मानसून में निखर जाती है मध्यप्रदेश की खूबसूरती, जन्नत का अहसास कराते हैं कुदरती नजारे

मध्य प्रदेश भारत का एक बहुत प्रमुख राज्य है। देश के केंद्र में स्थित होने की वजह से मध्य प्रदेश को “भारत का दिल” या “ह्रदयप्रदेश” कहा जाता है जो यहां आने वाले पर्यटकों को अपने कई ऐतिहासिक स्मारकों, मंदिरों, किले, महलों से काफी आकर्षित करता है। मध्य प्रदेश की यात्रा करना किसी भी पर्यटक के लिए किसी सपने से कम नहीं होगा क्योंकि यहां पर कई नेशनल पार्क और वाईल्डलाइफ सेंचुरी हैं, जिसमें कई लुप्तप्राय प्रजाति के वनस्पति और जीव भी पाए जाते हैं। मध्य प्रदेश उन कुछ राज्यों में से एक है जो चारों ओर से कई राज्यों से घिरा हुआ है, इस राज्य की एक अलग बात यह भी है कि यह अपनी सीमा किसी भी देश के साथ साझा नहीं करता है।

भारत में वैसे तो घूमने के हिसाब से कई जगहें हैं लेकिन मध्य प्रदेश को अपनी ऐतिहासिक इमारतों और प्राकृतिक संपदा के लिए दुनिया भरा में जाना जाता है। और इनको देखने का मजा मानसून के दिनों में ओर भी बढ़ जाता हैं। मानसून के दिनों में मध्यप्रदेश किसी जन्नत से कम नहीं हैं, क्योंकि यहाँ के कुदरती नजारें मानसून के दिनों में अपनी अलग ही छंवी पेश करते हैं। आज हम आपको मध्यप्रदेश की ऐसी जगहों की सैर करवाने जा रहे हैं, जहां इस मानसून में घूमने जाने पर यह आपका सबसे यादगार मानसून बन जाएगा। तो आइये जानते हैं मध्यप्रदेश की इन जन्नती जगहों के बारे में...

मांडू

मांडू यहां के चुनिंदा सबसे खास ऐतिहासिक स्थलों में जाना जाता है, जो अपनी प्राचीन संरचानों के लिए ज्यादा प्रसिद्ध है, पर यहां चारों तरफ फैली प्राकृतिक वनस्पतियां इसे एक शानदार प्राकृतिक स्थल बनाने का काम भी करती हैं। यहां का मौसम साल भर खुशनुमा रहता है, खासकर मानसून के दौरान यहां के नजारे देखने लायक होते हैं। यहां की ऐतिहासिक सरंचनाएं इस मौसम अद्भभुत नजर आती हैं। फोटोग्राफी के शौकीन यहां शानदार दृश्यों को अपने कैमरे में उतार सकते हैं। यह स्थल इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों और प्रकृति प्रेमियों के लिए काफी खास माना जाता है।

सांची

मानसून में कुछ अलग अनुभव के लिए आप यहां के सांची की सैर कर सकते हैं। ऐतिहासिक रूप से यह स्थल न सिर्फ राज्य बल्कि देश का एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह एक बौद्ध स्थल जहां आप 12 सदी के बाद बनाए गए प्राचीन स्तूपों को देख सकते हैं। लेकिन आपको बता दें कि मानसून के दौरान यहां के नजारे कुछ अलग ही होते हैं। मानसून की बारिश स्तूप के आसपास के पेड़ों और यहां की हवा को स्वच्छ कर देती है। इस दौरान यहां हरी-भरी वनस्पतियां खुशी से चहक उठती हैं। आप यहां स्तूप के पास एख छोटी झील को भी देख सकते हैं। जो बारिश में पूरी भर सी जाती है। यहां का नजारा देखने लायक है,अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं तो आपको इस मौसम यहां जरूर आना चाहिए।

धुंआधार फॉल्स

मानसून के दौरान कुछ रोमांचक एहसास के लिए आप यहां के धुंआधार फॉल्स की सैर का आनंद ले सकते हैं। यह जलप्रपात राज्य के खूबसूरत और आकर्षक झरनों की श्रृंखला में आता है। धुंआधार फॉल्स को जल पवित्र नर्मदा नदी के प्राप्त होता है। एक शांत बहती हुई यह नदी यहां के चट्टानी सफर के दौरान अद्भुत रूप धारण कर लेती है। पानी नीचे गिरते ही तेज बहाव में बदल जाता है, जिसकी आवाज आप दूर से भी सुन सकते हैं। इस जलप्रपात की आवाज किसी जंगल के शेर जैसी लगती है। इसे धुंआधार इसलिए कहा जाता है कि क्योंकि चट्टानों से गिरता तेज पानी अपने चारों तरह पानी की हल्की बौछारों का धुंध पैदा करता है। एक रोमांचक एहसास के लिए आप यहां आ सकते हैं।

