माँ की ममता को दर्शाता है स्वामी विवेकानंद का यह किस्सा, पढ़कर आंखें हो जाएगी नम

भारतीय दर्शन के पुन: उद्धारक के रूप में जाने वाले स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। देश की संस्कृति को पूरी दुनिया में सम्मान दिलाने में स्वामी विवेकानंद का बहुत बड़ा सहयोग रहा हैं। ज्ञान और अच्छे आचरण की वजह से स्वामी विवेकान्द की प्रसिद्धि पूरे विश्व में फ़ैल चुकी थी। वह जहाँ जाते लोग उनके अनुयायी बन जाते और उनकी बातों से मंत्रमुग्ध हो जाते थे। आज हम आपको स्वामी विवेकानंद का माँ की ममता से जुड़ा किस्सा बताने जा रहे हैं जो आपकी आंखों को भी नाम कर देगा। तो आइये जानते है इसके बारे में।

एक बार स्वामी विवेकानंद एक नगर में पहुँचे। जब वहाँ के लोगों को पता चला तो वो सारे लोग स्वामी जी मिलने के लिए पहुँचे। नगर के अमीर लोग(Rich Peoples) एक से बढ़ कर एक उपहार स्वामी जी के लिए लाये। कोई सोने की अँगूठी(Golden Ring) लाया तो कोई हीरों(Diamonds) से जड़ा बहुमूल्य हार। स्वामी जी सबसे भेंट लेते और एक अलग रख देते। उतने में एक बूढी औरत चलती हुई स्वामी जी के पास आई और बोली महाराज आपके आने का समाचार मिला तो मैं आपसे मिलने को व्याकुल हो गयी।

मैं बहुत गरीब हूँ और कर्ज(Debt) में दबी हूँ मेरे पास आपको देने के लिए कुछ उपहार तो नहीं है। मैं खाना खा रही थी तो कुछ रोटियाँ आपके लिए लायी हूँ, अगर आप इस गरीब की रोटियाँ स्वीकार करें तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी। स्वामी जी की आँखों में आँसू भर आये उन्होंने उस महिला से रोटी ली और वहीं खाने लगे। वहाँ बैठे लोगों को ये बात कुछ बुरी लगी उन्होंने पूछा- स्वामी जी, हमारे दिए हुए कीमती उपहार तो आपने अलग रख दिए और इस गंदे कपड़े पहने औरत की झूठी रोटी आप बड़े स्वाद से खा रहे हैं। ऐसा क्यों?

स्वामी जी बड़ी सुंदरता से मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि देखिये आप लोगों ने मुझे अपनी पूरी धन और दौलत(Money) से मात्र कुछ हिस्सा निकालकर मुझे कीमती रत्न दिए। लेकिन इस महिला के पास तो कुछ नहीं है सिवाय इस रोटी के, फिर भी इसने अपने मुँह का निवाला मुझे दे दिया इससे बड़ा और त्याग क्या हो सकता है? एक माँ ही ऐसा काम कर सकती है, माँ खुद भूखे रहकर भी अपने बच्चों को खाना खिलाती है। ये एक रोटी नहीं इस माँ की ममता है, और इस ममतामयी माँ को मैं शत शत नमन करता हूँ।