जोधपुर राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। राव जोधा ने 12 मई, 1459 ई. ने यहां के स्थानीय आदिवासी भील राजा को हराकर आधुनिक जोधपुर शहर की स्थापना की और नामकरण उन्हीं के नाम पर किया। इसकी जनसंख्या 10 लाख के पार हो जाने के बाद इसे राजस्थान का दूसरा महानगर घोषित कर दिया गया था। यह यहां के ऐतिहासिक रजवाड़े मारवाड़ की इसी नाम की राजधानी भी हुआ करता था। जोधपुर थार के रेगिस्तान के बीच अपने ढेरों शानदार महलों, दुर्गों और मन्दिरों वाला प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी है।
वर्ष पर्यन्त चमकते सूर्य वाले मौसम के कारण इसे सूर्य नगरी भी कहा जाता है। यहां स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग को घेरे हुए हजारों नीले मकानों के कारण इसे नीली नगरी (ब्लू सिटी)के नाम से भी जाना जाता था। यहां के पुराने शहर का अधिकांश भाग इस दुर्ग को घेरे हुए बसा है, जिसकी प्रहरी दीवार में कई द्वार बने हुए हैं, हालांकि पिछले कुछ दशकों में इस दीवार के बाहर भी नगर का वृहत प्रसार हुआ है। जोधपुर की भौगोलिक स्थिति राजस्थान के भौगोलिक केन्द्र के निकट ही है, जिसके कारण ये नगर पर्यटकों के लिये राज्य भर में भ्रमण के लिये उपयुक्त आधार केन्द्र का कार्य करता है।
जोधपुर राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है, जिसे ब्लू सिटी भी कहा जाता है। जोधपुर शहर राजस्थान की रियासत काल का एक ताजा प्रतिबिंब है, जो हमें 15वीं शताब्दी में वापस ले जाता है। जोधपुर राजस्थान के कई लोकप्रिय किलों, स्थानों, झीलों और ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के अन्य स्मारकों के साथ एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यह शहर नीले घरों, मंदिर, स्नैक्स, मिठाईयों और स्मारकों की वास्तुकला के लिए सबसे ज्यादा मशहूर है। अगर आप छुट्टियों में इन सभी चीजों का आनंद लेना चाहते हैं तो राजस्थान जाकर जोधपुर शहर की यात्रा जरूर करनी चाहिए ,यहां ऐसे कई पर्यटन स्थल हैं, जो आपको यहां बार-बार आने के लिए मजबूर कर देंगे। इस शहर में आपको पारंपरिक रूप से रॉयल्टी झलक दिखेगी।
आज हम अपने पाठकों को जोधपुर के सबसे मशहूर और खूबसूरत पर्यटन स्थलों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। यह जानकारी उन्हें भविष्य में कभी भी काम आ सकती है। विशेष रूप से तब जब वे जोधपुर की यात्रा पर हों।
उम्मेद भवनउम्मेद भवन भारत में अंतिम निर्मित स्थानों में से एक है। यह पैलेस अद्भुत डिजाइन और वास्तुकला के लिए लोकप्रिय है, जो जोधपुर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। शहर के परिसर के भीतर स्थित, यह महल जोधपुर की रियासत के लिए एक दर्पण है। वर्तमान में, उम्मेद भवन पैलेस तीन क्षेत्रों में विभाजित है, जिनमें से एक अभी भी जोधपुर शहर के शाही परिवार के स्वामित्व में है। अन्य दो में से एक को एक हेरिटेज होटल में परिवर्तित किया जा चुका है। दूसरा एक संग्रहालय है जो शाही युग की कला को दर्शाता है। महल 1943 में बनाया गया था और आज भी जोधपुर के शाही परिवार द्वारा बसा हुआ है।
खेजड़ला किलाजोधपुर में कई किले और मंदिर है लेकिन यहां का खेजड़ला किला प्राचीन भारत के शाही राजाओं और रानियों के शानदार महल के रूप में पहचाना जाता है। मूल रूप से जोधपुर के महाराजा द्वारा 17 वीं शताब्दी में निर्मित, 400 साल पुरानी इमारत को एक होटल में बदल दिया गया है। यह ग्रेनाइट पत्थर और लाल बलुआ पत्थर से बना है, जो राजपूत वास्तुकला का एक तत्व है। विरासत का यह किला उन लोगों के लिए एक आदर्श स्थान है, जो छुट्टी का आनंद लेते हुए भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का अनुभव करना चाहते हैं।
