देवदार और बलूत के वृक्षों से घिरा खूबसूरत हिल स्टेशन - रानीखेत

रानीखेत उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के अंतर्गत एक पहाड़ी पर्यटन स्थल है। देवदार और बलूत के वृक्षों से घिरा रानीखेत बहुत ही रमणीक एक लघु हिल स्टेशन है। काठगोदाम रेलवे स्टेशन से 85 किमी. की दूरी पर स्थित यह अच्छी पक्की सड़क से जुड़ा है। इस स्थान से हिमाच्छादित मध्य हिमालयी श्रेणियाँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं। प्रकृति प्रेमियों का स्वर्ग रानीखेत समुद्र तल से 1824 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है। छावनी का यह शहर अपने पुराने मंदिरों के लिए मशहूर है।

उत्तराखंड की कुमाऊं की पहाड़ियों के आंचल में बसा रानीखेत फ़िल्म निर्माताओं को भी बहुत पसन्द आता है। यहां दूर-दूर तक रजत मंडित सदृश हिमाच्छादित गगनचुंबी पर्वत, सुंदर घाटियां, चीड़ और देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़, घना जंगल, फलों लताओं से ढके संकरे रास्ते, टेढ़ी-मेढ़ी जलधारा, सुंदर वास्तु कला वाले प्राचीन मंदिर, ऊंची उड़ान भर रहे तरह-तरह के पक्षी और शहरी कोलाहल तथा प्रदूषण से दूर ग्रामीण परिवेश का अद्भुत सौंदर्य आकर्षण का केन्द्र है। रानीखेत से सुविधापूर्वक भ्रमण के लिए पिण्डारी ग्लेशियर, कौसानी, चौबटिया और कालिका पहुँचा जा सकता है। चौबटिया में प्रदेश सरकार के फलों के उद्यान हैं। इस पर्वतीय नगरी का मुख्य आकर्षण यहाँ विराजती नैसर्गिक शान्ति है। रानीखेत की सुंदरता को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। दूर-दूर तक फैली घाटियां, घने जंगलों में सरसराते चीड़ के पेड़ यहां की सुंदरता में चार चांद लगते हैं। दुनिया भर से हर साल लाखों की संख्या में सैलानी यहां मौज-मस्ती करने के लिए आते हैं। रानीखेत से 6 किलोमीटर की दूरी पर गोल्फ का विशाल मैदान है। उसके पास ही कलिका में कालीदेवी का प्रसिद्ध मंदिर भी है। द्वाराहाट के पास ही 65 मंदिर बने हुए हैं, जो कि तत्कालीन कला के बेजोड़ नमूनों के रुप में विख्यात हैं। बद्रीकेदार मंदिर, गूजरदेव का कलात्मक मंदिर, दूनागिरि मंदिर, पाषाण मंदिर और बावड़िया यहां के प्रसिद्ध मंदिर हैं। द्वाराहाट से 14 किलोमीटर की दूरी पर दूनागिरी मंदिर है। यहां से आप बर्फ से ढकी चोटियों को देख सकते हैं। दूनागिरी में चोटी पर दुर्गाजी समेत कई अन्य मंदिर भी हैं, जहां पर आसपास के लोग बड़ी संख्या में आते हैं। इसके कुछ ही दूरी पर शीतलाखेत है, जो पर्यटक गांव के नाम से जाना जाता है। यहां की खूबसूरती देखते ही बनती है। यहां पर दिखने वाले खूबसूरत नज़ारे पर्यटकों को खूब भाते हैं। रानीखेत से लगभग सात किलोमीटर दूरी पर है- कलिका मंदिर। यहां माँ काली की पूजा की जाती है। यहां पर पौधों की बहुत ही बढ़िया नर्सरी भी हैं। ऊपर में गोल्फ कोर्स है और उसके पीछे बर्फ से ढंका हुआ पहाड़ बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। रानीखेत में इसके अलावा और भी मनोरम स्थल है। यहां का बालू बांध मछली पकड़ने के लिए प्रसिद्ध है। रानीखेत से थोड़ी-थोड़ी दूरी पर भ्रमण करने की भी कई जगह हैं जैसे अल्मोड़ा जहां हिमालय पहाड़ों का सुंदर दृश्य मन को मोह लेता है। रानीखेत का चौबटिया गार्डन पर्यटकों की पहली पसंद है। इसके अलावा यहां का सरकारी उद्यान और फल अनुसंधान केंद्र भी देखे जा सकता है। इनके पास में ही एक वाटर फॉल भी है। कम भीड़-भाड़ और शान्त माहौल रानीखेत को और भी ख़ास बना देता है।

