बच्चों का बचपन उनके जीवन को संवारने में बहुत मायने रखता हैं। बचपन के समय में बच्चा जो भी सीखता हैं वह उसके साथ जीवनभर रहता हैं। बच्चे अपने बचपन का अधिकतर समय खेल-कूद में गुजारते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह खेल बच्चों की सेहत के साथ ही उनका जीवन भी संवारने का काम करते हैं। खेल के दौरान यदि बच्चों का सही तरह से मार्गदर्शक किया जाए तो वे आपके अनुभव से जिंदगी से जुड़ी कई अहम बातें सीख सकते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसी ही जरूरी बातें बताने जा रहे हैं जो बच्चों को खेल के दौरान सिखाई जा सकती हैं। आइये जानते हैं इनके बारे में...
टीम के साथ मजबूत संबंध
चाहे कोई भी गेम हो उसमें दो या दो से ज्यादा टीमें होती हैं। खेलने वाला हर बच्चा भी किसी न किसी टीमा का हिस्सा होता है। ऐसे में जब खेल शुरू होता है तो यहां बच्चा खुद के लिए नहीं बल्कि टीम के लिए खेलता है। आप चाहे किसी भी शहर से आए हों लेकिन जब आप एक टीम का हिस्सा बनते हैं तो आप खुद को नहीं बल्कि अपनी टीम को जिताने के लिए खेलते हैं। यानि कि यहां जीत अहंकार के लिए बल्कि टीम के लिए होती है। यही बात बच्चों को निजी जीवन से भी जोड़कर बताई चाहिए कि आप बड़े होकर अगर ऑफिस में या कहीं भी किसी टीम का हिस्सा बनते हैं तो जीतने की मंशा सिर्फ खुद तक ही सीमित न रखें, बल्कि इसे टीम की जीत समझें। वास्तविक जीवन में हमें एक टीम के रूप में लोगों के साथ काम करने की आवश्यकता है और इस तरह एक सामान्य लक्ष्य की दिशा में काम करते समय विचारों के अंतर को स्वीकार करने की आवश्यकता है।
लगन और मेहनत जरूरी
लाइफ में सबकुछ आसानी से हो जाए ऐसा जरूरी नहीं है। खले में बच्चों को अपना लक्ष्य हासिल करना है तो उन्हें इसके लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। मिल्खा सिंह इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। उनकी कही हुई एक बात, ‘जब तक मैं अपने पसीने की एक बाल्टी नहीं भर लेता, तब तक मैं रुकता नहीं’। खेल में बलिदान और मेहनत सबसे ज्यादा जरूरी है। इस तरह आप बच्चों को खेल के माध्यम से लगन और मेहनत का पाठ पढ़ा सकते हैं।
जीवन में जोखिम लेना
बच्चों को खेल के माध्यम से यह सिखाना जरूरी होता है कि जोखिम लेने से डरना नहीं चाहिए। हर खेम में रिस्क होता है लेकिन ऐसे में हार को पीछे छोड़ते हुए सफल बनना है लक्ष्य होना चाहिए। बच्चों को जीवन में जोखिम उठाने के बार में विस्तार से सिखाना चाहिए।
आत्म जागरूकता
खेल बच्चों को उनकी सीमाओं को समझने के अलावा उनकी ताकत और कमजोरियों को जानने का भी मौका देता है। खेल के दौरान वे समझते हैं कि वे कितनी दूर तक खुद को ले जा सकते हैं और उन्हें समय की नजाकत को देखते हुए कब रुक जाना चाहिए। बच्चों को बताना चाहिए कि इसी नियम को उन्हें अपने वास्तविक जीवन में भी लागू करना चाहिए। हमसे बेहतर कोई हमारे बारे में नहीं जानता है। इसलिए हमें अपनी कमजोरियों को सही करते हुए अपनी ताकत की दिशा में काम करना चाहिए। साथ ही वक्त की नजाकत को देखते हुए हमें अपना अगला कदम बढ़ाना चाहिए।
हारना है तो शान से हारो
खेल में हार जीत तो आम बात है। जितना जीत को लेकर हम खुशी मनाते हैं, उतना ही हमें हार के लिए भी अपने बच्चों को तैयार करना होगा। किसी भी खेल में हारना विनम्रता को सिखाता है। हार के बाद अपने प्रतिद्वंदी को बधाई देना और शान से सिर उठाकर खेल से बाहर निकलने की भी बात कुछ और ही है। खेल बच्चों को एक ऐसी सीख देता है, जिसमें वो ये सीखते हैं कि जीवन में हमेशा जीत हो ऐसा नहीं हो सकता। बल्कि कई मुकाम में हार और नुकसान का भी सामना करना पड़ता है। हमें हार को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ना चाहिए और यही बात हमें अपने बच्चों को भी सिखानी चाहिए।
खेल की सच्ची भावना, सीखते रहना
खेल के मैदान के अंदर और बाहर दोनों जगह साहस, धैर्य, सम्मान और विन्रमता को बनाए रखना जरूरी है। जीत और हार की तरह भी जीवन का अच्छा और बुरा समय होता है। खेल में बच्चों को यही सीख आप सिखाइए ताकि वो अपने जीवन की हर मुश्किल घड़ी में खुद को तैयार कर सकें, और उससे निपटने का साहस रखना सीख सकें। क्योंकि सच्ची भावना से खेला जाने वाला खेल सम्मान करना सिखाता है। चाहे वो कोच हो, विरोधी टीम का हो या रेफरी हो। बच्चे में धैर्य और अपनी भावनाओं को कंट्रोल करना सिखाता है।