मेहरानगढ़ किलामेहरानगढ़ किला जिसको मेहरान किले के रूप में भी जाना जाता है। इस किले को 1459 में राव जोधा द्वारा जोधपुर में बनवाया गया था। यह किला देश के सबसे बड़े किलों में से एक है और 410 फीट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। मेहरानगढ़ किला विशाल दीवारों द्वारा संरक्षित है। इस किले का प्रवेश द्वार एक पहाड़ी के ऊपर है जो बेहद शाही है। किले में सात द्वार हैं जिनमें विक्ट्री गेट, फतेह गेट, भैरों गेट, डेढ़ कामग्रा गेट, फतेह गेट, मार्टी गेट और लोहा गेट के नाम शामिल है।
मेहरान का अर्थ सूर्य है इसलिए राठोरों ने अपने मुख्य देवता सूर्य के नाम से इस किले को मेहरानगढ़ किले के रूप में नामित किया। इस किले के मुख्य निर्माण के बाद जोधपुर के अन्य शासकों मालदेव महाराजा, अजीत सिंह महाराजा, तखत सिंह और महाराजा हनवंत सिंह द्वारा इस किले में अन्य निर्माण किए, मेहरानगढ़ दुर्ग के निर्माण के समय एक व्यक्ति की स्वैच्छिक बलि चाहिए थी जिसके लिए राजाराम मेघवाल ने स्वैच्छिक बलि दी थी।
मेहरानगढ़ किले की वास्तुकला500 साल की अवधि में मेहरानगढ़ किले और महलों को बनाया गया था। किले की वास्तुकला में आप 20 वीं शताब्दी की वास्तुकला की विशेषताओं के साथ 5 वीं शताब्दी की बुनियादी वास्तुकला शैली को भी देख सकते हैं। किले में 68 फीट चौड़ी और 117 फीट लंबी दीवारें है। मेहरानगढ़ किले में सात द्वार हैं जिनमें से जयपोली सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। किले की वास्तुकला 500 वर्षों की अवधि के विकास से गुजरी है। किले की दीवारों पर जटिल नक्काशी, विशाल प्रांगण, संग्रहालय और दीर्घाएं दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। किले के भीतर, शीश महल और फूल महल जैसे शानदार महल हैं, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण बने हुए है।
चामुंडा माता मंदिरयह एक अति प्राचीन और जोधपुर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है जिसका निर्माण 1460 ईस्वी में जोधपुर के संस्थापक राव जोधा जी द्वारा करवाया गया था जो मेहरानगढ़ किले के बिल्कुल पास में ही स्थित है इस मंदिर में इष्ट देवी कि पूजा की जाती है यहाँ के लोग इस मंदिर को रक्षा कवच मानते है। दशहरा और नवरात्रि के समय तो इस मंदिर से काफी रौनक रहती है और इसी समय यहाँ सबसे अधिक श्रद्धालु भी मंदिर के दर्शन के लिये आते है रोजाना इस मंदिर के खुलने का समय सुबह 5 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम 4 बजे से रात 9 बजे के बीच रहता है।
शीश महलजोधपुर स्थित मेहरानगढ़ किले में है शीश महल - शाही राजपूत वास्तुकला की एक विशेषता, शीश महल, जिसका शाब्दिक अर्थ है शीशे का महल। यह महल काँच के अंदरूनी पैनलों और बहु प्रतिबिंबित छत के साथ स्कृष्ठ रूप से सजाया गया है। यहाँ उपयोग किये गये शीशे उतल आकार के हैं और रंगीन पन्नी और पेंट के साथ डिजाइन किये गए हैं जो कि दीपक की रोशनी में झिलमिलाते थे। प्लास्टर में बने विभिन्न धार्मिक चित्रों के साथ इन सजावटी दर्पणों को अच्छी तरह से पूरक किया गया है जो कि उस समय की कला पर धर्म और संस्कृति का मजबूत प्रभाव दिखाता है। कई सजावटी पैनल भगवान ब्रह्मा, राम, शिव और पार्वती, बांसुरी बजाते भगवान कृष्ण, आदि जैसी देवी-देवताओं को प्रदर्शित करते हैं। यह कमरा महाराजा अजीतसिंहजी का शयनकक्ष था, जिन्होंने 1679 और 1724 के बीच जोधपुर पर शासन किया।
घंटा घरघंटा घर एकक्लॉक टावरहै जिसका निर्माणमहाराजा सरदार सिंहने करवाया था जो सरदार मार्किट मे ही स्थित है यह टावर तकऱीबन 100 साल से भी ज्यादा पुराना है अगर आप चाहे तो इस टावर के ऊपर भी जा सकते है जिसका किराया मात्र 10 रुपये है जहाँ से आप आस पास के बाजार और शहर की खूबसूरती देख पाएंगे हालांकि पहले इसकी इजाजत नहीड्ड मिलती थी पर अब इसमें पर्यटकों को देखते हुए ऊपर जाने की अनुमति दे दी गई है।
