आदिवासियों का BJP से मोहभंग, झारखंड से पहले इन तीन राज्यों में गवानी पड़ी सत्ता

एक समय था जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का मजबूत वोटबैंक आदिवासी समुदाय को माना जाता था। लेकिन अब लगता है कि मौजूदा बदले हुए राजनीतिक समीकरण में आदिवासियों का बीजेपी से मोहभंग होता नजर जा रहा है। झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे से साफ है कि पिछले कुछ बरसों से जो आदिवासी बीजेपी को सिर आंखों पर बिठाकर रखते थे, जहां से बीजेपी पर्याप्त सीटें जीतकर सत्ता पर विराजमान होती रही है, वहां हालात बदल गए हैं। बीजेपी का यह दुर्ग इस चुनाव में पूरी तरह से दरक गया है। बता दे, झारखंड से पहले बीजेपी को छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में आदिवासियों के चलते सत्ता गंवानी पड़ी है।

आपको बता दे, झारखंड की कुल 81 विधानसभा सीटों में से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। ये सारी सीटें आदिवासी बहुल इलाकों की हैं, जहां बीजेपी को सिर्फ तीन सीटें मिली हैं और बाकी 25 सीटों पर विपक्षी दलों को जीत मिली है। इनमें जेएमएम को 19, कांग्रेस 5 और जेवीएम ने एक आदिवासी सीटों पर जीत दर्ज किया है।

आपको बता दें कि 2014 के चुनाव में आदिवासी बहुल सीटों के नतीजों को देखे तो बीजेपी को 11 सीटें मिली थी और 13 सीटें जेएमएम ने जीता था। आजसू को 2 सीटें और दो सीटें अन्य दल को मिली थी। इस तरह से बीजेपी को आरक्षित सीटों पर 8 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है।

भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन का आदिवासियों ने किया विरोध

दरअसल झारखंड में भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन, मूलनिवास की तारीख बढ़ा कर बाहरियों को सुविधा देना और पत्थलगड़ी वाले गांवों के निवासियों पर देशद्रोह के केस बीजेपी शासन के लिए झारखंड में महंगा पड़ा है। भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन का विरोध आदिवासियों ने जोर शोर से किया, जो आदिवासियों के हक को कमजोर कर रहा था।

मूलनिवास का मामला भी गरमाया

मूलनिवास का मामला भी काफी दिनों से चला आ रहा था। झारखंड के लोगों की मांग रही थी कि राज्य में साल 1932 की जनसंख्या के आधार पर ही मूल निवासी माना जाए, लेकिन बीजेपी ने इसे बढ़ाकर 1985 कर दिया था। इससे बाहर से आने वाले लोगों को काफी लाभ हुआ। इससे आदिवासी समुदाय में काफी गुस्सा रहा, जिसे रघुवर दास सरकार को चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा है।

छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी को झेलनी पड़ी आदिवासी समुदाय की नाराजगी

छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें आदिवासी बहुल इलाकों से हैं, जो उनके लिए आरक्षित हैं। पिछले 15 साल से बीजेपी इन्हीं आदिवासी सीटों के भरोसे सत्ता में आती रही है लेकिन पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में आदिवासियों ने बीजेपी को सिरे से नकार दिया। और 29 सीटों में से बीजेपी को सिर्फ तीन सीट पर जीत मिली वही कांग्रेस को 25 सीटें मिली थी और एक सीट पर अजीत जोगी जीतने में कामयाब रहे थे।

मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार की विदाई

वही मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार की सत्ता से विदाई में आदिवासी समुदाय की अहम भूमिका रही। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में आदिवासियों का ऐसा मोहभंग हुआ कि बीजेपी की अपनी सत्ता गंवानी पड़ गई। मध्य प्रदेश में कुल 47 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित है, इनमें 31 सीटें कांग्रेस को मिली जबकि16 सीटें बीजेपी को और एक सीट पर निर्दलीय को जीत मिली है।

राजस्थान में भी मिली हार

200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में 25 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित है। राजस्थान के आदिवासी बेल्ट में बीजेपी की मजबूत पकड़ रही है, लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ है कि आदिवासी समुदाय का मोहभंग हुआ है। इस बार हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 12, बीजेपी को 9, बीटीपी को 2 और निर्दलीय की 2 सीटों पर जीत मिली थी।

आपको बता दे, झारखंड में चुनाव आयोग के जारी आकंड़ों के अनुसार झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) को 30 सीटें, बीजेपी को, 25 सीटें, कांग्रेस को 16 सीटें, झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक को 3 सीटें, आजसु (AJSU) पार्टी को 2 सीटें (2014 में 5 सीटों पर जीत हासिल की थी), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्ससिस्ट लेनिनिस्ट लिबरेशन) को 1 सीट, निर्दलीय 2 सीट, राष्ट्रीय जनता दल(RJD)को 1 सीट, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) को 1 सीट मिली है।