कहते हैं कि गंगा किनारे बसी काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशुल की नोक पर बसी है जहां बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक काशी विश्वनाथ विराजमान हैं। विश्वनाथ से कुछ ही दूरी पर एक ऐसा प्राचीन शिव मंदिर है, जहां ज्योतिर्लिंग खुद प्रकट हुआ था। इस ज्योतिर्लिंग को 108 ज्योतिर्लिंग में से एक माना जाता है। सुल्तानपुर में स्थित इस 400 साल पुराने प्राचीन शिव मंदिर में दर्शन करने के लिए पूरे साल दूर-दूर से भक्त आते हैं। यह शिव मंदिर जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर विकास खण्ड भदैया के मुरारपुर गांव के हनुमानगंज-शुभगंज मार्ग पर स्थित है। इस मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार भी हो चुका है। कालांतर में इस मंदिर का जीर्णोद्धार मुरारपुर गांव के कालका प्रसाद उपाध्याय ने वर्ष 1940 में कराया गया था और उसके बाद उन्हीं के पौत्र दिनेश कुमार उपाध्याय ने मंदिर को भव्य रूप दिया। 108 ज्योतिर्लिंग में से एक
सुल्तानपुर के इस शिव मंदिर को 108 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। बताया जाता है कि यहां पर ज्योतिर्लिंग खुद प्रकट हुआ था, हालांकि इसका दूसरा सिरा अब भी खोजा नहीं जा सका है। मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी सच्चे मन से अभिषेक-पूजा और प्रार्थना करता है, उसके मन की मुराद जरूर पूरी होती है।
सावन महीने में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। लोग शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए लोग बड़ी संख्या में आते हैं। ग्रामीण बताते हैं यहां जिसने भी बाबा भोलेनाथ से जो मांगा है उसकी झोली बाबा ने जरूर भरते है। इसलिए पूरे सावन मास में तड़के सुबह से ही यहां भक्त पहुंचने लगते हैं।