नवरात्रि 2022 : करें मध्यप्रदेश के इन 9 प्रसिद्ध देवी मंदिरों के दर्शन, लगता हैं भक्तों का जमावड़ा

आज 2 अप्रैल से नवरात्रि के पावन पर्व की शुरुआत हुई हैं जो कि मातारानी को समर्पित होता हैं। आज के दिन घट स्थापना कर अगले नौ दिन मातारानी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती हैं। भक्त मातारानी के दर्शन करने उनके मंदिरों में पहुंचते हैं। देशभर में मातारानी के कई प्रसिद्द मंदिर हैं। आज इस कड़ी में हम बात करने जा रहे हैं भारत का दिल कहा जाने वाला मध्य प्रदेश में स्थित मातारानी के विभिन्न मंदिरों की। मध्य प्रदेश धार्मिक महत्व की दृष्टी से भारत का एक अहम राज्य हैं। यहाँ कई प्राचीन और विशाल मंदिर स्थित हैं जोकि पर्यटकों के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नही हैं। आज इस कड़ी में हम आपको मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध देवी मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर के श्रद्धालुओं की आस्था के केन्द्र हैं और देश के हर कोने से इन मंदिरों में अपनी मुराद लेकर पहुंचते हैं। तो आइये जानते हैं इनके बारे में...

मां चामुंडा और तुलजा भवानी मंदिर, देवास

मध्य प्रदेश के देवास में मां चामुंडा-तुलजा भवानी देवी मंदिर स्थित है। यह 52 शक्तिपीठों में से एक है। अन्य शक्तिपीठों पर माता सती के अंग और आभूषण गिरे थे लेकिन यहां माता सती का रक्त गिरा था। मुख्य रूप से देवी के दो मंदिर हैं जिन्हें छोटी माता (चामुंडा माता) और अन्य बड़ी माता (तुलजा भवानी माता) कहा जाता है। यह मंदिर क्षिप्रा नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। महाकाल के दर्शन के लिए आने वाले मां चामुंडा और तुलजा भवानी के दर्शन के लिए आते हैं।

मां शारदा मंदिर, मैहर

मध्य प्रदेश के प्रमुख दर्शनीय मंदिरों में से एक सतना जिले में मैहर देवी मंदिर है। देवी शारदा के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर त्रिकुट पहाड़ी के ऊपर स्थित है। माता सती के 51 पीठों में से एक माने जाने वाले मैहर देवी मंदिर में 1000 से भी अधिक सीढ़ियां है। ऐसी मान्यता है कि सती माता के गले का हार गिरने से इस पवित्र स्थान का नाम मैहर रखा गया है। मैहर की मां शारदा को आला और उदल की इष्टदेवी कहा जाता है। यह मंदिर बहुत जागृत एवं चमत्कारिक माना जाता है। कहते हैं कि रात को आला-उदल आकर माता की आरती करते हैं, जिसकी आवाज नीचे तक सुनाई देती है।

बिजासन माता मंदिर, सलकनपुर

मध्य प्रदेश के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में शामिल बिजासन माता मंदिर सलकनपुर भक्तो के बीच बहुत लौकप्रिय हैं। यह मंदिर माता दुर्गा के बिजासन रूप के लिए प्रसिद्ध है जोकि 800 फीट की उंचाई पर पहाड़ों में जाकर बसा है। सलकनपुर धाम में नवरात्री के समय बहुत भीड़ होती है जब हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते है। माता के दर्शन की एक झलक के लिए भक्त नवरात्री के अवसर पर दूर-दूर से पैदल चलकर आते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें पिपरिया से सलकनपुर तक पैदल आने वाले भक्तो की लम्बी कतार लगी रहती हैं। यह मंदिर सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक अपने भक्तों का स्वागत करता है।

मां पीतांबरा पीठ, दतिया

मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा पीठ देश के लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि मां पीतांबरा राजा और रंक सभी पर एक समान कृपा बरसाती हैं। बताया जाता है कि 1935 में परम तेजस्वी स्वामी जी ने इस सिद्धपीठ की स्थापना की थी। यहां मां पीतांबरा चतुर्भुज रुप में विराजमान हैं। उनके एक हाथ में गदा, दूसरे में पाश, तीसरे में वज्र और चौथे हाथ में राक्षस की जिह्वा है। मां पीतांबरा को शुत्रु नाथ की अधिष्ठात्री देवी और राजसत्ता की देवी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि मां पीतांबरा में विधि-विधान से किया गया अनुष्ठान मनोकामना पूरी करता है।

