मूसी महारानी की छतरी, अलवर के मुख्य महल के बाहर स्थित राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध स्मारकों में से एक है। यह सुंदर सेनोटाफ राजा और रानी की कब्र को आश्रय देता है, जो संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर से मिलकर बनी अद्भुत संरचना है। अरावली पहाडिय़ों की पृष्ठभूमि में स्थापित यह दो मंजिला संरचना सूर्यास्त के दौरान और अधिक आकर्षक लगती है। अपनी इसी आश्चर्यजनक वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध मूसी महारानी की छतरी पर्यटकों ओर इतिहास प्रेमियों के घूमने के लिए अलवर की आकर्षक जगहों में से एक है जो प्रतिबर्ष हजारों की संख्या में पर्यटक को अपनी और आकर्षित करती है।
इतिहास प्रेमियों के साथ साथ मूसी महारानी की छतरी पर्यटकों और कपल्स के लिए भी खास जगह है जहाँ आप अपनी फैमली या प्रेमी के साथ एकांत में टाइम स्पेंड कर सकते है साथ यहाँ से सूर्यास्त के अद्भुत दृश्यों को देख सकते हैं।
मूसी महारानी की छतरी का इतिहासमूसी महारानी की छतरी का इतिहास आज से लगभग 200 साल से भी जाड्या पुराना है। मूसी महारानी की छतरी का निर्माण विनय सिंह ने 1815 में महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसि की स्मृति के रूप में करवाया था। अरावली पर्वत पर बने बाला किले जाने के मुख्य रास्ते पर शहर के सागर (तालाब) के पास रियासत काल में बनी मूसी महारानी की छतरी (स्मारक) अलवर के मुख्य पर्यटन स्थलों में शामिल है। इसके अलावा यह शहरवासियों की आस्था का केंद्र भी है। मान्यता है कि यहाँ बने मूसी महारानी और राजा बख्तावर सिंह के पगलियों (पदचिह्न) को पानी से धोकर अगर उस पानी को शरीर पर लगाया जाए तो बीमारियाँ दूर हो जाती हैं। पहाड़ की तलहटी में बने इस स्मारक के पास ही सागर है, जहां रियासतकाल में राजा नौका विहार करते थे। हालांकि बहुत से लोगों को ये नहीं पता कि आखिर मूसी महारानी कौन थीं और वे राजपरिवार का हिस्सा कैसे बनीं।
मूसी महारानी की ऐसे हुई राजपरिवार में एंट्रीराजपरिवार से जुड़े लोगों का कहना है कि जिले नौगांवा के पास स्थित रघुनाथगढ़ में रियासतकाल के दौरान ग्रामीणों में एक विवाद हुआ था। विवाद की वजह मूसी महारानी व उनकी मां थी। इसके बाद राजा के सैनिक मूसी व उनकी मां को अलवर लेकर आए। हालांकि उस समय मूसी महारानी की उम्र काफी कम थी, लेकिन वे बहुत सुंदर थीं। यहां मूसी व उनकी मां को गाने-बजाने का कार्य दिया गया, जो विभिन्न अवसरों पर राजदरबार में नृत्य व गायन की प्रस्तुतियाँ देती थीं। जब मूसी बड़ी हुईं तो महाराज बख्तावर सिंह ने उनसे विवाह कर लिया। हालांकि दोनों की उम्र में काफी अंतर था। कालांतर में महाराजा की मौत हो जाने पर मूसी महारानी उनकी चिता पर लेटकर सती हो गईं।
मूसी महारानी की छतरी की वास्तुकलामूसी महारानी की छतरी अलवर की शानदार और खूबसूरत सरंचना है जो फूल के आकार की है जिसे भूरे बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर के मिश्रण के साथ बनाया गया है। मूसी महारानी की छतरी की पहली मंजिल को बलुआ पत्थर और ऊपरी मंजिला और छतरी (सेनोटाफ) सफेद संगमरमर में बनाया गया है। जबकि ईमारत की आंतरिक छत को कुछ सुंदर पौराणिक चित्रों और भित्तिचित्रों से सजाया गया है।
