हिमाचल के उना शहर में बसा हैं चिन्तपूर्णी देवी मंदिर, जानें इससे जुड़ी रोचक जानकारी

भारत के पर्यटन स्थलों में से एक हैं हिमाचल प्रदेश जहां आपको कई हिल स्टेशन का प्राकृतिक सौन्दर्य देखने को मिलता हैं। लेकिन इसी के साथ ही हिमाचल प्रदेश को देवी-देवताओं की भूमि भी कहा जाता हैं जहां आपको कई मंदिर के दर्शन होते हैं। आज इस कड़ी में हम बात करने जा रहे हैं मां चिन्तपूर्णी देवी मंदिर के बारे में जो हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित हैं। चिन्तपूर्णी देवी यहां विराजमान देवी हैं जहाँ उन्हें सिर के बिना पिंडी रूप (गोल पत्थर) में दिखाया गया है। मान्यता हैं की अगर कोई भक्त देवी माता की सच्चे मन से प्रार्थना करता है तो चिन्तपूर्णी देवी उसके सभी कष्टों और विप्पतियों को हर लेती है। मान्यता है कि इसी स्थान पर सती के पैर के अंग गिरे थे। ये छिन्नमस्तिका देवी का स्थान भी है, इसलिए माता चिंतपूर्णी' को छिन्नमस्तिका धाम के नाम से भी जाना जाता है। हम आपको चिन्तपूर्णी देवी मंदिर से जुड़ी रोचक जानकारी देने जा रहे हैं।

मां चिंतपूर्णी देवी उत्पति की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार सभी माताओ की उत्पति की एक ही कथा है। चिंतपूर्णी देवी माता सती का ही रूप है। कहानी कुछ इस तरह है की भगवान शिव की शादी माता सती से हुई थी माता सती के पिता का नाम राजा दक्ष था वो भगवान शिव को अपने बराबर नहीं मानता था। एक बार महाराज दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ का आयोजन किया उन्होंने सभी देवी देवताओं की निमंत्रण भेजा किन्तु भगवान शिव और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा गया। यह देखकर माता सती को बहुत क्रोध आया और उन्होंने वह जाकर अपने पिता से इस अपमान का कारण पूछने के लिए उन्होंने शिव भगवान से वहां जाने की आज्ञा मांगी किन्तु भगवान शिव ने उन्हें वहां जाने से मना कर दिया किन्तु माता सती के बार-बार आग्रह करने पर शिव भगवान ने उन्हें जाने दिया। जब बिना बुलाए यज्ञ में पहुंची तो उनके पिता दक्ष ने उन्हें काफी बुरा भला कहा और साथ ही साथ भगवान शिव के लिए काफी बुरी भली बातें कही जिसे माता सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने उसी यज्ञ की आग में कूद कर अपनी जान दे दी। यह देख कर भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने माता सती का जला हुआ शरीर अग्नी कुंड से उठाकर चारों और तांडव करने लग गये जिस कारण सारे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। यह देख कर लोग भगवान विष्णु के पास भागे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े किये ये टुकड़े जहाँ जहाँ गिरे वह पर शक्ति पीठ बन गए। मान्यता है की यहां माता के चरण गिरे थे जिसे सब चिंतपूर्णी माता नाम से जाना गया।

मां चिंतपूर्णी देवी मंदिर का इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि गरीबी से परेशान होकर एक बार एक पंडित अपने ससुराल जा रहे थे। रास्ते में ही अंधेरा हो जाने के बाद वे एक बरगद के पेड़ के नीचे विश्राम करने लगे। तभी सपने में एक छोटी बालिका के रूप में माता ने उस पंडित को दर्शन दिए। नींद खुलने के बाद उस पंडित को कुछ भी नहीं दिखा, इसलिए वे सुबह अपने ससुराल की ओर निकल पड़े।

ससुराल से लौटते वक्त पंडित ने उसी बरगद के पेड़ के नीचे रात में विश्राम करने का निर्णय लिया। बरगद के पेड़ के पास पहुंचने के बाद पंडित ने ध्यान लगाना शुरू किया। फलस्वरूप माता ने उस पंडित को अपने चतुर्थ रूप में दर्शन दिया और कहा कि मैं इस बरगद के वृक्ष के नीचे वास करूंगी। और साथ में यह भी कहा कि इस बरगद के वृक्ष के पास स्थित पत्थरों के नीचे-नीचे एक नदी का जल बहता है। पंडित ने सुबह जब पत्थर हटाया, तो वहां पर एक नदी का जल मिला, जिससे आज भी माता चिंतपूर्णी देवी का जलाभिषेक किया जाता है।