महेश्वर - भगवान शिव का मंदिर शहर

मध्य प्रदेश सरकार ने महेश्वर को अपने पवित्र शहरों में से एक क्यों सूचीबद्ध किया है। महेश्वर में कई घाट और मंदिर हैं, यही कारण है कि इसे अक्सर मध्य भारत का मिनी वाराणसी कहा जाता है। चूँकि इसकी स्थापना नर्मदा नदी के तट पर है, इसलिए पर्यटक सुबह या शाम को नाव की सवारी का आनंद ले सकते हैं। पौराणिक दृष्टि से महेश्वर का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है। इसलिए महेश्वर में भगवान शिव के अनेक मंदिर हैं। 18वीं शताब्दी के दौरान शहर को एक नया पट्टा मिला जब महारानी अहिल्या बाई ने एक भव्य और विशिष्ट हिंदू मंदिरों का निर्माण कराया अब महेश्वर शहर खुद को मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण तीर्थ सर्किट मानता है। महेश्वर मध्य प्रदेश में एक और अवश्य देखने योग्य तीर्थ स्थल है। महिलाओं को महेश्वर से रेशम और सूती हथकरघा साड़ियों की खरीदारी अवश्य करनी चाहिए।

अमरकंटक

1,048 मीटर (3,438 फीट) की ऊंचाई पर, अमरकंटक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थस्थलों में से एक है क्योंकि यह दो पहाड़ी श्रृंखलाओं - सतपुड़ा और विंध्य के संगम पर स्थित है। साथ ही, दो पवित्र नदियाँ नर्मदा और सोन यहीं से निकलती हैं। अमरकंटक की कई कहानियाँ मिल सकती हैं जैसे; संस्कृत कवि कालिदास ने इस स्थान का यह नाम इसलिए रखा क्योंकि यहां आम के गहरे पेड़ पाए जाते हैं। अन्य पौराणिक कहानियों में कहा गया है कि अमरकंटक वही स्थान है जहां भगवान शिव ने अग्नि के माध्यम से त्रिपुर को नष्ट कर दिया था और उनकी राख यहीं गिरी थी। चूँकि यह एक हिल स्टेशन है, हरे-भरे वातावरण, झरने त्रिमुखी मंदिर, सोनाक्षी शक्तिपीठ मंदिर, श्री ज्वालेश्वर महादेव, माई की बगिया के मंदिर मार्ग को पूरा करने के बाद सोने पर सुहागा बन जाते हैं। शांति की तलाश में अमरकंटक प्रकृति की सुंदरता के बीच एक अच्छी जगह है।

ओरछा

मध्य प्रदेश पर्यटन स्थलों के नक्शे पर विचित्र शहर ओरछा, बुंदेला के राजपूतों की पूर्ववर्ती राजधानी है। इसके पास कुछ अद्भुत किले और मंदिर हैं जो राजपूताना वास्तुकला को दर्शाते हैं। यहां पर आप राजा राम मंदिर में एक शानदार शाम की आरती में भाग ले सकते हैं। लक्ष्मीनारायण मंदिर में जाएं, फूलबाग का आनंद लें, बेतवा नदी में बोटिंग करें और ओरछा वन्यजीव अभ्यारण्य में जंगल सफारी करें।

उज्जैन

इस नगर का उल्लेख उपनिषदों तथा पुराणों में भी मिलता है । इसका प्राचीन काल से ही अस्तित्व है । प्राचीन काल में उज्जैन अवंती राज्य (महाजनपद) की राजधानी थी । उस काल में ही स्थान ने नगर का रुप ले लिया था। शकों का दमन करने वाले महाराज विक्रमादित्य की राजधानी भी यही नगरी थी । 10वीं सदी में परमार राजपूतों ने उज्जैन को राजधानी बनाया था, लेकिन बाद में अपनी राजधानी को पहले धार और उसके बाद मांडू में स्थानांतरित कर दिया । प्राचीनकाल में यह नगर राज्यों की राजधानी के रूप में रहा, लेकिन सल्तनत और मुगल काल में इस नगर को किसी राज्य की राजधानी के रूप में रहा, लेकिन सल्तनत और मुगल काल में यह नगर को किसी राज्य को राजधानी बनाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ । अकबर के समय में उज्जैन मालवा प्रांत (सूबा) का एक जिला था । इस काल में उज्जैन भारत के प्रमुख शहरों में से एक था । 18 वीं सदी में इस नगर पर पहले मराठों, उसके बाद होल्कर वंश के शासकों का शासन रहा । इसके उपरांत 1818 ई. में यह नगर ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आ गया । कंपनी ने इसे जिला मुख्यालय बना दिया । उज्जैन में ही कमिश्नरी का मुख्यालय भी है ।

