लॉकडाउन में लोगों को घर में बिठाये रखने के के लिए सरकार बहुत उपाय कर रही है, इसमें से एक है रामायण का प्रसारण। इन दिनों लगभग हर घर में रामायण दिखाई जा रही है। रामायण के किरदारों में राम, लक्ष्मण और सीता से क्या सीखें ये तो हर जगह बताया जाता है। लेकिन रावण से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। इसके बारे में हम आपको बतायेगे। रावण वेद, ज्योतिष, तंत्र और योग का ज्ञाता था। वह युद्ध और मायावी कला में भी पारंगत था। रावण में कई बुराइयां थी तो अच्छाइयां भी थी। जब मरणासन्न अवस्था में था तब प्रभु श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा था, कि इस संसार में नीति, राजनीति और शक्ति का महान पंडित रावण अब विदा हो रहा है, तुम उसके पास जाओ और उससे जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा ले लो जो और कोई नहीं दे सकता। तब लक्ष्मण रावण के चरणों में बैठ गए। लक्ष्मण को अपने चरणों में बैठा देख महापंडित रावण ने लक्ष्मण को बातें बताईं, जो कि जीवन में सफलता की कुंजी है।
शुभस्य शीघ्रम पहली बात जो लक्ष्मण को रावण ने बताई वह यह थी कि शुभ कार्य जितनी जल्दी हो, कर डालना चाहिए और अशुभ को जितना टाल सकते हो, टाल देना चाहिए अर्थात शुभस्य शीघ्रम। मैं प्रभु श्रीराम को पहचान नहीं सका और उनकी शरण में आने में देर कर दी। इसी कारण मेरी यह हालत हुई। यह में पहले ही पहचान लेता तो मेरी यह गत नहीं होती।
कोई छोटा नहीं होता
महापंडित रावण ने लक्ष्मण को दूसरी सीख यह दी कि मैंने जब ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा था तब मनुष्य और वानर के अतिरिक्त कोई भी मेरा वध न कर सके ऐसा वर मांगा था, क्योंकि मैं मनुष्य और वानर को तुच्छ समझता था। यह मेरी गलती हुई। अपने सारथी, दरबान, खानसामे और भाई से दुश्मनी मोल मत लीजिए। वे कभी भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। खुद को हमेशा विजेता मानने की गलती मत कीजिए, भले ही हर बार तुम्हारी जीत हो।
रावण ने रचा था नया संप्रदाय आचार्य चतुरसेन द्वारा रचित बहुचर्चित उपन्यास 'वयम् रक्षामः' तथा पंडित मदन मोहन शर्मा शाही द्वारा तीन खंडों में रचित उपन्यास 'लंकेश्वर' के अनुसार रावण शिव का परम भक्त, यम और सूर्य तक को अपना प्रताप झेलने के लिए विवश कर देने वाला, प्रकांड विद्वान, सभी जातियों को समान मानते हुए भेदभावरहित समाज की स्थापना करने वाला था।सुरों के खिलाफ असुरों की ओर थे रावण। रावण ने आर्यों की भोग-विलास वाली 'यक्ष' संस्कृति से अलग सभी की रक्षा करने के लिए 'रक्ष' संस्कृति की स्थापना की थी। यही 'रक्ष' समाज के लोग आगे चलकर राक्षस कहलाए।
खोजी बुद्धिरावण हर समय खोज और अविष्कार को ही महत्व देता था। वह नए नए अस्त्र, शस्त्र और यंत्र बनवाता रहता था। कहते हैं कि वह स्वर्ग तक सीढ़ियां बनवान चाहता था। वह स्वर्ण में से सुगंध निकले इसके लिए भी प्रयास करता था। रावण की पत्नी मंदोदरी ने ही शतरंज का अविष्कार किया था। रावण की वेधशाला थी जहां तरह तरह के आविष्कार होते थे। खुद रावण ने उसकी वेधशाला में दिव्य-रथ का निर्माण किया था। कुंभकर्ण अपनी पत्नी वज्रज्वाला के साथ अपनी प्रयोगशाला में तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र और यंत्र बनाने में ही लगे रहते थे जिसके चलते उनको खाने-पीने की सुध ही नहीं रहती थी। कुंभकर्ण की यंत्र मानव कला को ‘ग्रेट इंडियन' पुस्तक में ‘विजार्ड आर्ट' का दर्जा दिया गया है। इस कला में रावण की पत्नी धान्यमालिनी भी पारंगत थी।
लगन का पक्कारावण जब किसी भी कार्य को अपने हाथ में लेता था तो वह उसे पूरी निष्ठा, लगन और जोश के साथ सम्पन्न कर देने तक उसका पीछा नहीं छोड़ता था। यही कारण था कि वह अनेक तरह की विद्याओं का ज्ञाता और मायावी बन गया था। वह अपनी इस ताकत के बल पर ही संपूर्ण धरती पर राज करने का सोचने लगा था। उसने कई युद्ध लड़े, अभियान चलाए और निर्माण कार्य किए। यदि व्यक्ति में किसी कार्य को करने के प्रति लगन नहीं है तो वह कोई भी कार्य जीवन में कभी भी पूर्ण नहीं कर पाएगा। इसलिए रावण से जुनूनी होना सीखना चाहिए।