दिन में दो बार खुद-ब-खुद समुद्र में समा जाता है भगवान शिव का ये मंदिर, दूर-दूर से देखने आते हैं श्रद्धालु

भगवान शिव ब्रम्हांड के निर्माता और ब्रम्हांड के प्रमुख तीन देवतायो में से एक है। भगवान शिव को भारत के अलग अलग जगहों में महाकाल, संभु, नटराज, महादेव, भेरव, आदियोगी जेसे उनके अलग-अलग नामो जाना जाता है। तथा इनकी शिवलिंग, रुद्राक्ष सहित कई रूपों में पूजा की जाती है। भारत में लगभग सैकड़ों मंदिर पाए जाते हैं जो विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित हैं। इन मंदिरों में दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं। ऐसा ही भगवान शिव का एक मंदिर गुजरात में भी है जिसके दर्शन के लिए पूरे भारतवर्ष से शिव भक्त पहुंचते हैं। इस मंदिर का नाम स्तंभेश्वर महादेव। यह मंदिर दिन में दो बार खुद-ब-खुद समुद्र में समा जाता है और उसके बाद पानी कम होने पर फिर से दिखाई देने लगता है। इस तरह जलमग्न होने वाला यह देश का पहला शिव मंदिर है। इस मंदिर से जुड़ी कथा स्कंदपुराण में मिलती है।

पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर का निर्माण अपने तपोबल से भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने किया था। हालांकि यह मंदिर किसी चमत्कार के कारण नहीं बल्कि प्राकृतिक वजह से ओझल होता है। दिन में कम से कम दो बार समुद्र का जल स्तर इतना बढ़ जाता है कि मंदिर उसमें पूरी तरह से समा जाता है और उसके बाद जैसे ही पानी का स्तर कम हो जाता है मंदिर फिर से दिखाई देने लगता है। दूर-दूर से श्रद्धालु इसी घटना को देखने के लिए यहां आते हैं। यह एक ऐसा दृश्य होता है जिसे हर कोई शिव भक्त अपनी आंखों से निहार लेना चाहता है। कहा जाता है कि शिव का यह मंदिर करीब 150 साल पुराना है और यहां 4 फीट ऊंचा शिवलिंग है। गुजरात के वढ़ोदरा में स्थित यह शिव मंदिर जलमग्न होने और अपनी पौराणिक मान्यता की वजह से काफी लोकप्रिय है।

स्कंदपुराण के मुताबिक, ताड़कासुर राक्षस ने शिव की घोर तपस्या करके उनसे मनोवांछित वरदान प्राप्त कर लिया था। यह वरदान था कि उसकी हत्या शिवपुत्र के अलावा कोई नहीं कर सकता। यह आशीर्वाद मिलते ही ताड़कासुर ने पूरे ब्रह्मांड में हाहाकार मचा दिया था। परेशान होकर सभी देवता और ऋषि- मुनियों ने भगवान शिव से उसके वध की प्रार्थना की। ऋषियों और देवताओं की प्रार्थना के बाद श्वेत पर्वत कुंड से 6 दिन के कार्तिकेय उत्पन्न हुए। जिसके बाद उन्होंने उसकी हत्या कर दी। कहा जाता है कि ताड़कासुर के शिव भक्त होने के बारे में पता चलने पर कार्तिकेय को शर्मिंदगी हुई और उन्होंने भगवान विष्णु से प्रायश्चित करने का उपाय पूछा। जिस पर भगवान विष्णु ने उन्हें इस जगह पर एक शिवलिंग स्थापित करने का सुझाया दिया। जो बाद में स्तंभेश्वर मंदिर कहलाया।