प्रमुख दर्शनीय स्थल

# माँ कलिका मंदिर

माँ कलिका मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के प्रसिद्ध पहाड़ी पर्यटन स्थल रानीखेत में स्थित है। घने वृक्षों के मध्य एक छोटी से पहाड़ी की चोटी पर स्थित यह एक प्रसिद्ध मंदिर है। प्रवेश द्वार पर ही कुछ दुकानदार अपनी अस्थाई दुकान लगाये हुए स्थानीय फल आडू, नख आदि बेचते हुए मिलते हैं। इस द्वार से माँ कालिका का मंदिर तक जाने के लिए सीढ़िया बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों से घने वृक्षों के मध्य से होते हुए मंदिर पहुँचा जा सकता है। तेज हवा चलने के कारण सीढ़ियों के दोनो तरफ के पेड़-पौधे जोर-जोर से आवाज़ करते हैं तो बहुत ही अच्छा लगता है। रानीखेत से 6 किलोमीटर की दूरी पर गोल्फ़ का विशाल मैदान है जो इस मंदिर के समीप ही है।

# गोल्फ़ कोर्स

रानीखेत से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर गोल्फ़ का विशाल मैदान है जो गोल्फ़ कोर्स के नाम से प्रसिद्ध है। रानीखेत में शहर से (अल्मोड़ा जाने वाले रास्ते में) चीड़ के घने जंगल के बीच (6000 फुट की ऊंचाई पर) उपत नामक स्थान पर एक विश्व प्रसिद्ध गोल्फ़ मैदान है। यहां प्राय: फ़िल्मों की शूटिंग होती रहती हैं। कोमल हरी घास का यह सुंदर मैदान नौ छेदों वाला हैं। ऐसा मैदान बहुत कम देखने को मिलता है। यहां खिलाड़ियों के रहने के लिए एक सुंदर बंगला बना हुआ है, जहां से दूर तक फैले हिमाच्छादित पर्वतों को देखना बहुत ही अच्छा लगता हैं। प्राकृतिक सुषमा के कारण यह स्थान पिकनिक और ट्रैकिंग के लिए काफ़ी उपयुक्त है। फूलों के सुंदर बाग के कारण यहां की रमणीयता और बढ़ जाती हैं।

# चौबटिया गार्डन

चौबटिया गार्डन उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के प्रसिद्ध पहाड़ी पर्यटन स्थल रानीखेत में स्थित है। रानीखेत से 10 किलोमीटर दूर इस स्थान पर एशिया का सबसे बड़ा फलों का बगीचा हैं। यहां दर्जनों तरह के फलों के पेड़ हैं, जिन्हें देखकर पर्यटक गदगद हो उठते हैं। यहां सरकार द्वारा स्थापित विशाल फल संरक्षण केंद्र भी देखने लायक हैं। यह स्थान मुख्य रूप से फलोद्यान, बग़ीचों और सरकारी फल अनुसंधान केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध है। यहां पिकनिक का आनंद लिया जा सकता है। इस स्थान से विस्तृत हिमालय, नंदादेवी, त्रिशूल, नंदाघुन्टी और नीलकण्ठ के विहंगम दृश्य देखे जा सकते हैं। 265 एकड़ क्षेत्र में फैला यहां का होर्टीकल्चर गार्डन भारत के विशालतम होर्टीकल्चर गार्डन्स में एक है। इस गार्डन में 36 किस्म के सेब उगाए जाते हैं जिनमें चार किस्मों का निर्यात भी किया जाता है।

# बिनसर महादेव मंदिर

बिन्सर महादेव मंदिर रानीखेत (अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड) से 19 किमी की दूरी पर स्थित है। बिन्सर महादेव मंदिर समुद्र तल से 2480 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस क्षेत्र का प्रमुख मंदिर है। मंदिर चारों तरफ से घने देवदार के वनों से घिरा हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में गणेश, हरगौरी और महेशमर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है। महेशमर्दिनी की प्रतिमा पर मुद्रित नागरी लिपि मंदिर का संबंध नौवीं शताब्दी से जोड़ती है। इस मंदिर को राजा पीथू ने अपने पिता बिन्दू की याद में बनवाया था। इसीलिए मंदिर को बिन्देश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां हर साल जून के महीने में बैकुंड चतुर्दशी के अवसर पर मेला लगता है। मेले में महिलाएं पूरी रात अपने हाथ में दिए लेकर सन्तान प्राप्ति के लिए आराधना करती हैं।

# कटारमल सूर्य मन्दिर

कटारमल सूर्य मन्दिर उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा के 'कटारमल' नामक स्थान पर स्थित है। इस कारण इसे 'कटारमल सूर्य मंदिर' कहा जाता है। यह सूर्य मन्दिर न सिर्फ़ समूचे कुमाऊँ मंडल का सबसे विशाल, ऊँचा और अनूठा मन्दिर है, बल्कि उड़ीसा के 'कोणार्क सूर्य मन्दिर' के बाद एकमात्र प्राचीन सूर्य मन्दिर भी है। 'भारतीय पुरातत्त्व विभाग' द्वारा इस मन्दिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है। सूर्य देव प्रधान देवताओं की श्रेणी में आते हैं। वे समस्त सृष्टि के आधार स्वरूप हैं। संपूर्ण भारत में भगवान सूर्य देव की पूजा, अराधना बहुत श्रद्धा एवं भक्ति के साथ की जाती है।

