लेना चाहते हैं अलग अंदाज में होली का मजा, सेलिब्रेट करने के लिए जाएं यहां घूमने

आने वाले दिनों में होली का त्यौहार आने वाला हैं जिसे रंगों के त्यौहार के रूप में जाना जाता हैं। लोग इस दिन का सालभर तक इंतजार करते हैं और इसका जोश-उत्साह उनमें देखते ही बनता हैं। बहुत कम ऐसा होता है कि किसी त्यौहार पर हम किसी और शहर गए हो। लेकिन कुछ लोग होते हैं जो होली ऐसी जगह जाकर मनाना पसंद करते हैं जहां का माहौल हटकर हो। इस बार होली पर आप भी कुछ ऐसा ही प्लान बना रहे हैं, तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसी जगहों के बारे में जहां जाकर आप होली के त्यौहार को खुलकर एंजॉय कर पाएंगे। इनमें से कई जगहों पर तो विदेशी सैलानी भी होली खेलने पहुंचते हैं। आइये जानते हैं उन जगहों के बारे में जहां आप होली सेलिब्रेट करने जा सकते हैं...

मथुरा

परंपराओं में और भगवान कृष्ण के प्रेम में सराबोर, मथुरा निश्चित रूप से भारत में होली मनाने के लिए शीर्ष स्थानों में से एक है। किंवदंतियों के अनुसार, होली पर रंग खेलने की प्रथा राधा और कृष्ण के नाटक से उत्पन्न हुई। भगवान का जन्म स्थान मथुरा का दिव्य शहर, होली के त्योहार के दौरान अपने सबसे अच्छे स्थान पर है। मंदिरों से लेकर नदी घाटों तक होली गेट तक एक रंगीन और संगीतमय जुलूस निकलता है। उत्सव से लगभग एक सप्ताह पहले उत्सव शुरू होता है। मंदिरों को सजाया जाता है, गाने, और मंत्र एक भक्तिमय माहौल बनाते हैं। त्योहार के दिन, मथुरा में सबसे अच्छी जगह द्वारकाधीश मंदिर है। यहां लट्ठमार होली की परंपरा है, जिसमें महिलाएं लट्ठ यानी डंडों से लड़कों को खेल-खेल में मारती हैं और रंग लगाती हैं।

उदयपुर

उदयपुर की होली बड़े ही शाही अंदाज में मनाई जाती है। दो दिन तक चलने वाले इस त्योहार में मेवाड़ के राजा सभी अतिथियों का स्वागत करते हैं और उन्हें रॉयल सिटी पैलेस लेकर जाते हैं। पहले दिन बॉनफॉयर के माध्यम से होलिका दहन किया जाता है। उदयपुर की इस शाही होली की खासियत यह है कि यहां आपको राजस्थान की पूरी सभ्यता और परंपरा देखने को मिल जाएगी। सभी लोग राजस्थानी कपड़े पहने होते हैं और उनके परंपरिक लोकगीत की धुन पर नांचते हैं। वहां आए सभी अतिथियों को शाही भोज भी करवाया जाता है और उसके बाद खूब सारी आतिशबाजी होती है।

बरसाना

बरसाना में भी मथुरा की लठमार होली की तरह की छड़ीमार होली खेली जाती है। बरसाने की होली में महिलाएं प्रतिकात्मक तौर पर पुरुषों को लट्ठ या छड़ी से मारती हैं। वहीं पुरुष ढाल से अपनी रक्षा करते हैं। इसके अलावा यहां होली से कुछ दिन पहले लड्डू होली मनाई जाती है, जिसमें पंडित भगवान कृष्ण को लड्डू का भोग लगाते हैं और फिर उन्हीं लड्डूओं को भक्तों की ओर फेंकते हैं। इसके बाद अबीर गुलाल और फूलों की होली खेली जाती है।

पंजाब

पंजाब में होला मोहल्ला नाम का त्योहार बहुत प्रचलित है। दूर-दूर से इसे देखने के लिए लोग आते हैं। बता दें, होला मोहल्ला का आयोजन पंजाब के आनंदपुर साहिब में हर साल किया जाता है। ये त्योहार पारंपरिक होली से अलग इसलिए है, क्योंकि यहां रंगों से नहीं बल्कि, तलवार बाजी, घुड़ सवारी और मार्शल आर्ट के माध्यम से होली का त्योहार मनाया जाता है। सिर्फ यही नहीं, इस कार्यक्रम के बाद जगह-जगह विशाल लंगर लगाए जाते हैं और सभी को स्वादिष्ट हलवा, पूरी, गुजिया और मालपुआ परोसा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि होला मोहल्ला की शुरुआत सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने की थी। आज काफी सालों से इस त्योहार को पूरे 6 दिन तक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

हंपी

कर्नाटक में दो दिन की होली मनाई जाती है। कर्नाटक की होली काफी अनोखे तरीके की होती है, जो हंपी में मनाई जाती है। दूर दराज से लोग हंपी घूमने लिए आते हैं और नाच गाकर रंगों से होली मनाते हैं। हंपी की ऐतिहासिक गलियों में ढोल नगाड़ों की थाप के साथ जुलूस निकाले जाते हैं। कई घंटों तक रंग खेलने के बाद लोग तुंगभद्रा नदी और उसकी सहायक नहरों में स्नान करते हैं।

दिल्ली

दिल्ली की होली का रंग थोड़ा अलग और बहुत ज्यादा मजेदार होता है। यहां रंगों के साथ ही सुर और संगीत की धूम रहती है। खाने पीने की लजीज चीजें और जगह-जगह चल रहे होली के प्रोग्राम आपको यहां आने का निमंत्रण देते हैं। होली की पूर्व संध्या पर, अलाव या होलिका जलाई जाती है जहां लोग बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं। अगले दिन लोग चमकीले रंगों से खेलते हैं। अद्भुत पार्टियां, संगीत, डीजे, नृत्य, भांग आदि ने खुलासे किए। मज़ा को जोड़ने के लिए कई पार्टियां आयोजित की जाती हैं।

पुरुलिया

पश्चिम बंगाल में स्थित पुरुलिया में होली का त्योहार होली से एक दिन पहले मनाया जाता है। बंगाल की सभ्यता की झलक यहां के पारंपरिक नृत्य में देखने को मिलती है। होली के मौके पर छाउ डांस, दरबारी झूमर डांस किया जाता है और वहां के मशहूर म्यूजिशियन खूबसूरत गाने गाते हैं और एक यादगार समा बांधते हैं। बता दें, पुरुलिया में यह त्योहार तीन दिनों तक मनाया जाता है और लोग दूर-दूर से इसका हिस्सा बनने आते हैं।

मणिपुर

रंगों का त्योहार मणिपुर में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। हर कोई इस खुशी के त्योहार में भाग लेता है, जिसे स्थानीय रूप से ‘यशांग’ नाम दिया गया है और इसे पांच दिनों के लिए मनाया जाता है। मणिपुर में, लोग भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं और फिर त्यौहार की शुरुआत से पहले ‘योसंग मीथाबा’ नामक पुआल की एक झोपड़ी जलाते हैं। युवा लड़के और लड़कियां तब पारंपरिक वेशभूषा में घर-घर जाते हैं, जो ‘नाकाथेंग’ या प्रथागत धन की मांग करते हैं।