आज नवरात्रि का पहला दिन हैं और आज मातारानी के स्वरुप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती हैं। वैसे तो मां शैलपुत्री के देशभर में कई मंदिर हैं, लेकिन वाराणसी में स्थित मां शैलपुत्री का मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर हैं औसर इसका महत्व भी बहुत माना जाता हैं। नवरात्रि के पावन दिनों में भक्तों की इतनी भीड़ होती है कि पांव रखने की भी जगह नहीं रहती। आज हम आपको वाराणसी में स्थित मां शैलपुत्री के इस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।
नवरात्र में इस मंदिर में पूजा करने का खास महत्व होता है। माना जाता है कि अगर आपके दापत्यं जीवन में परेशानी आ रही है तो यहां पर आने से आपको सभी कष्टों से निजात मिल जाता है। इस मंदिर को लेकर एक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार माना जाता है कि मां कैलाश से काशी आई थी। जानिए आखिर कथा क्या है।
इसके अनुसार मां पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री कहलाईं एक बार की बात है जब माता किसी बात पर भगवान शिव से नाराज हो गई और कैलाश से काशी आ गईं इसके बाद जब भोलेनाथ उन्हें मनाने आए तो उन्होंने महादेव से आग्रह करते हुए कहा कि यह स्थान उन्हें बेहद प्रिय लगा लग रहा है और वह वहां से जाना नहीं चाहती जिसके बाद से माता यहीं विराजमान हैं माता के दर्शन को आया हर भक्त उनके दिव्य रूप के रंग में रंग जाता है।
यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर माता शैलपुत्री की तीन बार आरती होने का साथ-साथ तीन बार सुहाग का सामान भी चढ़ता है। भगवती दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। हिमालय के यहां जन्म लेने से उन्हें शैलपुत्री कहा गया। इनका वाहन वृषभ है।उनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है। इन्हें पार्वती का स्वरूप भी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि देवी के इस रूप ने ही शिव की कठोर तपस्या की थी।