बच्चों को कोविड-19 का संक्रमण होने के उदाहरण अभी तक बहुत कम देखे गए हैं, लेकिन वे भावनात्मक रूप से नाज़ुक होते हैं और महामारी एवं उसके बाद के असर के कारण उन पर जोखिम काफ़ी ज़्यादा हो गया है। महामारी की रोकथाम के लिए सामाजिक बंदिश, परस्पर दूरी, अलगाव और स्कूलों को बंद रखना कारगर उपाय हैं, लेकिन इन सबका बच्चों के मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर बहुत विपरीत असर हुआ है। लॉकडाउन, आर्थिक प्रभाव और सामाजिक नतीजों को बच्चों ने अच्छी तरह महसूस किया है।
एक्स्टेंडेट फ़ैमिली और दोस्तों के साथ सुरक्षा का अहसास पिछले कुछ महीनों में कम हुआ है; बच्चों को रोज़मर्रा के काम-काज के साथ समझौता करना पड़ा है और ऑनलाइन पढ़ाई जैसे नए तरीक़ों को अपनाना पड़ा है। परिवार में हुई बीमारी, नुक़सान और मौत ने भी ऐसे बच्चों को प्रभावित किया है, जिन्हें इस नुक़सान को सहन करना पड़ा है।
हालांकि, यह उस प्रभाव के सामने कुछ नहीं है, जो कम आय वाले परिवारों के बच्चों पर हुआ है, क्योंकि वे पहले से ज़्यादा ग़रीब हो गए हैं। जिन बच्चों के माता-पिता की नौकरी छूट गई या जिन्हें प्रवासन जैसी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, उन बच्चों को अपने परिवारों की अनिश्चित स्थितियों का सामना अलग से करना पड़ा है। इसी प्रकार, जो बच्चे विकलांगता या हिंसा के शिकार रहे हैं, उनकी कठिनाई और बढ़ी है।
कैसे पहचानें, आपका बच्चा भावनात्मक और मानसिक रूप से डिस्टर्ब्ड है?
साधारण
शब्दों में कहें तो भावनात्मक या मानसिक स्वास्थ्य का मतलब रोज़ाना ज़िंदगी
में घटित होने वाली घटनाओं का मुक़ाबला करने के लिए व्यक्ति की योग्यता,
ख़ुद से संबंधित उसकी भावनाओं और अपने आस-पास के माहौल के बारे में उसकी
प्रतिक्रिया से है। बच्चों में
भावनात्मक स्वास्थ्य के कुछ महत्वपूर्ण लक्षण इस प्रकार हैं:—
- भावनात्मक स्वास्थ्य का सीधा असर पढ़ाई-लिखाई पर होता है। आपको बच्चे के रिज़ल्ट देखकर अंदाज़ा हो जाएगा।
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बच्चा अक्सर अपने व्यवहार से बताता है कि उसे कैसा महसूस हो रहा है। जब वह
अपने बारे में अच्छा महसूस नहीं करता है तो वह अपने व्यवहार के द्वारा इसे
बताता है। जिन बच्चों का भावनात्मक स्वास्थ्य बढ़िया होता है वे बच्चे ख़ुद
को नुकसान पहुंचाने वाला काम नहीं करेंगे और अपनी उम्र के दूसरे बच्चों के
दबाव जिसे पियर ग्रुप प्रेशर भी कह सकते हैं, का सामना करने के क़ाबिल
होंगे।
- बच्चे का भावनात्मक स्वास्थ्य अगर कमज़ोर हो तो ख़ुद की योग्यताओं पर उसका भरोसा कम होगा।
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अच्छे मानसिक स्वास्थ्य वाला बच्चा मन को प्रभावित करने वाली चीजों को
बेहतर तरीके से ग्रहण करता है। उनमें अपने परिवेश में दूसरे लोगों की
भावनात्मक ज़रूरतों को समझने और उन पर बेहतर प्रतिक्रिया करने की योग्यता
विकसित होती है।
कैसे कर सकते हैं हम बच्चों की मदद?
