
नई दिल्ली। देश में लगातार बढ़ती महंगाई एक आम आदमी की जेब पर सीधा और गहरा असर डालती है, जिससे उसकी मासिक बचत और खर्च की योजना प्रभावित होती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि महंगाई की गणना कैसे और किन मानकों के आधार पर की जाती है? दरअसल, भारत में महंगाई की गणना दो प्रमुख और विश्वसनीय तरीकों से की जाती है—थोक महंगाई (WPI) और रिटेल महंगाई (CPI) के आधार पर, जो आर्थिक नीति निर्धारण में अहम भूमिका निभाते हैं।
थोक महंगाई क्या है और इसे कैसे मापा जाता है?थोक महंगाई का मापन थोक बाजार में उपलब्ध वस्तुओं की कीमतों में समय के साथ होने वाले बदलाव को देखकर किया जाता है। इसमें उपभोक्ताओं से पहले उत्पादकों और वितरकों के बीच तय होने वाली कीमतों का आकलन किया जाता है, न कि खुदरा स्तर की कीमतों का। इस सूचकांक का उपयोग बड़े स्तर की नीतियों और व्यापारिक समझ के लिए किया जाता है।
थोक महंगाई (WPI) की गणना करते समय तीन प्रमुख श्रेणियों को शामिल किया जाता है, जिनका वेटेज इस प्रकार है:
मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स – 63.75%: जैसे कपड़े, दवाइयाँ, वाहन आदि
प्राइमरी आर्टिकल्स (जैसे खाद्यान्न, फल-सब्जियां) – 22.62%
फ्यूल और पावर (पेट्रोल, डीजल, बिजली) – 13.15%
रिटेल महंगाई क्या है और इसका उपभोक्ताओं से क्या संबंध है?रिटेल महंगाई, जिसे Consumer Price Index (CPI) कहा जाता है, का आकलन उस कीमत के आधार पर किया जाता है जो उपभोक्ता खुद दुकानों, ऑनलाइन पोर्टल्स या स्थानीय बाजारों से सामान खरीदते समय चुकाते हैं। CPI आम जनता के खर्च और उपभोग की आदतों पर आधारित एक सटीक संकेतक होता है।
CPI में जिन श्रेणियों की भागीदारी प्रमुख होती है, वे हैं: खाद्य पदार्थ – 45.86%: जैसे अनाज, सब्जियाँ, दूध आदि
आवास – 10.07%: किराया, मकान का रख-रखाव
ईंधन और अन्य सेवाएं – शेष भागीदारी: जैसे बिजली, परिवहन, स्वास्थ्य सेवाएं
क्या है इन आंकड़ों का अर्थव्यवस्था पर महत्त्व और असर?महंगाई के ये दोनों सूचकांक देश की आर्थिक नीति, ब्याज दरों, और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति को निर्धारित करने में अत्यधिक उपयोगी साबित होते हैं। जहां CPI आम नागरिक के लिए महंगाई की वास्तविक और प्रत्यक्ष तस्वीर पेश करता है, वहीं WPI सरकार और नीति निर्धारकों को थोक बाजार के ट्रेंड्स के बारे में आगाह करता है।
मौजूदा स्थिति क्या कहती है? जानें ताजा आंकड़ों से क्या संकेत मिलते हैंहालिया सरकारी आंकड़ों के अनुसार, थोक महंगाई दर में कुछ राहत देखने को मिली है, लेकिन दूसरी ओर रिटेल महंगाई अब भी ऊँचे स्तर पर बनी हुई है। खासकर खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेज़ बढ़ोतरी और पेट्रोल-डीजल तथा बिजली जैसे ऊर्जा उत्पादों की लागत में वृद्धि ने उपभोक्ताओं की जेब पर बोझ बढ़ा दिया है।