देवी हिडिम्बा का मंदिर देता हैं अद्भुद दृश्य का नजारा

मनाली जाने वाले हिडिम्बा देवी के मंदिर जरूर जाता है। मंदिर का निर्माण 1533 में कराया गया था। मंदिर में कभी जानवरों की बलि दी जाती थी, लेकिन अब इसे बंद कर दिया गया है। लेकिन आज भी मंदिर की दीवारों पर सैकड़ों जानवरों के सींग लटके हुए हैं। पांचों पांडवों में सबसे बलशाली भीम की पत्नी हिडिम्बा को कुल्लू राजवंश की दादी के रूप में जाना जाता है। पगोड़ा शैली में बने इस मंदिर के आस-पास का दृश्य इतना सुंदर है कि मनाली में आने वाले पर्यटक यहां जरूर आते हैं। इसी कारण के इस मंदिर की गिनती हिमाचल प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में की जाती है।

कौन थी हिडिम्बा

लोक कथाओं के अनुसार, हिडिम्बा एक राक्षसी थी, जिसके भाई हिडम्ब का राज मनाली के आसपास के पूरे इलाके में था।हिडिम्बा ने महाभारत काल में पांचों पांडवों में सबसे बलशाली भीम से शादी की थी। हिडिम्बा ने प्रण लिया था कि जो उसके भाई हिडिम्ब को युद्ध में मात देगा। उससे वो शादी करेगी। अज्ञातवास के दौरान पांडव मनाली के जंगलों में भी आए थे। यहां राक्षस हिडिम्ब से भीम का युद्ध हुआ था। भीम ने हिडिम्ब को युद्ध में हराकर उसकी हत्या कर दी थी। इसके बाद हिडिम्बा ने भीम से शादी कर ली थी।

हिडिम्बा की पूजा क्यों की जाती है

महाभारत के युद्ध में घटोत्कच का नाम आता है। लोककथाओं के मुताबिक, वो हिडिम्बा और भीम का ही बेटा था। मां के आदेश पर घटोत्कच ने युद्ध में अपनी जान देकर कर्ण के बाण से अर्जुन की जान बचाई थी। हिडिम्बा राक्षसी की तब से ही लोग पूजा करने लगे थे। हिमाचल प्रदेश ते हर क्षेत्र के अपने-अपने देवी-देवता हैं, जिनकी मान्यता स्थानीय लोगों में भरपूर होती है। हिडिम्बा को स्थानीय लोग मां दुर्गा का अवतार मानते हैं और इसी रूप में उनकी पूजा भी करते हैं। कहा जाता है कि समय-समय पर हिडिम्बा ने यहां के लोगों को कई राक्षसों से मुक्ति दिलाई थी, जिसकी वजह से लोग उन्हें मां दुर्गा का अवतार मानने लगे। मंदिर में हिडिम्बा देवी की लगभग साठ सेंटीमीटर ऊंची पत्थर से बनी मूर्ति है। इस मंदिर में सिर्फ सुबह के समय ही पूजा की जाती है।

मंदिर का इतिहास

कहा जाता है कि विहंगम दास नाम का शख्स एक कुम्हार के यहां नौकरी करता था। हिडिम्बा देवी ने विहंगम को सपने में दर्शन देकर उसे कुल्लू का राजा बनने का आशीर्वाद दिया था। इसके बाद विहंगम दास ने यहां के एक अत्याचारी राजा का अंत कर दिया था। वे कुल्लू राजघराने के पहले राजा माने जाते हैं। इनके वंशज आज भी हिडिम्बा देवी की पूजा करते हैं। कुल्लू राजघराने के ही राजा बहादुर सिंह ने हिडिम्बा देवी की मूर्ति के पास मंदिर बनवाया था।

मंदिर की शैली
कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी के मध्य राजा बहादुर सिंह ने यहां इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यह प्राचीन मंदिर ऐतिहासिक पगोड़ा शैली में बनाया गया है। मंदिर की छत चार तलों में बंटी हुई है। साथ ही मंदिर की तीन दिशाओं में बरामदे हैं, जहां लकड़ी पर बहुत ही सुंदर नक्काशी की गई है। मंदिर के मुख्य दरवाजे के ठीक ऊपर नवग्रहों की प्रतिमा बनी हुई है।

पेड़ पर विराजित है घटोत्कच

मंदिर से लगभग 20 मीटर की दूरी पर भीम और हिडिम्बा का पुत्र घटोत्कच विराजमान हैं। यहां कोई मंदिर नहीं है। देवदार के वृक्ष पर ही घटोत्कच का निवास माना जाता है और यहीं पर उनकी पूजा की जाती है।