
हर किसी को जब रूटीन से थोड़ी राहत मिलती है, तो मन को सुकून मिलता है। ऐसे में बच्चे भला कैसे पीछे रहें! यही कारण है कि बच्चे पूरे साल गर्मी की छुट्टियों का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं। न सुबह छह बजे की अलार्म की झंझट, न ही रात 10 बजे तक बिस्तर में घुस जाने की पाबंदी। दिनभर आम, आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक और जंक फूड का आनंद उठाना, और किसी रोकटोक का डर भी नहीं। लेकिन अब वो मस्ती भरे दिन पीछे छूटने वाले हैं। स्कूल दोबारा खुलने को हैं और अब ज़रूरत है बच्चों को धीरे-धीरे रूटीन की पटरी पर वापस लाने की।
रूटीन में लौटने की चुनौती, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
जर्नल ऑफ पेरेंटिंग स्टाइल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, छुट्टी के बाद बच्चों को दोबारा पुराने रूटीन में लाना, बच्चों और पेरेंट्स दोनों के लिए ही आसान नहीं होता। फैमिली एंड लाइफ कोच और जानी-मानी मनोचिकित्सक डॉ. दीपिका चौहान बताती हैं, “जब स्कूल बंद होते हैं, तब बच्चों पर सुबह जल्दी उठने या रात को समय पर सोने का कोई दबाव नहीं होता। ऐसे में छुट्टियों के बाद स्कूल शुरू होने पर सुबह का अलार्म ही एक झटका बन जाता है। खाने-पीने का समय तय नहीं होता, और बच्चे समर कैंप, खेलकूद या फोन में लगे रहते हैं। इसी कारण से अभिभावक खुद भी लचीले रूटीन में ढल जाते हैं। खासकर माएं जो आमतौर पर बच्चों के साथ उठती हैं, उन्हें भी सुबह जल्दी उठने की जरूरत महसूस नहीं होती। अब जब स्कूल फिर से शुरू होंगे, तो यह बदलाव एक तरह से बच्चों और माओं—दोनों के लिए थोड़ा परेशान करने वाला हो सकता है। कई बार तो कुछ बच्चे स्कूल जाने से पहले ही दुखी और चिड़चिड़े हो जाते हैं।”
आखिर रूटीन इतना जरूरी क्यों?'जर्नल ऑन पेरेंटिंग स्टाइल' इस बात पर जोर देता है कि बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए तय दिनचर्या का पालन बेहद फायदेमंद होता है। डॉ. दीपिका इसका एक प्रेरणादायक उदाहरण देती हैं, “मेरे एक क्लाइंट का बेटा पढ़ाई में औसत था लेकिन उसने पहले ही प्रयास में NEET UG की परीक्षा पास कर ली। इसका राज सिर्फ एक था – उसकी नियमित और अनुशासित दिनचर्या। उसने हर विषय के लिए समय बांटा हुआ था। यहां तक कि उसने खेलने, म्यूजिक सुनने और योग के लिए भी वक्त तय कर रखा था।”
डॉ. दीपिका आगे कहती हैं कि एक सधा हुआ रूटीन न सिर्फ बच्चे की जिंदगी को व्यवस्थित करता है, बल्कि उसे एक आत्मनिर्भर और सफल इंसान बनाने की नींव भी रखता है। बच्चे जब एक तयशुदा दिनचर्या अपनाते हैं, तो उनके अंदर सुरक्षा की भावना पैदा होती है। वे जानते हैं कि क्या करना है, कब करना है और कैसे करना है। इससे आत्मविश्वास भी बढ़ता है और उनकी ग्रोथ में भी मदद मिलती है।
अच्छी नींद सबसे जरूरी है – क्योंकि नींद से ही मिलती है ऊर्जा और सकारात्मकताडॉ. दीपिका के अनुसार, जब छुट्टियां खत्म होती हैं और स्कूल दोबारा शुरू होते हैं, तो बच्चों के लिए रूटीन में लौटना किसी पुराने इंजन को फिर से स्टार्ट करने जैसा होता है। उनका शरीर धीरे-धीरे आराम का आदी हो चुका होता है, ऐसे में अचानक जल्दी उठना या समय पर सोना उनके मन और शरीर दोनों के लिए चुनौती बन जाता है।