जसवंत थाड़ायह भव्य स्मारक मेहरानगढ़ किले से बस कुछ ही दुरी पर स्थित है जो महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय की याद में बनवाई गई एक सुंदर स्मारक है जिसे महाराजा सरदार सिंह ने अपने पिता महाराजा जसवंत सिंह कि याद मे1899 ईस्वीमें बनवाया था। जसवंत थाडा को मारवाड़ का ताजमहल भी कहा जाता है यहाँ पर अक्सर गीत-संगीत के कार्यक्रम होते रहते है जिसकी वजह से देश भर से पर्यटक यहां आना काफी पसन्द करते है जसवंत थाडा मारवाड़ के शाही परिवार के लिए दाह संस्कार का स्थान भी है।
आध्यात्मिक ध्यान केन्द्रप्रवृत्ति मार्गी संत श्री रामलाल जी सियाग द्वारा स्थापित अध्यात्म विज्ञान सत्संग केन्द्र, जोधपुर, शुद्धरूप से एक आध्यात्मिक संस्था है। यह संस्था गुरुदेव सियाग सिद्धयोग का निःशुल्क प्रचार-प्रसार मानव कल्याण हेतु विश्व स्तर पर कर रही है। इस केन्द्र में एक विशिष्ट प्रकार की सिद्धयोग पद्धति से ध्यान करने पर साधक को ध्यान के दौरान स्वतः ही अनेक प्रकार की यौगिक क्रियाएँ होती हैं, जो साधक के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक तापों को हर लेती हैं। देश और विदेश से सभी धर्म व जाति के लोग यहाँ गुरुदेव सियाग सिद्धयोग की पद्धति से ध्यान और मंत्र जाप करके असीम शांति एवं सुख का अनुभव करते हैं।
मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट जोधपुरमेहरानगढ़ संग्रहालय ट्रस्ट भारत का प्रमुख सांस्कृतिक संस्थान और उत्कृष्टता का केंद्र है, जिसकी स्थापना 1972 में मारवाड़-जोधपुर के 36 वें संरक्षक, महाराजा गजसिंहजी ने किले को आगंतुकों के लिए जीवंत बनाने के लिए की थी। इस के निदेशक करणीसिंह जसोल थे जिनका एक सड़क हादसे में दुःखद निधन हो गया। इस संग्रहालय में चित्रों, मूर्तियों व प्राचीन हथियारों का उत्कृष्ट समावेश है।
गिरडीकोट और सरदार मार्केटछोटी-छोटी दुकानों वाली, संकरी गलियों में छितरा रंगीन बाजार शहर के बीचों बीच है और हस्तशिल्प की विस्तृत किस्मों की वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है तथा खरीददारों का मनपस्द स्थल है।
अरना झरनाअब हम जोधपुर की एक और प्रसिद्ध जगह के बारे में जान लेते हैं। हम अरना झरना जगह की बात कर रह हैं ये काफी प्रमुख और अधिक सुन्दर जगह है, जहाँ पर काफी दूर-दूर के पर्यटक का आना-जाना लगा रहता है। झरना की तरह यहाँ की हरियाली और पानी का तेज बहाव प्राकृतिक दृश्य को देखने के लिये पर्यटक लालायित हो जाते है। यदि आप इस जगह को देखने का आनंद लेना चाहते है तो बारिश के मौसम में आना-जाना सही रहता है।
अरना झरना मरु संग्रहालयअरना झरना मरु संग्रहालय एक मरु संग्रहालय है जो जोधपुर से 9 किलोमीटर की दूरी पर मोकलावास गाँव के निकट स्थित है।
मंडोर गार्डनयह शहर से 8 किलोमीटर की दूरी पर है। मारवाड़ की प्राचीन राजधानी में जोधपुर के शासकों के स्मारक हैं। हॉल ऑफ हीरों में चट्टान से दीवार में तराशी हुई पन्द्रह आकृतियां हैं जो हिन्दु देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। अपने ऊँची चट्टानी चबूतरों के साथ, अपने आकर्षक बगीचों के कारण यह प्रचलित पिकनिक स्थल भी बन गया है।
ओसियांओसियां जोधपुर जिले का एक प्राचीन क्षेत्र है तथा वर्तमान में एक तहसील के रूप में विस्तृत है। यह जोधपुर - बीकानेर राजमार्ग की दूसरी दिशा पर रेगिस्तान में बसा हुआ है। इस प्राचीन क्षेत्र की यात्रा के दौरान बीच - बीच में पड़ते हुए रेगिस्तानी विस्तार व छोटे-छोटे गांव अतीत के लहराते हुए भू-भागों में ले जाते हैं। ओसियां में सुंदर तराशे हुए जैन व ब्राह्मणों के ऐतिहासिक मन्दिर है। इनमें से सबसे असाधारण हैं आरंभ का सूर्य मंदिर और बाद के काली मंदिर, सच्चियाय माता मंदिर और भगवान महावीर मन्दिर भी स्थित है। यह काफी प्राचीन नगर है पूर्व में इसका नाम उपकेश था।
कायलाना झील
कायलाना झील जोधपुर की एक प्रसिद्ध झील है। यह खूबसूरत झील एक आदर्श पिकनिक स्थल है। झील मुख्य शहर से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।