इस सावन परिवार संग करे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन, जानिए यहां की पौराणिक मान्यता

भगवान शिव को सावन का महीना बहुत प्रिय है। शास्त्रों में बताया जाता है जो भी भक्त सच्चे मन से सावन के महीने में शिवजी की पूजा करता है, उसी सभी मनोकामना पूरी होती हैं और शुभ फल की प्राप्ति होती हैं। ऐसे में अगर आप भी सावन के महीने में भगवान शिव की कृपा पाना चाहते है तो जल्द ही परिवार के साथ ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का प्लान बना ले।

आपको बता दे, देशभर में भगवान शिव के बहुत सारे शिवलिंग हैं, लेकिन देश में 12 ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है। इनमें से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग। यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में पावन नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। सावन के महीने में यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसे में आप भी द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दो रुपों में विभक्त है, जिसमें ओंकारेश्वर और ममलेश्वर शामिल हैं। इनकी पूजा विधि-विधान से की जाती है। शिवपुराण में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को परमेश्वर लिंग भी कहा गया है।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा है कि एक बार ऋषि नारद मुनि घूमते-घूमते गिरिराज विंध्य पर्वत पर पहुंच गए। जहां पर उनका स्वागत बहुत धूमधाम से किया गया। विन्ध्याचल ने अपनी प्रशंसा में कहा कि वे सर्वगुण सम्पन्न हैं, उन्हें किसी भी चीज की कमी नहीं है। नारद मुनि को उनकी बातों में अंहकार साफ-साफ दिखाई दिया। वैसे भी नारद मुनि को अहंकारनाशक भी कहा जाता है। उन्होंने विन्ध्याचल के अहंकार को खत्म करने का विचार बनाया। नारद जी ने विन्ध्याचल से कहा कि आपके पास सब कुछ है, लेकिन मेरू पर्वत की ऊंचाई नहीं है। नारद मुनि ने कहा कि मेरू पर्वत आपसे बहुत ऊंचा है, जिसकी चोटी इतनी ऊंची हो गयी हैं कि वो देवताओं के लोकों तक पहुंचे चुके हैं।

नारद मुनि ने विध्यांचल से कहा कि आपके शिखर वहां तक कभी भी नहीं पहुंच पाएंगे। नारद मुनि यह सब कहकर वहां से चले गए। उनकी बात सुनकर विन्ध्याचल को बहुत दुख हुआ। उन्होंने खुद को अपमानित होने जैसा समझ लिया। विन्ध्याचल ने फैसला किया कि वो शिव जी की आराधना करेंगे। उन्होंने मिट्टी के शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या करने लगे। विन्ध्याचल ने लगातार कई महीने तक शिव जी की पूजा की। उनकी कठोर तपस्या से शिव जी प्रसन्न हो गए। शिव ने विन्ध्याचल को दर्शन और आशीर्वाद दिया।

भगवान शिव ने विन्ध्याचल से वरदान मांगने को कहा। विन्ध्याचल ने भगवान शिव से वरदान में कहा कि मुझे कार्य की सिद्धि करने वाली अभीष्ट बुद्धि प्रदान करें। शिव ने विन्ध्याचल की बात सुनकर तथास्तु बोल दिया। ठीक उसी समय देवतागण तथा कुछ ऋषिगण भी वहां पहुंच गए। सभी ने उनसे अनुरोध किया कि वहां स्थित ज्योतिर्लिंग दो स्वरूपों में विभक्त हो जाए। इनके अनुरोध पर ही ज्योतिर्लिंग दो स्वरूपों में विभक्त हुआ, जिसमें से एक प्रणव लिंग ओंकारेश्वर और दूसरा पार्थिव लिंग ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का विस्तार से वर्णन है। मान्यता है कि ओंकारेश्वर के दर्शन मात्र से ही मनुष्य की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मान्धाता पर्वत पर स्थित है। कहा जाता है कि मान्धाता ने इसी पर्वत पर अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। जिस वजह से इस पर्वत को उनके नाम से जाना गया।

कैसे पहुंचे?

नर्मदा के दक्षिणी तट पर ममलेश्‍वर (प्राचीन नाम अमरेश्‍वर) मंदिर स्‍थित है। यह ज्योतिर्लिंग खंडवा से 75km इंदौर-खंडवा हाईवे पर स्थित है। यहां अद्वैत के प्रणेता आदिगुरु शंकराचार्य के गुरू गोविन्‍द जी की गुफा, सिद्धनाथ के भव्‍य मंदिर के भग्‍नावशेष, गौरी सोमनाथ का मंदिर, ऋणमुक्‍तेश्‍वर मंदिर स्थित हैं। यहां नजदीक ही जैन धर्म का तीर्थ सिद्धवरकूट भी स्थित है। यहां का नजदीकी एयरपोर्ट देवी अहिल्‍याबाई होलकर इंदौर में है। जहां से इस मंदिर की दूरी 84 किलोमीटर है। ओंकारेश्वर मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन इंदौर और खण्‍डवा दोनो जगह है, जहां से श्रद्धालु टैक्सी के इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए पहुंच सकते हैं।