मूसी महारानी की छतरी वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। इसके आंतरिक भाग की छत को सुंदर पौराणिक चित्रों से सजाया गया है। इस स्मारक की विशेषता है कि पूरी छतरी बलुआ पत्थर के स्तम्भों पर टिकी हुई है। सूर्यास्त के समय इस दो मंजिला इमारत की खूबसूरती और बढ़ जाती है। स्मारक के ऊपरी भाग में चबूतरे पर राजा व रानी के पदचिन्ह बनाए गए हैं। मूसी महारानी की छतरी को महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसी की याद में उस समय के राजा विनय सिंह ने बनवाया था। कहा जाता है कि मूसी महारानी महाराज से उम्र में काफी छोटी थीं, जो महाराज बख्तावर सिंह की चिता पर सती हो गई थीं। छतरी के ऊपरी भाग में कृष्ण लीला के भाव और महाराज बख्तावर सिंह का हाथी पर सवारी का चित्रण किया गया है। जबकि छतरी को रंग-बिरंगे कलाकृतियों से सजाया गया है।
मूसी महारानी की छतरी की टाइमिंगबता दे वैसे तो मूसी महारानी की छतरी 24 घंटे खुली रहती है लेकिन पर्यटकों के घूमने के लिए समय प्रतिदिन सुबह 9.00 बजे से शाम 7.00 बजे तक का होता है।
मूसी महारानी की छतरी का प्रवेश शुल्कमूसी महारानी की छतरी घूमने जाने वाले पर्यटकों को बता दे मूसी महारानी की छतरी में प्रवेश और यहाँ घूमने के लिए कोई भी प्रवेश शुल्क नही है यहाँ आप बिना किसी शुल्क का भुगतना किये अपनी फैमली, फ्रेंड्स या अपने कपल के साथ घूम सकते है।
मूसी महारानी की छतरी के आसपास घूमने की जगहेंअलवर राजस्थान का एक प्रमुख शहर और पर्यटक स्थल है मूसी महारानी की छतरी के साथ साथ अन्य पर्यटक स्थल और मंदिरों के लिए फेमस है जिन्हें आप मूसी महारानी की छतरी की यात्रा के दौरान टाइम बचने पर घूमने जा सकते है—
भानगढ़ का किला, सिटी पैलेस, नीमराणा की बावड़ी, विजय मंदिर महल, नारायणी माता मंदिर, पांडुपोल हनुमान मंदिर, भर्तृहरि मंदिर, तिजारा जैन मंदिर, नीलकंठ मंदिर, मोती डूंगरी, सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान, नीमराना फोर्ट, केसरोली, अलवर सिलीसेढ़ झील, पैलेस म्यूजियम।
मूसी महारानी की छतरी घूमने जाने का सबसे अच्छा समयमूसी महारानी की छतरी और इसके आसपास के पर्यटकों स्थलों की यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च के महीने सबसे अच्छे होते हैं क्योंकि इस दौरान यहाँ का तापमान काफी कम और मौसम ठंडा होता है। इसके विपरीत गर्मियों में चिलचिलाती धूप के साथ तापमान काफी बढ़ जाता है इसीलिए इस दौरान अलवर की यात्रा से बचना बेहतर है।
अब यहां होते हैं सांस्कृतिक कार्यक्रममूसी महारानी की छतरी के अलवर के प्रमुख पर्यटक स्थलों में शामिल होने के कारण दुनियाभर के पर्यटक यहाँ की वास्तुकला को देखने आते हैं। ऐतिहासिक सागर के पास निर्मित इस स्मारक पर पर्यटन विभाग एवं प्रशासन की ओर से विभिन्न आयोजन कराए जाते रहे हैं। जबकि मत्स्य उत्सव में भी यहां सांस्कतिक कार्यक्रम होते हैं।