पेरेंट्स की सख्ती बच्चों को बना सकती हैं चिडचिडा, बनाए संतुलन

हर दंपती के लिए मां-पिता बनना एक बेहद खूबसूरत पल होता है। लेकिन दूसरी तरफ पैरेंट्स बनना इतना आसान काम भी नहीं है। कई मौके आते हैं जब आप खुद को एक पैरेंट्स के तौर पर बुरी तरह असफल महसूस करते हैं। बच्चों को पढाई के लिए डांटना जरूरी है। पेरेंटिग की इस थ्योरी में अब थोडे बदलाव की जरूरत है। अगर अनुशासन और प्यार के बीच संतुलन कायम रखते हुए बच्चे को पढऩे के लिए प्रेरित किया जाए तो निश्चित रूप से इसके बेहतर परिणाम नजर आएंगे।अपने बच्चों पर हरदम कडी चौकसी और सख्ती रखने वाले पेरेंट्स को ऐसा लगता है कि उनकी निगरानी में बच्चे बहुत अच्छी तरह पढाई कर रहे हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं होता। पेरेंट्स के ऐसे व्यवहार से वे चिडचिडे हो जाते हैं। आईये जानते हैं आप कैसे अपने बच्चो के साथ प्यार और अनुशासन के बीच संतुलन रख सकते हैं।

उन पर गर्व करें, कोसे नहीं

मां-बाप बनने के एहसास से खूबसूरत कोई एहसास नहीं होता है। यह हर किसी की जिंदगी में किसी तोहफे से कम नहीं होता है। आप खुद को खुशकिस्मत समझिए और अपने बच्चे को भी ऐसा ही महसूस कराइए। कई लोग कुछ वजहों से मां-बाप नहीं बन पाते हैं और उनकी सबसे बड़ी ख्वाहिश यही रह जाती है कि उनकी भी कोई औलाद हो। इसलिए कभी भी अपने बच्चों पर अफसोस ना करें और ना ही अपने बच्चों के अंदर ऐसी भावनाएं पनपने दें।

हौवा नहीं है पढाई

बच्चों की पढाई से जुडी समस्या इतनी भी बडी नहीं है, जिससे डर कर पेरेंट्स अपना सुकून खो दें। सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि अगर बच्चा पढाई पर ध्यान नहीं दे रहा तो यह केवल उसकी ही नहीं, बल्कि आपकी भी समस्या है। इसलिए पहले आपको अपनी दिनचर्या इस ढंग से व्यवस्थित करनी चाहिए कि बच्चे के स्टडी टाइम के दौरान आप पूरी तरह उसके साथ बैठ सकें।

कभी भी उनकी तुलना ना करें

यह एक जुर्म है कि आप अपने बच्चे की तुलना किसी और से करती हैं। चाहे वे आपके बच्चे के दोस्त हों, भाई-बहन हों या फिर कोई और। आपको यह समझना चाहिए कि हर बच्चा अपने आप में खास होता है। हर बच्चे के अलग सपने और सोच हो सकती है और यह पैरेंट्स का काम है कि वे उनकी भावनाओं और सपनों का सम्मान करें। अगर आप अपने बच्चे को किसी से कमतर बताते हैं तो वह धीरे-धीरे हीनभावना का शिकार हो सकता है।

योग्यता का सही मापदंड

यह सच है कि परीक्षा में ज्यादा अंक हासिल करने वाले बच्चों के लिए भविष्य में करियर का चुनाव आसान हो जाता है, लेकिन केवल परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर बच्चे की योग्यता का मूल्यांकन करना गलत होगा। कई बार औसत दर्जे के बच्चे भी बडे होने के बाद अपनी प्रोफेशनल लाइफ में बहुत कामयाब होते हैं। इसलिए बच्चे को एकाग्रता के साथ पढऩे के लिए प्रेरित जरूर करें, लेकिन परीक्षा में अधिकतम अंक हासिल करने के लिए उस पर दबाव न बनाएं।

कभी भी उन्हें कड़ी सजा ना दें

जो बच्चा गलतियां ना करें, शरारत ना करें, वह बच्चा बच्चा नहीं है। इसका यह मतलब नहीं है कि आप उनकी हर गलती पर आंख मूंद लें। बस बात इतनी है कि उन्हें सजा और डांट एक अनुपात में हो। किसी भी परिस्थिति में उन्हें शारीरिक रूप से सजा ना दें। अपना सम्मान खोने के साथ-साथ बच्चों को पीटना उन्हें हिंसक बना देती हैं। आपका बच्चा दूसरों से भी मारपीट करना शुरू कर देगा और उसके अंदर आक्रामकता बढ़ती जाएगी। अपने बच्चों को सबक सिखाने के लिए दूसरे तरीकों का इस्तेमाल करें लेकिन उन्हें मारें-पीटे नहीं।