आजकल प्रकृति में हो रहे बदलाव की वजह से नेचुरल क्रियाएँ अस्थिर हो गई हैं। कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे का साया हैं। बाढ़ से तो इंसान किसी तरह काम चल लेता है लेकिन सूखे का प्रकोप झेलना बहुत मुश्किल काम हैं। सूखे से बचने के लिए लोग बारिश का इंतजार करते रहते हैं और मौसम विभाग की ख़बरों पर नजर रखते हैं। लेकिन एक गाँव ऐसा हैं जहां के लोग मौसम विभाग पर निर्भर ना रहकर एक मंदिर पर निर्भर रहते हैं जो कि बारिश की भविष्यवाणी करता हैं। जी हाँ एक ऐसा मंदिर है जो बारिश की पहले से ही भविष्यवाणी कर देता हैं। आइये हम बताते हैं आपको इस मंदिर के बारे में।
ये घटना है तो हैरान कर देने वाली लेकिन सच है। उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कहे जाने वाले कानपुर जनपद के भीतरगांव विकासखंड से ठीक तीन किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है बेहटा। यहीं पर है धूप में छत से पानी की बूंदों के टपकने और बारिश में छत के रिसाव के बंद होने का रहस्य। यह घटनाक्रम किसी आम ईमारत या भवन में नहीं बल्कि यह होता है भगवान जगन्नाथ के अति प्राचीन मंदिर में।
ग्रामीण बताते हैं कि बारिश होने के छह-सात दिन पहले मंदिर की छत से पानी की बूंदे टपकने लगती हैं। इतना ही नहीं जिस आकार की बूंदे टपकती हैं, उसी आधार पर बारिश होती है। अब तो लोग मंदिर की छत टपकने के संदेश को समझकर जमीनों को जोतने के लिए निकल पड़ते हैं। हैरानी में डालने वाली बात यह भी है कि जैसे ही बारिश शुरु होती है, छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है।
मंदिर की प्राचीनता व छत टपकने के रहस्य के बारे में, मंदिर के पुजारी बताते हैं कि पुरातत्व विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक कई दफा आए, लेकिन इसके रहस्य को नहीं जान पाए हैं। अभी तक बस इतना पता चल पाया है कि मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य 11वीं सदी में किया गया। इस मंदिर की छत बनावट अंडाकार हैं। यह एक बौद्ध मठ की तरह है। इसकी दिवारें चूने पत्थर से बनी है और 14 फीट मोटी हैं। जिससे इसके सम्राट अशोक के शासन काल में बनाए जाने के अनुमान लगाए जा रहे हैं। इसके अलावा मंदिर के बाहर मोर का निशान व चक्र बने हुए हैं । जो कि चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के कार्यकाल की निशानी हैं।
यह मंदिर भगवान जगन्नाथ का है। मंदिर में अन्दर भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ व सुभद्रा की काले चिकने पत्थरों की मूर्तियां विराजमान हैं। गर्भगृह में सूर्यदेव और पद्मनाभम की मूर्तियां भी हैं। जगन्नाथ पुरी की तरह यहां भी भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकालने की परंपरा रही है।