पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की थी। इसके बाद तो भारतीय राजनीति में ये दोनों एक नाम हो गये 'अटल-आडवाणी'। लेकिन ऐसा नहीं है कि बीजेपी की स्थापना के समय ही दोनों साथ आये थे। बीजेपी की स्थापना के काफी पहले दोनों नेता राजनीति में आ चुके थे। दोनों ही आरएसएस के प्रचारक के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। अटल जी भी पत्रकारिता से जुड़े थे और लालकृष्ण आडवाणी भी। अटल जी अपने भाषण के दम पर राजनीति में बहुत ही तेजी से जगह बना रहे थे तो आडवाणी राजस्थान के कोटा में संघ के प्रचारक के तौर पर काम रहे थे। भाजपा को अहम पहचान दिलाने में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर केंद्रीय भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी बृहस्पतिवार को पूर्व प्रधानमंत्री के निधन का समाचार पाकर बेहद व्यथित हो गए।
उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी को देश के सबसे बड़े कद वाले राजनेताओं में से एक करार दिया और कहा कि वाजपेयी 65 साल तक उनके सबसे करीबी दोस्त रहे, जिनकी कमी अब वे अत्यधिक महसूस करेंगे।
वाजपेयी सरकार में उप प्रधानमंत्री रहे आडवाणी ने अपने शोक संदेश में कहा, आरएसएस में प्रचारकों के तौर पर हमारे दिनों से शुरुआत करते हुए, भारतीय जनसंघ की शुरुआत करना, आपातकाल के काले महीनों के संघर्ष के कारण जनता पार्टी के गठन और बाद में वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी के उभार से जुड़े उनके लंबे साथ की यादों को मैं संजोना चाहता हूं।
आडवाणी ने कहा कि अपने गहरे दुख और निराशा को व्यक्त करने के लिए उनके पास शब्द नहीं बचे हैं। उन्होंने कहा, अटल जी केंद्र में गैर कांग्रेसी गठबंधन वाली पहली स्थिर सरकार के अगुआ के तौर पर याद किए जाएंगे और मुझे 6 साल तक उनके सहायक के तौर पर काम करने का अवसर मिला।
मेरे सीनियर के तौर पर वे हमेशा मुझे हर मुमकिन तरीके से प्रेरित करने और राह दिखाने का काम करते थे। उन्होंने कहा, मैं हमेशा अटल जी को बेहद मिस करूंगा।