जब भी कभी आदर्श पुरुष की बात की जाती हैं, तो मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्री राम का जिक्र जरूर किया जाता हैं जिनके आदर्श कई काल तक लोगों के जीवन का मार्गदर्शन करते रहेंगे। प्रभु श्री राम का आचरण और आदर्श जीवन, जिसका अनुसरण कर कोई भी सही मार्ग पर चलकर सफलता को प्राप्त कर सकता है। आज भी बड़े-बुजुर्गों के बीच यदि संस्कृति और सदाचार की बात होती है तो भगवान राम का ही नाम लिया जाता है। अगर आप जीवन में महान बनना चाहते हैं तो श्रीराम द्वारा दी गई नैतिक शिक्षाओं को अपने जीवन में उतार लें। आज इस कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान श्रीराम के उन आदर्शों के बारे में जिनका अनुसरण कर हर किसी का जीवन संवारा जा सकता हैं। आइये जानते हैं इन आदर्शों के बारे में...
दयालुता श्रीराम बहुत दयालु थे। उनकी सेना में इंसान, पशु और दानव सभी थे। बलि को हराकर सुग्रीव को राजा बनाया। शबरी के जूठे बेर खाए। हनुमान, जामवंत और अंगद को सेना का नेतृत्व करने का मौका दिया। यह श्रीराम के दयालु आचरण का ही उदाहरण है। दयालु स्वभाव मानव और पशु सभी के प्रति होनी चाहिए। भगवान राम ने अपने इसी गुण के कारण सभी को छत्रछाया में लिया।
सौम्य और संतुलित व्यक्तित्वप्रभु श्री राम के व्यक्तित्व में संतुलन मिलता है। शांत-गंभीर और सौम्य श्रीराम ने कभी अपना संतुलन नहीं खोया। उन्होंने कभी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी होने नहीं दिया बल्कि हर परिस्थति में दृढ़ता बनाए रखना ही उनका स्वभाव है। आज के मुश्कि।ल समय में हमें यही सीखना है। अनिश्चितता और संशय भरे समय में जब हर कोई टूटा हुआ, भंवर में पड़ा महसूस कर रहा है, प्रभु श्रीराम की कर्तव्य पथ पर डटे रहने की प्रेरणा काम आ सकती है। मैं तो कहूंगा यदि हम प्रभु श्रीराम के व्यक्तित्व का कुछ अंश भी, उनसे कुछ बूंद भी ग्रहण कर सकें, तो निश्चित ही अपने व्यक्तित्व और जीवन में बदलाव महसूस कर सकते हैं।
धैर्यवानभगवान श्रीराम के विशेष गुणों में एक है सहनशीलता व धैर्य। आजकल लोगों में धैर्य नाम की चीज नहीं है। उन्हें हर चीज शीघ्र व अतिशीघ्र पाने की आदत होती है। फिर चाहे वह धन हो या सफलता। इसी तत्परता के कारण लोग आगे नहीं बढ़ पाते। रामजी ने कैकेयी की आज्ञा पाकर 14 वर्ष का वनवास बिताया, समुद्र पर सेतु तैयार करने के लिए तपस्या की, उन्होंने जब माता सीता का परित्याग किया तो राजा होते हुए भी संन्यासी की तरह जीवन व्यतीत किए। सहनशीलता की ऐसी पराकाष्ठा भगवान राम की तरह आज भी हर व्यक्ति में होनी चाहिए और इस गुण को जरूर अपनाना चाहिए।
पिता का सम्मान प्रभु श्रीराम से एक बात और सीखी जा सकती है कि उन्होंने अपने पिता की हर आज्ञा को सर झुकाकर स्वीकारा किया। जब उनके राजतिलक की तैयारी चल रही थी, तो पति दशरथ से मिले वरदान स्वरूप माता कैकेयी ने भरत को सिंहासन और श्रीराम को वनवास भेजने की मांग की तो राजा दशरथ किंकर्तव्य विमूढ़ हो गए। पुत्र श्रीराम पिता के मूक आदेश का सम्मान करते हुए पत्नी सीता और लक्ष्मण के साथ खुशी-खुशी वनवास के लिए चले गए।
बेहतर प्रबंधनएक आदर्श राजा होने के साथ ही श्रीराम कुशल प्रबंधक भी थे। कम सैनिकों, संसाधनों के बिना भी इन्होंने अपने कौशल से लंका पर आक्रमण कर दिया। सेना के साथ मिलकर लंका पहुंचे के लिए पत्थर का सेतु तैयार कराया। अपने राज्य को राम राज बनाने के लिए बेहतर प्रबंधन किया।
गुरुजनों का सम्मानश्री राम से सीखा जा सकता है कि गुरु का सम्मान ही व्यक्ति को महान बनाता है। भगवान श्रीराम की विश्वामित्र से लेकर महर्षि वशिष्ठ तक के प्रति अपार भक्ति और आस्था की कहानियां सुनने को मिलती है। श्रीराम ने उन्हें हमेशा भगवान की तरह पूजा और सम्मान किया है। रामायण में भी लिखा है कि श्रीराम ने एक बार लक्ष्मण से कहा था कि गुरु की जीवन में वही भूमिका होती है जो अंधेरे में रोशनी की होती है।
आदर्श भाईआज भाई-भाई में लड़ाई-झगड़े घर-घर में होते हैं। परिवार में कलह-क्लेश की यह भी एक अहम वजह है। जिस घर में भाई-भाई के बीच मित्रता होती है, वहां पूरा परिवार खुशहाल जीवन व्यतीत करता है। इसके लिए आपको भगवान राम की तरह एक आदर्श भाई की भूमिका निभाने की जरूरत है। भगवान राम के लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के प्रति प्रेम, त्याग और समर्पण के कारण ही उन्हें आदर्श भाई कहा जाता है।
मित्रता का गुणभगवान राम ने मित्रता का रिश्ता भी दिल से निभाया। केवट, सुग्रीव, निषादराज और विभीषण सभी उनके परम मित्र थे। मित्रता निभाने के लिए भगवान राम ने कई बार स्वयं भी संकट झेले।