किन शक्तियों के लिए जानी जाती हैं माता चिंतपूर्णी


कुछ लोगों के अनुसार माता चिंतपूर्णी मां ज्वालामुखी का दूसरा नाम और रूप हैं। जैसा कि आप जानते हैं ज्वालामुखी मंदिर हिमाचल में ही स्थित है, इसी आधार पर इस जगह की देवी का नाम चिंतपूर्णी पड़ा। देवी को चिंताओं को दूर करने वाली माता के रूप में जाना जाता है। जिस भी व्यक्ति के जीवन में सुख, धन और सम्पत्ति का अभाव है, उनके दुख को चिंतपूर्णी मां दूर कर देती हैं। इस मंदिर की इस कारण से इतनी मान्यता है कि भक्त दूर-दूर से अपनी समस्याएं मां के पास लेकर आते हैं।

चिंतपूर्णी मंदिर का तालाब

चिंतपूर्णी मंदिर में एक तलाब है, जिससे एक प्राचीन कहानी जुड़ी हुई है। कहानी के अनुसार, मां भगवती ने भक्त 'मैदास जी' को कन्या रूप में प्रत्यक्ष दर्शन दिए और उनकी चिंता दूर हो गई। देवी भगवती ने उन्हें कहा कि आप जिस भी पत्थर को उखाड़ेंगे, वहां से पानी निकलने लगा। अब इस जगह पर एक तलाब है, जहां से भक्त ने पत्थर को उखाड़ा था। इस तालाब का निर्माण पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था। इसके बाद चिंतपूर्णी सरोवर कार्य समिति के पूर्व अध्यक्ष अमर शहीद ने इस तालाब का रेनोवेशन किया। तालाब के ठीक ऊपर, मंदिर के संस्थापक श्री 1008 बाबा मैदान जी की समाधि है। मंदिर के पास एक पवित्र बावड़ी है, जिसके जल से सभी रोग दूर होते हैं।

ऐतिहासिक दिव्य पत्थर

आप सोच रहे होंगे कि जिस पत्थर को उखाड़ा गया था, उस पत्थर का क्या हुआ, तो बता दें, वो ऐतिहासिक प्राचीन पत्थर आज भी तीर्थयात्रियों के दर्शन के लिए माता रानी के दरबार में रखा हुआ है। चिंतपूर्णी देवी मंदिर में प्रवेश करते ही इस पवित्र पत्थर को मुख्य द्वार के पास दाईं ओर देखा जा सकता है।

चिंतपूर्णी देवी मंदिर में लगने वाले मेले और त्यौहार

वैसे तो हमेशा ही मंदिर में एक उत्सव जैसा माहौल होता है लेकिन नवरात्र उत्सव चिन्तपूर्णी देवी मंदिर में बहुत धूमधाम, हर्षोल्लास और विधिवत मनाया जाता है। जिसमें दूर दूर से बड़ी संख्या में लोग देवी से आशीर्वाद लेने के लिए इस स्थान पर आते हैं। मेला देवी भगवती छिन्नमस्तका के मंदिर के पास आयोजित किया जाता है जहाँ प्राचीन काल में देवी माँ तारकीय रूप में प्रकट हुई थीं। मेला साल में तीन बार मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त और सितंबर-अक्टूबर के महीने में आयोजित किया जाता है। मार्च-अप्रैल में मेला नवरात्रों के दौरान लगता है जबकि जुलाई-अगस्त में यह शुक्ल पक्ष के पहले दस दिनों के दौरान लगता है। मेला पूरे दिन चलता रहता है लेकिन आठवें दिन यह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

मां चिंतपूर्णी देवी मंदिर कैसे पहुंचे

मां चिंतपूर्णी देवी मंदिर का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट कांगड़ा एयरपोर्ट है, जिसकी दूरी इस मंदिर से करीब 64 किमी. है। नजदीकी रेलवे स्टेशन ऊना में है, जिसकी दूरी इस मंदिर से करीब 56 किमी. है और नजदिकी बस स्टैंड चुरुरु है, जहां से इस मंदिर की दूरी करीब 33 किमी. है। इन तीनों जगहों से आप बस या टैक्सी द्वारा मां चिंतपूर्णी देवी मंदिर तक पहुंच सकते हैं।