अगर बच्चा छोटी-छोटी बातों पर करता है गुस्सा, तो इन 5 आदतों को सिखाएं; तुरंत महसूस होगी अपनी गलती

बचपन वो समय होता है जब बच्चे हर नई चीज को बेहद जल्दी सीखते हैं, और यह समय उनके मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह उम्र बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण की शुरुआत होती है। इसलिए, अगर आपका बच्चा छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगे या अपनी गलतियों को स्वीकार करने में कतराता हो, तो यह एक संकेत हो सकता है कि उसे कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक और भावनात्मक कौशल सीखने की आवश्यकता है। गुस्सा आना एक सामान्य भावना है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि बच्चा यह समझे कि गुस्से को कैसे सही तरीके से व्यक्त किया जाए और दूसरों के साथ विनम्रता से पेश आए। बच्चों में आत्मविश्वास और जिम्मेदारी की भावना विकसित करना बहुत जरूरी है। यदि बच्चे को सिखाया जाए कि वह अपनी गलतियों को स्वीकार करें और माफी मांगें, तो वह जीवन में अपनी भावनाओं और रिश्तों को बेहतर तरीके से संभाल पाएगा। तो, अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा एक समझदार, संवेदनशील और जिम्मेदार इंसान बने, तो उसे इन 5 आदतों को सिखाना शुरू करें। इन आदतों के माध्यम से वह अपने गुस्से को नियंत्रित करना और अपनी गलतियों को समझकर सुधारने में सक्षम होगा।

फीलिंग्स को पहचानना सिखाएं

बच्चे अक्सर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं, जिससे वे गुस्से में जल्दी प्रतिक्रिया करते हैं। उन्हें यह समझना जरूरी है कि गुस्सा सिर्फ एक भावना है, और इसके अलावा भी कई अन्य भावनाएँ होती हैं जिनसे वे जूझते हैं। जब बच्चों को उनकी भावनाओं के बारे में सिखाया जाता है, तो वे समझ पाते हैं कि गुस्सा केवल एक अस्थायी स्थिति है, जो किसी और भावना का परिणाम हो सकती है, जैसे निराशा, डर, या थकावट। इसलिए, उन्हें यह सिखाना जरूरी है कि वे अपने इमोशन्स को सही तरीके से पहचानें और उन्हें नाम दें। जैसे, तुम्हें गुस्सा आ रहा है?, क्या तुम परेशान हो?, क्या तुम उदास महसूस कर रहे हो?। जब बच्चे खुद अपनी फीलिंग्स को पहचान सकते हैं और उन्हें व्यक्त करने का तरीका जानते हैं, तो वे गुस्से के बजाय अपने विचारों और भावनाओं को संवाद के माध्यम से साझा करने में सक्षम होंगे। इसके अलावा, बच्चे को यह भी समझाएं कि यह कोई बुरी बात नहीं है कि वह गुस्सा महसूस करे, लेकिन इसे ठीक से व्यक्त करने और शांत रहने का तरीका सीखना जरूरी है। जब वह अपनी भावनाओं को समझने और पहचानने लगेगा, तो वह गुस्से को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर पाएगा और उसे शांतिपूर्ण तरीके से व्यक्त करेगा।

'माफी' को शर्म नहीं, समझदारी बताएं

बच्चे अक्सर माफी मांगने से कतराते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनकी इमेज कमजोर हो सकती है। यह सोच उन्हें गलत तरीके से सिखाई जाती है, क्योंकि माफी मांगना शर्म की बात नहीं, बल्कि एक समझदार और जिम्मेदार व्यक्ति की पहचान होती है। जब हम अपनी गलती को स्वीकारते हैं और माफी मांगते हैं, तो यह दर्शाता है कि हम अपनी भावनाओं और रिश्तों की कद्र करते हैं। आप जब भी गलती करें, तो बच्चे के सामने माफी मांगें, चाहे वह घर के किसी सदस्य से हो या बच्चे से ही। उदाहरण के लिए, अगर आप गलती से बच्चे को डांट देते हैं या किसी और से कुछ गलत कहते हैं, तो उसे यह कहें कि मुझे माफ करना, मैं गुस्से में था और मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। इससे बच्चा यह सीखेगा कि गलती करना इंसान का हिस्सा है, लेकिन माफी मांगकर हम अपनी गलती को सुधार सकते हैं। जब बच्चा यह देखेगा कि माफी मांगना कोई कमजोरी नहीं बल्कि समझदारी है, तो वह खुद भी माफी मांगने में सहज महसूस करेगा और भविष्य में अपनी गलतियों को स्वीकार करने में न हिचकेगा। यह उसे एक विनम्र, समझदार और जिम्मेदार व्यक्ति बनने में मदद करेगा।