ऐसे में जरूरी है कि बच्चे को दोबारा समय पर सोने और उठने की आदत डालें। रात में सोने से पहले उन्हें कोई पसंदीदा किताब पढ़ने को दें या ध्यान जैसे अभ्यास से उनका मन शांत करें। नींद लाने वाले एप्स, जैसे स्लीप साउंड्स या प्रकृति की आवाज़ें बजाने वाले प्लेलिस्ट का सहारा भी ले सकते हैं। ये आदतें उनके नींद के पैटर्न को सुधारेंगी और उन्हें मानसिक रूप से अगले दिन के लिए तैयार रखेंगी।
संतुलन जरूरी है – स्क्रीन टाइम और रियल लाइफ के बीच सही तालमेल बैठाएंआज के दौर में स्क्रीन बच्चों की जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बन चुकी है। ऑनलाइन क्लास, गेम्स, वीडियो, सोशल मीडिया – हर जगह उनकी नजर स्क्रीन पर होती है। ऐसे में जरूरी है कि आप तकनीक के साथ-साथ डिसिप्लिन भी सिखाएं। स्क्रीन टाइम के लिए स्पष्ट नियम बनाएं, और उन्हें यह सिखाएं कि स्क्रीन का इस्तेमाल सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि सीखने और खुद को बेहतर बनाने के लिए भी किया जा सकता है।
घर में ‘टेक-फ्री ज़ोन’ बनाएं, जहां कोई गैजेट न चले। बच्चों को आउटडोर गेम्स, हार्ड बुक्स और दोस्तों के साथ खेलने की आदत डालें। उनके पढ़ाई के लिए एक अलग कोना तय करें – यह उनके मन को फोकस्ड बनाएगा और रूटीन में ढलने में मदद करेगा।
पढ़ाई का समय तय हो – और पढ़ना सिर्फ नंबरों के लिए नहीं, सोच को व्यापक करने के लिए होबच्चों को यह समझाएं कि पढ़ाई केवल अच्छे नंबर लाने के लिए नहीं होती, बल्कि यह उन्हें दुनिया को समझने, खुद को जानने और बेहतर सोचने के लिए जरूरी है। दिन का कोई एक समय – चाहे सुबह हो या रात का – सिर्फ पढ़ने के लिए तय करें। सिर्फ कोर्स नहीं, फिक्शन, कॉमिक्स, साइंस मैगजीन जैसी चीज़ें भी उनकी सोच को और मज़बूत बनाएंगी। ये छोटी-छोटी आदतें उन्हें पढ़ने के प्रति आकर्षित करेंगी।
स्कूल बैग भी बोले कुछ – अव्यवस्था से बाहर लाएं अनुशासनअक्सर स्कूल बैग की अस्त-व्यस्तता बच्चे के मानसिक रूटीन को प्रभावित करती है। सुबह की हड़बड़ी से बचने के लिए उन्हें रात में ही बैग पैक करने की आदत डालें। बैग को समय-समय पर खाली करवाएं, अनावश्यक चीजें निकालें और हर विषय की ज़रूरी किताब-कॉपी सलीके से रखें। ये आदतें न सिर्फ व्यवस्थित बनाएंगी, बल्कि बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना भी सिखाएंगी।
शोध भी करते हैं इस बात की पुष्टि – रूटीन बनाता है मजबूत इंसान Journal of Family Theory & Review की रिपोर्ट के अनुसार, जिन बच्चों की दिनचर्या तय होती है, वे न सिर्फ शैक्षणिक और सामाजिक स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करते हैं बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी ज्यादा मजबूत होते हैं।
American Journal of Lifestyle Medicine बताता है कि जो बच्चे रूटीन का पालन करते हैं, वे ज्यादा जिम्मेदार, स्किलफुल और भावनात्मक रूप से परिपक्व होते हैं।