अफसोस बडी अजीब भावना है। आपको अपने किए पर अफसोस हो सकता है और उस काम पर भी, जो आपने किया ही नहीं। इतना ही नहीं, आप दूसरों के कामों को लेकर भी अफसोस कर सकते हैं। आप जिस मुकाम पर हों, उपलब्धियां जो भी हो, जीवन में कितने ही कर्मठ, ईमानदार और त्यागी हो, अफसोस आपके मन में घर करने की राह बना लेता है।
महिलाएं हैं आसान शिकारमहिलाओं में अफसोस करने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है। घर-परिवार के लिए कितना भी कर लें,पर लगता है कि कुछ कसर रह ही गई है। बच्चे हजार चीजों में अच्छे हों, पर किसी मामले में अच्छा प्रदर्षन ना कर पाएं, तो मां के रूप में खुद को दोष देने में लगती है। चूंकि महिलाएं रिश्तो को संवारना अपनी जिम्मेदारी समझती है, इसलिए रिश्ते में कोई भी उतार-चढाव उन्हें अपराधबोध से भर देता है और अपनी इच्छा व्यक्त ना कर पाने, समय पर कठोर निर्णय ना ले पाने और मनचाहे काम ना कर पाने से जुडे अफसोस तो होते ही हैं।
इसलिए होता है अफ़सोस भविष्य में क्या होने वाला है, हम इसका सटीक अनुमान नहीं लगा सकते हैं। यानी जब हम कुछ करने का निर्णय लेते हैं, तो हम नहीं जानते कि आगे चलकर उसके नतीजे क्या होगें और जब हमारे उस कदम का परिणाम मनमाफिक नहीं होता, तो मन में अपने फैसले को लेकर अफसोस होता है। क्योंकि इंसान में ‘क्या हो सकता था‘ को लेकर जरूरत से ज्यादा सकारात्मक ढंग से सोचने की प्रवृृति होती है।
अफसोस अच्छा भी है, पर.... इंसान के पास दिल भी है, इसलिए उसे अपनी गलतियों और नाकामियों पर अफसोस होगा ही। इसके बगैर सुधार संभव नहीं है। यह हमें अच्छा इंसान बनाता है और प्रेरित भी करता है। इसी के चलते हम दूसरों के प्रति ज्यादा सहानुभूति ढंग से सोचते हैं, अपनी गलतियों को सुधारने और उन्हें ना दोहरानें के लिए संकल्पित होते हैं और अपनी किसी बुराई से पीछा छुडाने की कोशिश करते हैं।
जब अफसोस बेवजह होने लगे-जब अफसोस बेवजह होने लगे, जरूरत से ज्यादा होने लगे, तो यह हमारे सहज जीवन और खुषियों की राह में सबसे बडी बाधा बन जाता है।
नहीं ले पाते जो मिला है उसका आनंद भी आप बुढापे में पहुंचने के बाद भी बचपन की किसी भूल को भूल नहीं पाते। या दूसरों के कामों के लिए भी खुद को दोषी ठहराते रहते हैं। या पूरी ईमानदारी और मेहनत से काम करने के बावजूद आपको लगता रहता है कि कोई कसर रह गई। इसके चलते, आप जीवन में जो मिला उसका आनंद भी नहीं ले पाते।