इन गर्मियों में बनाएं अलाप्पुझा के इन खास स्थानों पर घुमने का प्लान

पर्यटकों के लिए अल्लेप्पी का प्रमुख आकर्षण नारियल के पेड़ों के किनारे ठहरे हुए पानी में धीमी गति में नौकाविहार का आनंद लेना है। अल्लेप्पी, केरल राज्य के बैकवाॅटर पर्यटन का सबसे आकर्षक केन्द्र है और इसे झीलों की भूलभुलैया, लैगुन और मीठे पानी की नदियों के कारण ‘पूर्व का वेनिस’ भी कहा जाता है। केरल का यह छोटा सा शहर विशेष रुप से सालाना नौका दौड़ के दौरान बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। पर्यटकों के लिए अल्लेप्पी, प्रसिद्ध बैकवाॅटर और राज्य के चावल के कटोरे कुट्टानड में नौकाविहार करने का मुख्य केन्द्र है। अल्लेप्पी के बैकवाॅटर में नौकाभ्रमण, भारत के अन्य शहरों की भागदौड़ से दूर यहां की साधारण जीवन शैली को करीब से देखने का मौका देता है।

सबसे लोकप्रिय क्रूज मार्ग अल्लेप्पी से दक्षिण कोल्लम है, जो लगभग आठ घंटे का है और इसमें दोपहर का भोजन, चाय, मंदिर दर्शन और कथकली भी शामिल हैं। इसके अलावा प्राकृतिक सुंदरता का भी अलग आनंद है। पानी से घिरे शांत गांव, मछली पकड़ने के चीनी जाल, झींगा खेती और काॅयर उत्पादन भी देखा जा सकता है।

अल्लेप्पी में देखने योग्य स्थान

# अल्लेप्पी बीच

अल्लेप्पी बीच या अलाप्पुझा बीच एक लंबा रेतीला समुद्र तट है, जिस पर एक लाइटहाउस और पुराना सागर सेतु भी है, जो समुद्र के सदियों पुराने महत्व को याद दिलाता है।

# कुट्टानाड बैकवाटर

कुट्टानाड केरल राज्य का एक खूबसूरत उष्णकटिबंधीय क्षेत्र है, जो अपने जलमार्गो, नहर, झीलों, नदियों और छोटी सहायक नदियों के लिए जाना जाता है। यह पूरा क्षेत्र समुद्र और पहाड़ियों से घिरा हुआ है जो यहां आने वाले सैलानियों को एक यादगार अवकाश बिताने का मौका प्रदान करता है। पर्यटन के मामले में कुट्टानाड भारत का बैकवाटर पैराडाइज कहा जाता है। जहां आप एक आरामदायक क्वालिटी टाइम स्पेंड कर सकते हैं। कुट्टानाद की भौगोलिक विशेषताओं के साथ यहां के धान के खेत इसे एक शानदार गंतव्य बनाने का काम करते हैं। फोटोग्राफी के लिए यह एक आदर्श स्थान है। यहां की चार प्रमुख नदियां मीचिल, अचंकोविल, पम्पा और मणिमाला प्रवाह इस स्थान को ट्रैवलर्स के लिए एक हब बनाने का काम करती हैं। प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगाते यहां के नारियल के पेड़ काफी मनोरम दृश्य प्रदान करन का काम करते हैं।

# कृष्णापुरम पैलेस

कृष्णापुरम पैलेस अलाप्पुझा के सबसे खूबसूरत और लोकप्रिय स्थानों में गिना जाता है। यह जगह उन लोगों के लिए है जो दक्षिण भारत की कला-संस्कृति, जीवन और रहन सहन को देखना और समझना चाहते हैं। यहां आप एक दिन बिताकर काफी आनंद की अनुभूति कर सकते हैं। यहां बिताया थोड़ा समय आपके मन, शरीर और आत्म का कायाकल्प कर सकता है। दरअसल कृष्णापुरम दक्षिण भारत का एक संग्रहालय और महल है, जिसका इतिहास 18 वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है। इस महल का निर्माण अनिझम थिरुनल मार्थंद वर्मा ने करवाया था। यह महल त्रावणकोर राज्य का प्रमुख केंद्र था। इसकी वास्तुकला शैली में संकीर्ण गलियारे और नक्काशीदार खिड़कियां शामिल हैं, जो दक्षिण भारत के क्लासिक आर्किटेक्चर की याद ताजा कराते हैं।

# करूमडी

आलप्पुषा से कुछ किमी की दूरी पर स्थिति है करूमडी गांव जो एलेप्पी घूमने आए सैलानियों के मध्य काफी लोकप्रिय है। यह स्थान बौद्ध धर्म के लिए ज्यादा जाना जाता है। जानकारी के अनुसार बौद्ध धर्म के बनने के इतिहास और इसके विकास में इस स्थान की भूमिका बताई जाती है। यह स्थान ब्लैक ग्रेनाइट पत्थर की बनी बौद्ध प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है। पर्यटक खासकर इस स्थान पर इस विशाल मूर्ति को ही देखने के लिए आते हैं। इस मूर्ति का बायां हाथ गायब है। इस गायब हाथ को लेकर कई मत प्रस्तुत किए गए हैं। बहुतों का कहना है कि यह हाथ किसी ने काट लिया या फिर समय के साथ यह अपने आप टूट गया। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि बुद्ध की यह मूर्ति स्नेही है और इसमें कई रहस्यवादी शक्तियां मौजूद हैं। यहां आने वाले बहुत से ट्रैवलर्स बुद्ध की इस मूर्ति के पैर को स्पर्श करते हैं, माना जाता है कि इस मूर्ति में हिलिंग पावर भी है जो दुख - दर्द को कम कर देती है। इसके अलावा यह गंतव्य कई स्थानीय रेस्तरां से भी भरा है जहां आप लजीज सी-फूड्ड का आनंद ले सकते हैं।

