बच्चे एक ऐसी उम्र के पड़ाव पर होते हैं जहां वे जो भी सीखते हैं वह उनके जहन में जीवनभर रहता हैं। बच्चों का बचपन उनके भविष्य की नींव होती है। ऐसे में इस समय बच्चों को अच्छी बातें सिखाई जानी चाहिए। अगर आप बच्चों को कुछ अच्छा सिखाना चाहते हैं तो भगवद गीता की मदद ले सकते हैं जो हिंदुओं का महानतम धार्मिक ग्रंथ है। गीता में जीवन का सार निहित है। जीवन के आरंभ से लेकर अंत तक के सफर से जुड़ी कई बातें और सीख इसमें बताई गई हैं। भगवद गीता के ये वचन न केवल बड़े लोगों बल्कि आपके बच्चे का भी सही मार्गदर्शन करेंगी। हम आपको यहां भगवद गीता में बताई गई कुछ सीख के बारे में बताने जा रहे हैं जो आज भी बच्चों के लिए प्रासंगिक है।
कर्म करों और फल की इच्छा मत करो अपने बच्चों को गीता ये वचन जरूर बताएं। इंसान को अपना कर्म करना चाहिए फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। कई बार किसी काम करने से पहले उसका फल के बारे में नहीं सोचना चाहिए। बच्चे अक्सर सोचते हैं कि वह एग्जाम बहुत मुश्किल है उनसे नहीं होगा। ऐसे में उन्हें समझाएं कि वह फल की न सोचे वह केवल अपना कर्म करें। उनका कर्म है पढ़ना और उस एग्जाम को देना। अगर मन में पहले ही आ जाएगा की नहीं होगा तो फिर एग्जाम के लिए बच्चे उतनी मेहनत नहीं करेंगे।
परिवर्तन संसार का नियम हैयह सीख बच्चों के लिए उस स्थिति में उपयोगी साबित हो सकती है जब वह किसी परीक्षा में असफल हो जाते हैं अथवा स्टडीज़ में संतोष जनक प्रदर्शन करने में असफल रहते हैं। याद रखना चाहिए कि उनकी असफलता भी चिरस्थाई नहीं है और समय के साथ कठिन परिश्रम से यह असफलता सफलता में परिवर्तित हो सकती है। अतः बच्चों को असफलता के समय हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और दृढ़ संकल्प एवं लगन से असफलता को सफलता में बदलने के लिए कठोर परिश्रम करना चाहिए।
आलस छोड़े अगर आपके बच्चे किसी भी काम को करने के लिए आलस करते हैं तो उनकी इस आदत में सुधार लगाएं। क्योंकि आलस्य किसी भी इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन होता है। जीवन में सफल होने के लिए आलस को छोड़ना बहुत जरूरी है। बच्चे कई बार आराम करने की वजह से स्कूल नहीं जाते हैं। ऐसे में उनकी इस आदत को बदले वहीं कुछ बच्चे अपने आलस की वजह से स्कूल होमवर्क नहीं करते हैं। अगर आपके बच्चे भी ऐसा करते हैं तो उन्हें बताएं कि जीवन में सफलता पाने के लिए आलस छोड़ना होगा।
क्रोध न करेंहमें नई पीढ़ी को गीता का एक अन्य मूल मंत्र समझाना चाहिए कि वह किसी भी परिस्थिति में क्रोध न करें। उस पर नियंत्रण करना सीखें। गीता में कहा गया है कि क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाते हैं और तर्क नष्ट होने पर हम किसी भी मुद्दे पर तर्क सम्मत भाव से विचार करने में असमर्थ हो जाते हैं। हमारे हाथ विफलता लगती है। अतः हमें अपनी नई पौध को बचपन से क्रोध के दुष्प्रभाव एवं उसे नियंत्रित करने के तरीके सिखाने चाहिए।
कर्तव्यों का करें पालन बच्चों को भागवत गीता ये वचन जरूर बताएं। अक्सर बच्चे पढ़ने या फिर किसी भी काम करने के लिए झट से मना कर देते हैं। ऐसे में उनके बताना चाहिए जीवन बिना मेहनत कुछ नहीं मिलता है। ऐसे में कभी भी मेहनत से नहीं भागना चाहिए। हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
ऊंचे सपने देखेंभगवद गीता में एक जगह श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हमें बाधाएं अपने लक्ष्य से दूर नहीं रखती वरन लक्ष्य प्राप्ति के अपेक्षाकृत सरल सहज मार्ग अपेक्षित सफलता पाने से विमुख करती है। इसका तात्पर्य है कि हमें ऊंचे सपने देखने चाहिए। सहज रूप से प्राप्त लक्ष्यों की ओर नहीं भागना चाहिए वरन कठिनाई से प्राप्त होने वाले लक्ष्यों पर फोकस करना चाहिए।
लालच न करनालालच करना गलत बात है हमें अपने बच्चों को जरूर बताना चाहिए। गीता में बताया है कि लालच और गुस्सा नरक का द्वार है। जीवन में सुखी रहने के लिए लालच और गुस्से से दूर रहना चाहिए। आप अपने बच्चों को समझाए कि किसी भी चीज को लेकर लालच नहीं करना चाहिए।
मन पर रखें नियंत्रण बच्चों को अपने मन पर नियंत्रण रखना सिखाएं। क्योंकि अगर इंसान का मन कंट्रोल नहीं रहेगा तो जीवन में सुख नहीं मिल पाएगा वहीं सफलता पाने में भी काफी दिक्कत होगी। बच्चों को मन पर कंट्रोल करना जरूर सिखाएं क्योंकि कोई भी इंसान बचपन में जो भी सीखता है उसे जीवनभर के लिए फॉलो करता है।