भारत देश को मंदिरों का देश कहा जाता हैं जहां आपको एक से बढ़कर एक भव्य मंदिर देखने को मिलते हैं। आज इस कड़ी में हम बात करने जा रहे हैं जयपुर के प्रसिद्ध गोविन्द देव जी मंदिर के बारे में। 1590 में जयपुर के राजा मान सिंह द्वारा निर्मित यह प्रसिद्ध मंदिर आज कई लोगों के लिए आस्था का केंद्र हैं। कुछ लोग तो यहां दर्शन किए बिना अन्न-जल ग्रहण तक नहीं करते। गोविन्द देव जी कृपा से जयपुर की धार्मिक पहचान पूरी दुनिया में स्थापित हो गई है। ऐसा माना जाता है कि गोविंद जी की मूर्ति बिल्कुल भगवान कृष्ण की तरह दिखती है। जयपुर के महाराजा, महाराजा सवाई जय सिंह भगवान के भक्त थे और इसलिए, उनके महल को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि मूर्ति को आमेर से जयपुर स्थानांतरित करने के बाद, वह सीधे अपने महल से भगवान की एक झलक प्राप्त कर सके। आज हम आपको गोविन्द देव जी मंदिर से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं।
गोविंद देव जी मंदिर का इतिहास माना जाता है की गोविंद देव जी की यह मूर्ति वृंदावन में स्थापित थी लेकिन सम्राट औरंगजेब द्वारा मंदिरो को नष्ट करने के प्रयास के कारण राजा सवाई जय सिंह द्वारा मूर्ति को जयपुर स्थानांतरित कर दिया गया था। और कुछ समय पश्चात गोविंद देव जी के मंदिर का निर्माण 1590 ई में आमेर के बादशाह अकबर ने करबाया था और मुगल बादशाह अकबर ने गायों के रहने और खिलाने के लिए 135 एकड़ जमीन भी दी थी। गोविंद देव जी मंदिर का काम खत्म होने के बाद चैतन्य महाप्रभु की मूर्ति को भगवान कृष्ण की मूर्ति के दाहिने हिस्से में रखा गया था।
गोविन्ददेव जी के विग्रह की कथा गोविन्ददेव जी का जो वर्तमान विग्रह जयपुर में विराजमान हैं, उसकी बहुत सुंदर कथा का वर्णन मिलता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने यह विग्रह बनवाया था। वज्रनाभ की दादी ने भगवान कृष्ण को मानव स्वरूप में देखा था। वज्रनाभ ने भगवान का जब पहला विग्रह तैयार करवाया उसे देखकर वज्रनाभ की दादी ने कहा कि विग्रह के पांव और चरण तो बिल्कुल कृष्ण जैसे बने लेकिन अन्य अवयव नहीं मेल खाते। इस विग्रह को मदनमोहन जी के नाम से जाना गया और यह वर्तमान में करौली में विराजमान हैं। वज्रनाभ ने भगवान कृष्ण का दूसरा विग्रह तैयार करवाया। उसे देखकर उनकी दादी ने कहा कि वक्षस्थथ और बाहु सही बने है। बाकि मेल नहीं खाते हैं। इस विग्रह को गोपीनाथ जी के नाम से जाना गया। गोपीनाथ जी वृंदावन में विराजमान हैं। इसके बाद तीसरी मूर्ति बनाई गई जिसे देखकर वज्रनाभ की दादी ने घूंघट कर लिया और कहा कि यह भगवान की साक्षात मूर्ति है। इन्हें गोविन्ददेव जी के नाम से ख्याति मिली और वर्तमान वे जयपुर में विराजमान हैं।
गोविंद देव जी मंदिर की वास्तुकला गोविंद जी का मंदिर बलुआ पत्थर और संगमरमर से बना है जिसकी छत सोने से ढकी है। मंदिर की इमारत की वास्तुकला में राजस्थानी, मुस्लिम और साथ ही शास्त्रीय भारतीय तत्वों का मिश्रण है। चूंकि यह एक शाही निवास के बगल में बनाया गया था, इसलिए दीवारों को झूमरों के साथ-साथ चित्रों से सजाया गया है। मंदिर भी एक हरे भरे बगीचे से घिरा हुआ है और बगीचे को ‘तालकतोरा’ नाम से जाना जाता है और यह बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त है।
श्री गोविन्ददेव जी की पोशाक ठाकुर जी की पोशाक मौसम के अनुसार मुख्य से दो तरह की होती है : सर्दी की पोशाक और गर्मी की पोशाक। सर्दी की पोशाक जामा पोशाक कहलाती है तथा सूती, सिल्क, रेशम व सिन्थेटिक रेशों और पारचा की बनी होती है। गर्मी की पोशाक में धोती-दुपट्टा शामिल है एवं यह सूती कपड़े, वायल, मलमल और सिल्क की होती है। साधारणतया सभी पोशाकों पर गोटा लगाया जाता है। पुरानी पोशाकों पर तो यह सच्चा, सोने चाँदी से ही बना हुआ होता था। त्योहार, उत्सव व विशेष दिनों में पोशाकें अलग-अलग होती है
गोविंद देव जी जाने का सबसे अच्छा समय अगर आप जयपुर में गोविंद देव जी मंदिर घूमने जाने का प्लान बना रहे हो तो आपको बता दे की गोविंद देव जी मंदिर जयपुर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर और फरवरी के महीनों के बीच है, जो राजस्थान में सर्दियों के मौसम को चिह्नित करते हैं। जो आपकी यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय होता है। गर्मियों का मौसम जयपुर की यात्रा के लिए उतना उचित नहीं होता है क्योंकि इस तापमान 40° C तक बढ़ जाता है जो आपकी जयपुर की यात्रा को बाधित कर सकता है।