सागर

इस नगर का नामकरण प्रसिद्ध हिंदी शब्द ‘सागर’ के आधार पर किया गया था, जिसका शाब्दिक अर्थ सरोवर अथवा समुद्र है । इसका स्पष्ट कारण यह है कि इस नगर का निर्माण एक विशाल सरोवर के चारों ओर किया गया है । यह सरोवर, जिसका क्षेत्रफल लगभग 1 वर्ग किलोमीटर है, किसी जमाने में बहुत सुंदर रहा होगा । सागर नगर का इतिहास सन् 1660 ई. से प्रारंभ होता है । निहालशाह के वंशज उदयन शाह ने जहां वर्तमान किला स्थित है, उसी स्थल पर एक छोटे किले का निर्माण कराया था और उसी के पास परकोटा नामक एक गांव बसाया था, जोकि अब नगर का एक भाग है । वर्तमान किला और किले की दीवारों के अंदर एक बस्ती का निर्माण पेशवा के एक अधिकारी गोविंद राव पंडित ने कराया था।

रायसेन

इस नगर की नीति भीम राय सिंह भरतपुर रियासत अली में रखी गई थी इस नगर का नाम सवाया के नाम पर रायसेन पड़ा रायसेन का बरसात प्राचीन काल में भी हो जहां पर छठी सदी में एक दुर्ग का निर्माण हो चुका है । अकबर के समय में रायसेन एक सरकार (जिला) था, जो उज्जैन सूबे (राज्य) का भाग था, लेकिन आधुनिक जिले का निर्माण 5 मई, 1950 को किया गया था ।

नरसिंहपुर

नरसिंहपुर नगर का नाम नरसिंहजी के मंदिर के कारण पड़ा है। जो हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान नरसिंह, सिंह के सिर वाले मानव अवतार है । सन् 1782 ई. के पश्चात एक जाट लुटेरा ग्राम चंवर पाठा मराठों के अधिकार वाले एक परगने को छोड़कर जिले के वर्तमान नरसिंहपुर में आ बसा। उस समय यहां एक छोटा सा गांव था, जो गरड़ीया खेड़ा कहलाता था। बाद में यह छोटा गाडरवाड़ा कहलाने लगा। उसने दिल्हेरी और पिथेरा के जागीरदारों को लूटा और इस स्थान पर लूट की सामग्री से एक महल और नरसिंहजी का मंदिर बनवाया और इस मंदिर के नाम पर गांव का नाम नरसिंहपुर रखा । उस समय तक यह जिला नरसिंहपुर शाहपुर कहा जाता था तथा पुराने परगने का मुख्यालय था ।

जबलपुर

जबलपुर की उत्पति के अनेकों मत में से एक मत यह भी है कि कलचुरी राजाओं की राजधानी त्रिपुरी के पास स्थित होने के कारण इस नगर का नाम जबलपुर पड़ा । कलचुरी राजवंश के दो शिलालेखों में जाउली पट्टल नामक ग्राम के दान का उल्लेख है और यह धारणा है कि जबलपुर उसका सहज अपभ्रंश है । रायबहादुर हीरालाल ने भी अपना मत व्यक्त करते हुये कहा है कि इस स्थान का नाम एक ब्राहमण साधु जावली के नाम पर पड़ा था । यह भी कहा जाता है कि यह नाम अरबी शब्द जबल से लिया गया है, जिसका अर्थ पहाड़ी या पहाड़ होता है, क्योंकि नगर का आंशिक भाग पहाड़ी है ।

