मराठा आरक्षण पर 3 पार्टियां एक मंच पर, आज ठाणे बंद

मुम्बई। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर मराठा समाज ने आज ठाणे बंद का ऐलान किया है। इसके चलते सीएम एकनाथ शिंदे के घर के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। NCP (शरद पवार गुट), शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के शहर इकाइयों के नेताओं ने इस बंद को अपना समर्थन दिया है।

इस बीच राज्य सरकार ने आज मुंबई में मराठा आरक्षण पर सर्वदलीय बैठक बुलाई है। इसका मकसद विरोध-प्रदर्शन का हल निकालना है। इस बैठक में शिवसेना (यूबीटी) शामिल होगी, हालांकि कांग्रेस ने अभी तक न तो इस विवाद पर कोई राय दी है और न ही बैठक में अपनी भागीदारी की पुष्टि की है।

मराठा आरक्षण के लिए पिछले कुछ हफ्तों से भूख हड़ताल पर बैठे मनोज जरांगे पाटिल ने महाराष्ट्र सरकार के साथ व्यापक बातचीत की है। जरांगे पाटिल ने मराठा आरक्षण को लेकर राज्य सरकार द्वारा जारी अध्यादेश में बदलाव की मांग की है। उनका रुख है कि जब तक अध्यादेश में अपेक्षित बदलाव नहीं किया जाता, आमरण अनशन जारी रहेगा

अध्यादेश में कहा गया है कि मराठवाड़ा के जिन लोगों की वंशावली में कुनबी का उल्लेख है, उन्हें कुनबी मराठा के रूप में जाति प्रमाण पत्र दिया जाएगा। हालांकि, मनोज जारांगे पाटिल ने मांग की है कि अध्यादेश को बदला जाए ताकि महाराष्ट्र के सभी मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र दिया जाए क्योंकि उनके पास कोई वंशावली दस्तावेज नहीं हैं।

मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र देने का मतलब होगा कि उन्हें ओबीसी के रूप में गिना जाएगा और उन्हें वही आरक्षण लाभ मिलेगा जो राज्य में ओबीसी को मिलता है।

महाराष्ट्र में 33 प्रतिशत मराठा आबादी

महाराष्ट्र में मराठा आबादी का गणित समझें तो राज्य की कुल आबादी का 33 प्रतिशत मराठा समुदाय है। वे अपने लिए सरकारी नौकरी में 16 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे हैं। मुश्किल यह है कि अगर इन्हें अलग से आरक्षण दिया जाता है तो आरक्षण की अधिकतम सीमा पार हो जाएगी और अगर पिछड़ा वर्ग में शामिल कर उन्हें आरक्षण दिया गया तो OBC की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।

2018 में आरक्षण का आदेश, SC ने लगाई थी रोक


साल 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने कानून बनाकर मराठा समुदाय को 13% आरक्षण दिया था, मगर मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने मराठा आरक्षण पर रोक लगा दी और कहा कि आरक्षण को लेकर 50 फीसदी की सीमा को नहीं तोड़ा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने साल 1992 में आरक्षण की सीमा को अधिकतम 50 फीसदी तक सीमित कर दिया था।