शांत होने की तकनीकें सिखाएं

गुस्सा आना बच्चों के लिए सामान्य है, लेकिन जब गुस्से में वे तुरंत रिएक्ट करते हैं, तो यह उनके मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए सही नहीं होता। इस स्थिति से निपटने के लिए, बच्चों को शांत होने की तकनीकें सिखाना जरूरी है। उन्हें यह सिखाना कि गुस्से में तुरंत प्रतिक्रिया देने से अच्छा है कि वह कुछ पल ठहरे और अपनी भावनाओं को समझे, यह बहुत फायदेमंद हो सकता है। आप बच्चे को गहरी सांस लेने या गिनती गिनने की तकनीक सिखा सकते हैं। उदाहरण के लिए, आप कह सकते हैं, जब भी गुस्सा आए, तो पांच तक गिनो और फिर गहरी सांस लो। इससे बच्चा अपने गुस्से को शांत करने की प्रक्रिया को समझेगा और रिएक्शन देने से पहले ठंडे दिमाग से सोचेगा। आप बच्चे के साथ यह खेल-खेल में भी कर सकते हैं। जैसे, अब हम शांति अभ्यास करेंगे। जब भी गुस्सा आए, तो गिनती गिनो और फिर बताओ, क्या करना चाहिए? धीरे-धीरे, यह आदत बन जाएगी और बच्चा बिना गुस्से में आए अपने विचारों को व्यक्त कर पाएगा। इस तरह की तकनीकें न केवल गुस्से को नियंत्रित करने में मदद करती हैं, बल्कि यह बच्चों को मानसिक संतुलन और भावनात्मक समझ भी सिखाती हैं, जिससे वह जीवन में हर परिस्थिति का सामना शांतिपूर्ण तरीके से कर पाएंगे।

पॉजिटिव बातों का सहारा लें

जब बच्चा कोई गलती करता है, तो उसे डांटना या चिल्लाना कभी भी असरदार तरीका नहीं होता। इससे बच्चा डिफेंसिव हो जाता है और वह अपनी गलती स्वीकार करने के बजाय बहाना बनाने की कोशिश करता है। इसके बजाय, पॉजिटिव और शांति से भरी बातों का इस्तेमाल करना बहुत प्रभावी हो सकता है। इस तरह से बच्चे को न केवल अपनी गलती का एहसास होता है, बल्कि वह माफी मांगने में भी सहज महसूस करता है।

आप बच्चे के साथ शांत और सकारात्मक भाषा में संवाद करें। उदाहरण के लिए, तुम्हारा ये बरताव ठीक नहीं था, क्या तुम सोच सकते हो कि तुमने क्या गलत किया? इस तरह के सवाल बच्चे को आत्मनिरीक्षण करने के लिए प्रेरित करते हैं। वह खुद से सोचने लगता है कि क्या वह सही कर रहा था, और धीरे-धीरे माफी मांगने की आदत डालता है।

यह तरीका बच्चों में आत्म-जिम्मेदारी और समझदारी को बढ़ावा देता है, साथ ही वह भावनात्मक रूप से भी परिपक्व होते हैं। पॉजिटिव और शांत शब्दों का इस्तेमाल करके, आप अपने बच्चे को न केवल उसकी गलती समझा सकते हैं, बल्कि उसे सही तरीके से सुधारने का रास्ता भी दिखा सकते हैं।

गुड रोल मॉडल बनें

बच्चों के व्यवहार और आदतें उन्हीं से सीखने के सबसे प्रभावशाली तरीके होते हैं जो वे घर में देखते हैं। यदि घर में बड़े गुस्सा करते हैं, अपनी गलती पर टालमटोल करते हैं या माफी नहीं मांगते, तो बच्चा भी वही सीखता है। बच्चे अक्सर शब्दों से ज्यादा क्रियाओं से प्रभावित होते हैं, इसलिए यह जरूरी है कि हम अपने व्यवहार में आदर्श प्रस्तुत करें। यदि आप अपनी गलती स्वीकार करते हैं, माफी मांगते हैं और शांत रहते हैं, तो आपका बच्चा भी यही व्यवहार अपनाएगा। उदाहरण के लिए, जब आप गलती करें, तो बच्चे के सामने ही माफी मांगें और उन्हें यह दिखाएं कि गलती स्वीकार करना कोई शर्म की बात नहीं, बल्कि एक समझदारी और जिम्मेदारी का हिस्सा है। दिखाने से ज्यादा बताने की प्रभावशीलता ज्यादा होती है। बच्चे उस आदत को अपनाते हैं जिसे वे अपने माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों के व्यवहार में देखते हैं। इसलिए, अगर आप अच्छे रोल मॉडल बनते हैं, तो बच्चे को भी वही गुण आत्मसात करने में मदद मिलती है।

बच्चों को माफी मांगने का तरीका सिखाएं

सिर्फ सॉरी कहना काफी नहीं होता, बच्चों को यह समझाना भी जरूरी है कि माफी कैसे सही तरीके से मांगी जाती है। उदाहरण के लिए, जब बच्चा अपनी गलती को समझे और माफी मांगे, तो यह कुछ इस तरह हो सकता है:

मुझे माफ करना, मैंने तुम्हारी पेंसिल तोड़ दी।
मैंने गुस्से में बात की, मुझे पछतावा है।

इससे बच्चे सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि उन शब्दों के पीछे की फीलिंग्स को भी समझ पाएंगे। उन्हें यह सिखाना कि माफी मांगने का मतलब सिर्फ गलती का एहसास करना नहीं, बल्कि उस गलती से सीखना भी है। यह आदत उन्हें जीवनभर मदद करेगी, ताकि वे अपनी भावनाओं को पहचान सकें और उन्हें सही तरीके से व्यक्त कर सकें।

गुस्सा और गलतियां बच्चों के लिए सामान्य हैं, लेकिन इन आदतों को बच्चों की दिनचर्या का हिस्सा न बनने दें। इसलिए, सही बरताव और अपनी जिम्मेदारी को समझने के लिए सही मार्गदर्शन देना आवश्यक है। जब आप प्यार, धैर्य और थोड़े मार्गदर्शन के साथ इन आदतों पर काम करेंगे, तो आपका बच्चा न केवल अपनी भावनाओं को संभालना सीखेगा, बल्कि जिम्मेदार और सेंसिटिव इंसान भी बनेगा।