दक्षिण भारत को अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता हैं। दक्षिण भारत में ऐसी कई जगह हैं जहां पर आप घूमने का लुत्फ़ उठा सकते हैं। खासकर मानसून के इस मौसम में तो दक्षिण भारत की ख़ूबसूरती देखने लायक होती हैं। दक्षिण भारत को जितना ख़ूबसूरती के लिए जाना जाता हैं उतना ही आध्यामिकता के लिए भी जाना जाता हैं। इसलिए सावन के इस पवित्र महीने में मानसून के दिनों का मजा लेने के लिए आज हम आपको दक्षिण भारत के एक राज्य आँध्रप्रदेश के प्रसिद्द शिव मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इन मंदिरों के बारे में।
* भगवान मल्लिकार्जुन मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम स्थित भगवान शिव का यह प्रसिद्ध मंदिर देश में बारह ज्योतिर्लिंगस में से एक है और इसलिए यह महादेव के अनुयायियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्योतिर्लिंग होने के अलावा, यहां विराजमान देवी भ्रामारम्बा के कारण यह मंदिर अष्टदास महा शक्ति पीठ (अठारह महा सक्ति पीठ) में भी गिना जाता है। ज्योतिर्लिंगम और महा सक्ति पीठ के इस अद्वितीय संयोजन के कारण यह स्थान हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है।
* श्री राजा राजेश्वर स्वामी श्री राजा राजेश्वर स्वामी मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन प्रसिद्ध मंदिर है। भगवान शिव का यह मंदिर राज्य (अब तेलंगाना) के करीमनगर जिले के अंतर्गत वेमुलावाड़ा नामक एक छोटे शहर में स्थित है। मंदिर के प्रमुख देवता भगवान राजा राजेश्वर स्वामी यहां नीला लोहित शिव लिंगम के रूप में हैं विराजमान हैं।
* भीमेश्वर स्वामी मंदिर भीमेश्वर स्वामी मंदिर दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण शिव मंदिरों में से एक है। यह स्थान हिंदुओं के लिए एक पवित्र स्थान है, क्योंकि इस मंदिर की गिनती शिव पंचरामों और 'अष्टदास महा सक्ति पीठ' की होती है। इसलिए यह मंदिर न केवल प्रसिद्ध शिव खेत्रम बल्कि एक महत्वपूर्ण सक्ति पीठ भी है।
* श्री कालहस्ती मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित श्री कालहस्ती मंदिर राज्य के चुनिंदा सबसे खास शिव मंदिरों में गिना जाता है। यह पवित्र मंदिर शहर के स्वर्णमुखी नदी तट पर स्थित है और प्रसिद्घ तिरुपति के बहुत ही करीब है। इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोल राजवंश के शासनकाल के दौरान हुआ था। माना जाता है कि इस प्राचीन मंदिर में भगवान शिव वायु रूप में मौजूद हैं,जिनकी पूजा कालहस्तेश्वर के रूप में की जाती है।