बेशक़,
कोविड-19 महामारी से जुड़ी कई बातें हमारे नियंत्रण में नहीं हैं, लेकिन
बड़ा होने के नाते हम मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर महामारी के
प्रभाव का सामना करने में बच्चों की मदद करने के लिए ये कुछ काम कर सकते
हैं।
1. प्रभावी संवाद : संक्रमण, उसके फैलाव और नियंत्रण के
विभिन्न पहलुओं के संदर्भ में बच्चों की शंकाओं और ग़लतफ़हमियों का समाधान
करना बहुत ज़रूरी है। बच्चों की मदद करने के कुछ तरीक़े यह हो सकते हैं कि
आप उनके साथ अख़बार के वैसे समाचार पढ़ें या बोलकर सुनाएं जो इससे जुड़े
हों। उनके साथ बैठकर प्रामाणिक सूचना देने वाले वीडियो देखें या टेलीविज़न
पर समाचार देखें या रेडियो पर उन्हें सुनें। कठिन बातें बच्चों को समझाएं
और उनके सवालों के जवाब दें।
2. दैनिक कार्य की सूची बनाने में बच्चों की मदद करें :
पहले से तय रूटीन नहीं होने से बच्चा परेशान हो सकता है। इससे बचने के लिए
दिन के क्रियाकलाप को जहां तक संभव हो सके पहले से तय कर लें। सोने,
जागने, भोजन करने, काम करने और खेलने के समय को नियमित बनाने से कोविड-19
के दौरान ज़रूरी स्थिरता बनाने में मदद मिलेगी।
3. बच्चों को उनके सोशल नेटवर्क से जुड़े रहने में सहयोग दें :
आपका बच्चा अपने दोस्त को वीडियो कॉल करे, इसमें उसकी मदद के लिए आप
टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर सकते हैं या ऐसा अवसर ढूंढ़ सकते हैं जिसमें
बच्चे छोटे ग्रुप में सुरक्षित तरीक़े से एक साथ समय बिताएं। इसमें यह याद
रखना ज़रूरी है कि बच्चों को भी अपनी बातचीत में प्राइवेसी चाहिए, सोशल
नेटवर्किंग के लिए बड़ों पर निर्भर रहने से यह प्राइवेसी भंग हो सकती है;
इसलिए इसका ध्यान रखें।
4. ईमानदारी से बातचीत करें : अगर
परिवार नौकरी छूटने, आर्थिक तंगी आदि जैसी कठिन स्थिति से गुज़र रहा है, तो
बच्चे के साथ ईमानदारी से बात करने से मदद मिल सकती है। बातचीत को तथ्य पर
आधारित रखें, बच्चे को स्पष्ट रूप से समझाएं कि उसे किस प्रकार से
सामंजस्य बिठाना चाहिए, और सबसे ज़रूरी यह कि बच्चे के मन से डर और चिंता
दूर करने का प्रयास करें। बच्चे को यह भरोसा दिलाना ज़रूरी है कि परिवार एक
साथ मिलकर इस कठिन समय से निपट लेगा।
5. यक़ीन दिलाएं : जब
परिवार का कोई व्यक्ति अस्पताल में भर्ती होता है, बीमार होता है,
क्वारंटीन या आइसोलेशन में जाता है, तब बच्चे को इसके बारे में समझाने का
तरीक़ा बहुत व्यावहारिक होना चाहिए जिससे कि बात उसकी समझ में आ जाए। तथ्य
के आधार पर बात करते हुए बच्चे की चिंता और डर को दूर करें। बच्चे को बताएं
कि परिवार बीमार व्यक्ति को ठीक करने के लिए हरसंभव काम कर रहा है।
6. ख़ुद को व्यक्त करने में उनकी मदद करें : दोस्त
या प्रियजन की मौत होने पर बच्चे के दुख को दूर करने की कोशिश करें। बच्चा
अपने तरीक़े से हानि और दुख को व्यक्त करे, इसमें उसकी मदद करना
महत्वपूर्ण है।