# हेड़ाखान मंदिर

हेड़ाखान मंदिर उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध पहाड़ी पर्यटन स्थल रानीखेत के अंतर्गत ही आता हैं और रानीखेत के सड़क मार्ग से कुछ हटकर NH-87 मार्ग के पास ही हैं। यह सफ़ेद संगमरमर से निर्मित भव्य मंदिर रानीखेत से क़रीब चार या पांच किलोमीटर दूर हिमालय की सुरम्य वादियों में एक रमणीक पहाड़ी पर स्थित हैं। इस मंदिर से हिमालय का बड़ा ही शानदार नज़ारा नजर आता हैं, यदि आकाश साफ़ हो और धुंध न हो तो सैकड़ों किलोमीटर दूर हिमालय की बर्फ से ढकी मुख्य चोटियाँ जैसे पंचचुली, नंदादेवी, चौखम्बा आदि नजर आती हैं। समुद्र तल से इस मंदिर की ऊँचाई लगभग 1835 मीटर हैं।

# द्वाराहाट

द्वाराहाट उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले का एक कस्बा है जो रानीखेत से लगभग 21 किलोमीटर दूर स्थित है। द्वाराहाट में तीन वर्ग के मन्दिर हैं—कचहरी, मनिया तथा रत्नदेव। इसके अतिरिक्त बहुत से मन्दिर प्रतिमाविहीन हैं। द्वाराहाट में गूजरदेव का मन्दिर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इस मन्दिर की चारों ओर की भित्तियों को कलापूर्ण शिलापट्टों से समलंकृत किया गया है। द्वाराहाट का 'शीतला मंदिर' भी बहुत उल्लेखनीय है।

# झूला देवी मंदिर

झूला देवी मंदिर, रानीखेत पहाड़ी स्टेशन पर आकर्षण का स्थान है। यह भारत के उत्तराखंड राज्य में अल्मोड़ा जिले के चैबटिया गार्डन के निकट रानीखेत से 7 किमी की दूरी पर स्थित है। वर्तमान मंदिर परिसर 1935 में बनाया गया था। मंदिर परिसर के चारों ओर लटकी हुई अनगिनत घंटियां ‘मा झुला देवी’ की दिव्य व दुख खत्म करने वाली शक्तियो को दर्शाती है। यह कहा जाता है कि मंदिर लगभग 700 वर्ष पुराना है। चैबटिया जंगली जानवर से भरा घना जंगल था। तेंदुओं और बाघ लोगों पर हमला करते थे और अपने पशुओं को ले जाते थे। लोगों को डर लग रहता था और खतरनाक जंगली जानवरों से उनकी सुरक्षा के लिए ‘माता दुर्गा’ से प्रार्थना की जाती थी। ऐसा कहा जाता है कि ‘देवी’ एक चरवाहा को सपने में दिखाई दी और चरवाहा कहा कि वह एक विशेष स्थान खोदे जहां वह एक मूर्ति पाई और वह उस जगह पर एक मंदिर बनवाना चाहती थी। इसके बाद ग्रामीणों ने उस जगह पर एक मंदिर का निर्माण किया और देवता की मूर्ति स्थापित किया और इस तरह ग्रामीणों को जंगली जानवरों द्वारा उत्पीड़न से मुक्त कर दिया गया और चरवाहों को आजादी से क्षेत्र के चारों ओर घूमने लगे।

# कुमाऊँ रेजिमेंट का संग्रहालय

कुमांऊ राइफल्स ने कुमाऊं के लोगों को दिलाई लड़ाकू कौम होने की पहचान । कुमाऊं राइफल्स के सौ साल बटालियन के गौरवशाली इतिहास के गवाह हैं। सौ साल का इतिहास जवानों की वीर गाथाओं से भरा हुआ है। कुमाऊंनी वीरों ने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वाेच्च बलिदान दिया है। इसी परिप्रेक्ष्य में शतवर्षीय उत्सव के अवसर पर कुमाऊंनी वीर योद्धा की प्रतिमा बनाकर योद्धा स्थल का लोकार्पण किया गया। यह प्रतिमा कुमाऊंनी बहादुर योद्धाओं को समर्पित की गई। कुमाऊंनी वीर योद्धा स्थल का निर्माण सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल एससी सरदेश पांडेय, यूवाईएसएम, एवीएसएम के सौजन्य से किया गया। सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल एससी सरदेश पांडेय तीन जून वर्ष 1965 में तृतीय कुमाऊं राइफल्स में कमीशन प्राप्त हुए और 1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान उन्होंने 12 कुमाऊं रेजीमेंट की कमांड संभाली थी।

तृतीय कुमाऊं राइफल्स के उत्सव को यादगार एवं ऐतिहासिक बनाने के लिए सेना के परेड ग्राउंड में भव्य परेड का आयोजन किया गया। इस परेड के माध्यम से राइफल्स के जवानों ने अपने साहस और जज्बे का इजहार किया।