ओंकारेश्व

मंत्रमुग्ध कर देने वाला परिदृश्य और स्फूर्तिदायक आध्यात्मिकता इस अन्य मंदिर शहर की विशेषताएं हैं। ओंकारेश्वर मध्य प्रदेश का एक और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है क्योंकि यह मध्य प्रदेश के दो ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर शहर नर्मदा और कावेरी नदी (दोनों पवित्र हैं) के द्विभाजन पर स्थित है। प्रतिवर्ष दिसंबर में अपनी यात्रा के दौरान, भक्त पूरे उत्साह के साथ ओंकार महोत्सव में भाग ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त, कार्तिक पूर्णिमा भगवान शिव के भक्तों के लिए एक और यात्रा आकर्षण है। ओंकारेश्वर मंदिर की अनोखी बात इसका हिंदू प्रतीक 'ओम' है जो मंधाता या शिवपुरी द्वीप पर ओंकारेश्वर शहर के स्थित होने के कारण बना है।

चित्रकूट

चित्रकूट क्षेत्र में भगवान राम, देवी सीता और भगवान लक्ष्मण का पता लगाएं। कई पौराणिक कहानियों और यहां तक कि आकर्षक किंवदंतियों में दर्शाया गया है कि जब वे अयोध्या साम्राज्य से 14 साल के वनवास पर निकले थे, तब चित्रकूट के जंगलों ने तिकड़ी (भगवान राम, उनकी पत्नी और उनके भाई) को निवास स्थान प्रदान किया था। इसके अलावा, चित्रकूट का जंगल वही स्थान था जहां तीनों ने वनवास के 14 वर्षों में से 11 वर्षों तक निवास किया था। इससे भी अधिक, भगवान लक्ष्मण एक चतुर कारीगर थे, और उन्होंने अपने भाई, अपनी पत्नी और स्वयं के रहने के लिए एक कुटिया भी बनवाई थी। चित्रकूट के राम घाट, भरत मंदिर, यज्ञ वेदी, परम कुटीर, सती अनसूया की यात्रा पर स्वयं को प्रबुद्ध करें।

इंदौर

इस शहर का प्रारंभिक नाम इंदूर था, जोकि इंद्रपुर अथवा इंद्रेश्वर का अपभ्रंश रूप है । यह नाम इस नगर को स्थान पर स्थित भुतपूर्ण गांव का नाम था । इंद्रेश्वर का मंदिर, जिसके कारण गांव का यह नाम रखा गया था, अभी भी शहर के मध्य जूनी इंदौर में स्थित है । इस गांव का ही विकास शहर के रूप में हुआ, जो लगभग 1661 ई. में बसाया गया था तथा मूलत: इंद्रपुर कहलाता था । इंदौर को 1720 ई. में परगना मुख्यालय बना दिया गया गया था । मल्हार राव प्रथम ने सैनिक महत्व की दृष्टि से इस नगर को पसंद किया तथा अपने नाम पर इसका नाम रखा । 1730 ई. में इंदौर को जिला मुख्यालय बना दिया गया था ।

ग्वालियर

इस शहर का यह नाम समतल शिखर युक्त पहाड़ी पर निर्मित ऐतिहासिक दुर्ग के नाम पर पड़ा । जिस पहाड़ी पर यह किला बना हुआ है, मुख्य: ‘गोपाचल’ ‘गोपगिरी’ ‘गोपर्वत’ या ‘गोपाद्री’ कहा जाता था । ग्वालियर की स्थापना मालवा की मालचंद द्वारा की गई थी । सर्वमान्य मत के अनुसार कुंतलपूरी या कुटवार के राजा सूरजसेन नामक एक कछवाहा प्रधान सामंत द्वारा स्थापित करवाया गया था । ग्वालियर राज्य का संघटन सर्वप्रथम सर दिनकर राव (1852-59) द्वारा किया गया था, जिन्होंने इसे प्रांतों जिलों तथा परगनों में विभाजित किया था । भूतपूर्व ग्वालियर राजा में एक प्रशासनीय इकाई के रूप में जिले का उदभव सन् 1853 ई. में हुआ था ।

भोपाल

उपरोक्त स्थानों के अलावा आप मानसून का आनंद लेने के लिए भोपाल का सफर कर सकते हैं। भोपाल राज्य का राजधानी शहर है जो अपनी ऐतिहासिक विरासतों, कला-लोक संस्कृति और प्राकृतिक स्थलों के लिए जाना जाता है। यहां की दो झीले शहर को कुदरती रूप से खास बनाने के काम करती है। मानसून के दौरान आप इन झीलों की सैर कर सकते हैं। इस मौसम आप इन झीलों की खूबसूरती के उच्चतम रूपों को देखने का मौका प्राप्त कर सकते हैं। इनके अलावा आप इस दौरान यहां के महलों और खूबसूरत मस्जिदों को देखना न भूलें। 50 किमी की रेंज में आप यहां के खूबसूरत दर्शनीय स्थलों को देख सकते हैं।