षा पाने का हकदार नहीं है Twitter

नए IT नियमों का पालन नहीं करने के चलते भारत में माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर (Twitter) ने कानूनी सुरक्षा का आधार गंवा दिया है। ऐसे में पुलिस अब कंपनी की भारतीय इकाई के मैनेजिंग डायरेक्टर सहित शीर्ष अधिकारियों से पूछताछ कर सकेगी और इस प्लैटफॉर्म पर शेयर किए गए 'गैरकानूनी या भड़काऊ' कॉन्टेंट को लेकर क़ानूनी कार्रवाई का सामना भी करना पड़ सकता है। कानूनी संरक्षण 25 मई से ख़त्म माना गया है। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad) ने एक के बाद एक सिलसिलेवार ट्वीट्स करके इस मामले पर सरकार का रुख साफ किया।

प्रसाद ने कहा, 'इस बात को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं कि क्या ट्विटर भारत में कानूनी सुरक्षा पाने का हकदार है? इस मामले का साधारण तथ्य यह है कि ट्विटर 26 मई से लागू हुए नए आईटी कानूनों का पालन करने में नाकाम रहा है।'

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत की संस्कृति अपने बड़े भौगोलिक स्थिति की तरह बदलती रहती है। सोशल मीडिया में एक छोटी सी चिंगारी भी बड़ी आग का कारण बन सकती है। खासकर फेक न्यूज के खतरे ज्यादा हैं। इसपर कंट्रोल करना और इसे रोकना नए आईटी नियमों में एक महत्वपूर्ण नियम था, जिसका पालन ट्विटर ने नहीं किया।

रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'यह आश्चर्यजनक है कि ट्विटर जो खुद को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार के रूप में चित्रित करता है और कानून के अमल की बात करता है, उसने ही आईटी के नियमों की अनदेखी की।'

प्रसाद ने ट्वीट थ्रेड में आगे लिखा, 'चौंकाने वाली बात यह है कि ट्विटर देश के कानून की अनिवार्य प्रक्रिया को स्थापित करने से इनकार करके यूजर्स की शिकायतों को दूर करने में भी नाकाम रहा है। ट्विटर तभी फ्लैग करने की नीति चुनता है, जो वह उसके उपयुक्त हो या उसकी पसंद और नापसंद के मुताबिक चीजें हो।'

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने साफ किया कि ट्विटर अपने फैक्ट्स चेक टीम के बारे में कुछ ज्यादा उत्साही रहा है, लेकिन यूपी में जो हुआ, वह फर्जी खबरों से लड़ने में ट्विटर की मनमानी का उदाहरण था। यूपी जैसे कई मामलों में कार्रवाई करने में ट्विटर नाकाम रहा है, जो गलत सूचना से लड़ने में इसकी नाकामी की ओर भी इशारा करता है।

3 पॉइंट में समझें प्रोटेक्शन हटाने के मायने

- केंद्र सरकार की तरफ से धारा 79 के तहत सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सुरक्षा मुहैया कराई जाती है। ये सुरक्षा ट्विटर को भी मिली हुई थी। इस सुरक्षा के चलते आपराधिक गतिविधि के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किए जाने पर कंपनी की जिम्मेदारी नहीं होती थी और किसी भी केस में कंपनी को पक्ष नहीं बनाया जा सकता था।

- नए IT नियम के तहत सरकार ने कहा था कि सोशल मीडिया कंपनी एक महीने के अंदर मुख्य अनुपालन अधिकारी (CCO) की नियुक्ति करें, जो यूजर्स की शिकायतों को सुलझाए। नियुक्ति न होने पर सरकार ने धारा 79 के तहत प्रोटेक्शन खत्म करने की चेतावनी दी थी। इसके बाद 15 जून को ट्विटर के खिलाफ पहली FIR हुई है।

- सरकार के फैसले के बाद ट्विटर अब अकेला ऐसा अमेरिकी प्लेटफॉर्म है, जिससे IT एक्ट की धारा 79 के तहत मिलने वाला यह कानूनी संरक्षण वापस ले लिया गया है, जबकि गूगल, फेसबुक, यूट्यूब, वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम जैसे अन्य प्लेटफॉर्म के पास अभी भी यह सुरक्षा है।

क्या है पूरा मामला?


दरअसल, उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद पुलिस ने लोनी इलाके में अब्दुल सनद नाम के एक बुजुर्ग के साथ मारपीट और अभद्रता किए जाने का वीडियो वायरल होने के बाद FIR दर्ज की थी। इन सभी पर घटना को गलत तरीके से सांप्रदायिक रंग देने की वजह से यह एक्शन लिया गया। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में दिख रहा है कि एक बुजुर्ग मुस्लिम को पीटा गया और उसकी दाढ़ी काट दी गई।

पुलिस के मुताबिक, मामले की सच्चाई कुछ और ही है। पीड़ित बुजुर्ग ने आरोपी को कुछ ताबीज दिए थे, जिनके परिणाम न मिलने पर नाराज आरोपी ने इस घटना को अंजाम दिया। लेकिन, ट्विटर ने इस वीडियो को मैन्युप्युलेटेड मीडिया का टैग नहीं दिया। पुलिस ने यह भी बताया कि पीड़ित ने अपनी FIR में जय श्री राम के नारे लगवाने और दाढ़ी काटने की बात दर्ज नहीं कराई है।

किनके खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर?


जिन लोगों पर मामला दर्ज किया गया है, उनमें अय्यूब और नकवी पत्रकार हैं। जुबैर फैक्ट चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के लेखक हैं। डॉ। शमा मोहम्मद और निजामी कांग्रेस नेता हैं। वहीं, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष उस्मानी का नाम भी शामिल है।