कालिका माता मंदिर, रतलाम

मध्य प्रदेश के रतलाम में कालिका माता मंदिर स्थित है। इस मंदिर का इतिहास लगभग 300 साल पुराना है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां स्थित माता कवलका, मां काली और काल भैरव बाबा की मूर्तियां मदिरापान करती हैं। इस कारण लोग मां को प्रसन्न करने के लिए मंदिर में मदिरा का भोग लगाते हैं। यह बहुत ही चमत्कारिक मंदिर है ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में माता कालिका की मूर्ति के सामने खड़े होने पर शरीर में विशेष उर्जा का संचयन होता है।


शीतला माता मंदिर, ग्वालियर

माँ शीतला मंदिर एक प्राचीन देव स्थान है जो की ग्वालियर शहर से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर ग्वालियर करेरा मार्ग पर स्थित है। इस चमत्कारी मंदिर क्षेत्रीय लोगो के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। नवरात्र के समय में हजारों श्रद्धालु ग्वालियर शहर से पैदल चलकर माँ शीतला के दर्शन करने आते है। यह एक अद्भुत स्थल है यहाँ एक बार जा कर अवश्य ही माता रानी का आशीर्वाद लेना चाहिए।


बगलामुखी माता मंदिर, आगर

त्रिशक्ति माता बगलामुखी मंदिर आगर जिले की तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के तट पर स्थित है। इस मदिर का सम्बन्ध द्वापर युग से है जो की बहुत ही चमत्कारी माना गया है। इस मंदिर में माता बगलाकुमती के अलावा, माता लक्ष्मी, सरस्वती और भगवान कृष्ण, हनुमान के साथ काल भैरव भी विराजमान है। इस प्राचीन मंदिर की स्थापना महाराजा युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण के निर्देश पर महाभारत जीतने के लिए की थी।

हरसिद्धी माता मंदिर, रानगिर, सागर

सागर के सिद्धक्षेत्र रानगिर में विराजित हरसिद्धि माता बुंदेलखण्ड के लाखों कुल कुटंब की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है। माता के दरबार में नवरात्रि में देशभर से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। अंबे मां के दरबार में संतान, विवाह, गृह, नौकरी, व्यापार समेत सुख शांति समृद्धि की कामना करते हैं। मन्नतें पूरी होने की खुशी में भी श्रृद्धालुजन दरबार में माथा टेकते हैं। रानगिर में हरसिद्धी माता मंदिर का निर्माण मराठा शासन काल में हुआ था। इतिहास के पन्नों को देखें तो मिलता है कि 1732 में सागर प्रदेश पर मराठों की सत्ता थी। पंडित गोविंद राव का शासन था। नदी के किनारे हरसिद्धी माता का मंदिर निर्माण किया गया। हरसिद्धी भावार्थ में पार्वती देवी है। हर यानी महादेव, सिद्ध यानी प्राप्त तथा अष्ट सिद्धी नव रिद्धी भी कही गई हैं। मां हरसिद्धी सुबह कन्या,दोपहर में युवावस्था और संध्याकालीन वेला में वृद्ध स्वरूप में दर्शन देतीं हैं।

कंकाली देवी मंदिर, शहडोल

शहडोल जिले का मां कंकाली देवी मंदिर देशभर के लोगों की आस्था का केन्द्र है। 10-11वीं शताब्दी का बना मां कंकाली देवी के इस मंदिर में श्रीफल (नारियल) की भेंट से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। यहां मनोकामना लेकर आने वाले श्रद्धालु नारियल को लाल कपड़े में बांधकर मन्नत कर उसे मंदिर में बांध देते हैं तो उनकी हर मनोकामना मां कंकाली पूरी करती हैं। सच्ची आस्था और एक श्रीफल मनुष्य के जीवन से पूरे कष्ट को दर कर देता है।