क्या जिद्दीपन की वजह से बच्चा करने लगा हैं बहस, रखें इन बातों का ध्यान

किसी भी माता-पिता के लिए उनके बच्चों की परवरिश करना एक बड़ी चुनौती होती हैं जिसमें उन्हें बच्चो को सही सलीका, अनुशासन, मानवता जैसी कई अच्छी चीजें सिखानी होती हैं ताकि वे खुद को एक आदर्श इंसान के रूप में प्रदर्शित कर सकें। लेकिन देखा जाता है कि कई पेरेंट्स के लिए उनके बच्चों का जिद्दीपन या बहस करने की आदत चिंता का कारण बन जाती हैं। ऐसे में आपको अपनी परवरिश के तरीकों में कुछ बदलाव लाने की जरूरत होती हैं ताकि बच्चों के व्यवहार को बदला जा सकें। आज इस कड़ी में हम आपको इससे जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं कि किस तरह आपको ऐसी स्थिति में बर्ताव करने की जरूरत हैं और आप अपने बच्चों के बहस करने की इस आदत को बदल सकते हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में...

शांत रहें

अगर आप हर बात पर अपने बच्चे पर चिल्लाएंगी तो शायद आपका बच्चा आपके चीखने को जुबानी लड़ाई का निमंत्रण समझने लगे। इससे आपका बच्चा अपनी तहजीब और भूलता चला जाएगा। आप हमेशा बातचीत को एक निष्कर्ष तक ले जाएं ना कि किसी लड़ाई में उसे तब्दील करें। आप वयस्क हैं औऱ बच्चों की तरह बर्ताव बिल्कुल ना करें। आपको अपने बच्चों को कुछ समझाने में उसकी मदद करनी है, ये याद रखें।

बात समझाएं

कई बच्चे अपने माता-पिता की पूरी बात सुनते नहीं हैं और पहले ही उनसे बहस करना शुरू कर देते हैं, जो कि गलत है। ऐसे में आपको बतौर माता-पिता पहले बच्चे को प्यार से अपनी बात समझानी चाहिए। इससे हो सकता है कि बच्चा आपकी बात को समझ जाए और बहस करना बंद कर दें।

उनकी बात को सुनें

आपको हमेशा बच्चे की बात को सुनना चाहिए। कई माता-पिता बच्चे की आवाज को दबाने की कोशिश करते हैं। इससे बच्चे में नकारात्मक भावना पैदा हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि आपको अपने बच्चे की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए और उसके बाद उसकी बातों पर रिएक्ट करना चाहिए।

बच्चों के साथ जबर्दस्ती बिल्कुल ना करें

जब आप अपने बच्चों के साथ किसी भी चीज को लेकर जबर्दस्ती करते हैं तो वे स्वभाव से विद्रोही होते चले जाते हैं। तत्कालिक तौर पर तो कई बार जबर्दस्ती से आपको समाधान तो मिल जाता है लेकिन आगे के लिए ये खतरनाक होता चला जाता है। बच्चों से जबरन कुछ करवाने से वे वही कुछ करने लगते हैं जिनसे उन्हें मना किया जाता है। आप अपने बच्चों से कनेक्ट होने की कोशिश करें।

सही गलत में फर्क बताएं

बच्चे को ये समझना जरूरी है कि सही क्या है और क्या गलत है। उदाहरण के लिए अगर आपका बच्चा किसी गलत काम को करने के लिए जिद्द कर रहा है, तो गुस्से की जगह उसे प्यार से समझाएं कि आप उसे उस काम के लिए क्यों रोक रहे हैं, वो काम करने से क्या गलत होगा आदि।

खुले हुए विकल्प दें

अधिकांश माता-पिता अपने बच्चे के विचारों को खारिज करते हैं और उस पर अपना खुद के विचारों का दबाव डालते हैं। यह बच्चे को उसकी आवाज उठाने और तर्कों का उपयोग करके अपनी बात कहने करने का मौका देता है क्योंकि उन्हें लगता है धीमी आवाज में उनकी बातों का आप पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। आपके बच्चे ने जो कुछ भी कहा है उसे खारिज करने के बजाय, उसके सामने विकल्प पेश करें। यह आप दोनों के काम आएगा। तब ये महसूस कराएगा कि उनके पास चुनने के लिए कई विकल्प हैं, यह आपको उन पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद करेगा।

बोलने का मौका दें

हर बात अगर आप अपने बच्चे को बताएंगे कि वो यहां गलत हैं और यहां सही तो ये उन्हें आपसे बहस करना शुरु करेंगे और फिर ये उनकी आदत में शामिल हो जाएगा। इसलिए अपने और उनके बीच एक सकारात्मक इंटरैक्शन रखें और दोनों तरफ से बात करें। ध्यान रखें कि स्वस्थ तर्क हमेशा अच्छे होते हैं इसलिए उसे बोलने का मौका दें। इससे आगे चलकर दूसरों को समझाने में उसके कौशल में सुधार आएगा और वो एक मजबूत व्यक्तित्व वाले व्यक्ति बन पाएंगे।

सौदेबाजी

कई बार अपने बच्चों के साथ निगोशिएट करना भी जरूरी होता है। जब बच्चों को अपनी मर्जी की चीज नहीं मिलती है तो वे जिद दिखाने लगते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि आफ उनकी हर मांग को मान लें। इसका मतलब है सूझबूझ और व्यावहारिक हल। उदाहर के तौर पर- अगर आपका बच्चा सही वक्त पर सोना नहीं चाह रहा है तो उसी वक्त पर सोने का दबाव डालने के बजाए थोड़ी सी ढील दे दें जिससे कि दोनों की मांगे पूरी होती नजर आए।