मुल्लकल भगवती मंदिर

शहर के मध्य में बना मुल्लकल भगवती मंदिर देवी राजाराजेश्वरी को समर्पित है और ठेठ केरल के मंदिर का आभास देता है।

मन्नारसरला मंदिर

यह नागराज या नाग देवता के अनुयायियों का तीर्थस्थान है। मन्नारसरला मंदिर में सांप की 30,000 से ज्यादा छवियां हैं और मंदिर का मुख्य त्यौहार मन्नारसरला अयीलयम मनाने के लिए विशेष जुलूस निकाले जाते हैं और प्रसाद चढाया जाता है।

अलाप्पुझा सीएसआई क्राइस्ट चर्च

सन् 1818 में पहली चर्च मिशनरी सोसायटी द्वारा बनवाया गया अलाप्पुझा सीएसआई क्राइस्ट चर्च त्रावणकोर में बना पहला चर्च था।

अल्लेप्पी के अन्य आकर्षण


नेहरु ट्राॅफी नौका दौड़


नेहरु ट्राॅफी नौका दौड़ अल्लेप्पी का कभी ना मिस करने वाला आकर्षण है, जो सन् 1952 में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की अल्लेप्पी यात्रा पर शुरु हुई थी। अगस्त में पुन्नमदा झील में होने वाला यह एक विशाल आयोजन है, जिसमें केरल की विशाल सर्प नौका और प्राचीन मलयाली राजाओं द्वारा उपयोग होने वाले चुंदन पोत इसके मुख्य आकर्षण है।

आज यह नौका दौड़ अल्लेप्पी का सबसे बड़ा पर्यटन का आयोजन है। इसमें हर नौका एक गांव द्वारा प्रायोजित होती है। यह एक गंभीर दौड़ है, जिसमें हर नाव में 100 से ज्यादा नौका चलाने वाले होते हैं जो तेज संगीत पर इस दौड़ को खत्म करने की होड़ में रहते हैं।

काॅयर उत्पादन प्रक्रिया

अल्लेप्पी काॅयर निर्माण की प्रकिया की झलक नारियल की भूसी से रस्सी बनाने और काॅयर यार्न बनाने में देता है। काॅयर के कालीन और चटाई बेचने वाली कई दुकानें यहां हैं।

अल्लेप्पी के पास पर्यटन स्थल

पर्यटक अल्लेप्पी के पास ऐतिहासिक स्थानों और दर्शनीय स्थलों का दौरा कर सकते हैं। पथिरमनल जो कि वमबनद झील पर बना एक छोटा संुदर द्वीप है, जल्दी ही प्रमुख पर्यटल स्थल के तौर पर विकसित किया जाएगा।

अम्बनपुझा का श्री कृष्ण मंदिर, जो कि अल्लेप्पी से 14 किमी दूर है, केरल का सबसे प्रमुख मंदिर है। जिसमें राज्य की विशिष्ट मंदिर स्थापत्य शैली है। यह अपने पलपायासम यानि मीठे दूध के दलिए के प्रसिद्ध है। अम्बनपुझा के पास करुमडी गांव अपनी करुमडी कुट्टन यानि बुद्ध की काले ग्रेनाइट से बनी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है, जो कि 9वीं या 10वीं सदी की है। सन् 1965 की अपनी केरल यात्रा के दौरान दलाई लामा ने इस मंदिर में पूजा की।

अर्थींकल, सेंट एंड्रयूज चर्च के लिए जाना जाता है। इसे पुर्तगाली मिशनरी ने सन् 1951 में बनवाया था। यह चर्च अल्लेप्पी से 22 किमी उत्तर में शैरथल्लाई के पास स्थित है। हर साल जनवरी में यहां सेंट सेबेस्टीयन का फीस्ट आयोजित होता है। पंबा नदी पर चंबकुलम है, जो अगस्त या सितंबर में होने वाली नौका दौड़ के लिए प्रसिद्ध है। इसमें पारंपरिक रुप से सभी समुदाय के लोग भाग लेते हैं।

18वीं सदी का कृष्णपुरम महल त्रावणकोर के राजा मर्थानंदा वर्मा के शासनकाल में बना था। केरल के सबसे बड़े भित्ति चित्र यहां रखे हैं, जिन्हें गजेन्द्र मो़क्षम कहा जाता है। अल्लेप्पी से कुछ दूरी पर पुन्नपरा है। इस गांव का नाम सन् 1946 में कम्युनिस्टों और त्रावणकोर राज्य पुलिस के बीच पुन्नपरा-व्यालार-कम्युनिस्ट बगावत में हुई लड़ाई के लिए इतिहास में दर्ज है।