Diwali 2021 : राजस्थान में हैं प्रसिद्द कुलदेवियों के मंदिर, देते हैं आस्था का मनभावक माहौल

सर्दियों के इन दिनों में राजस्थान को पर्यटन के लिए बहुत पसंद किया जाता हैं और लोग दिवाली के आस-पास घूमने के दौरान मंदिरों के दर्शन करना भी पसंद करते हैं। ऐसे में राजस्थान के विभिन्न मंदिरों के दर्शन कर भक्त घूमने के साथ ही अपनी आस्था की भी पूर्ति करते हैं। आज इस कड़ी में हम आपको राजस्थान के प्रसिद्द देवी मंदिरो के बारे में बताने जा रहे हैं जहां कुलदेवियों की पूजा की जाती हैं। ये मंदिर पर्यटन के साथ ही आस्था का मनभावक माहौल प्रदान करते हैं। तो आइये जानते हैं इन मंदिरों के बारे में।

करणी माता मंदिर

राजस्थान के बीकानेर जिले में देशनोक नामक स्थान पर स्थित करणी माता के मन्दिर की देश- विदेश में ख्याति है। यह मन्दिर हजारों चूहों की विशाल संख्या के लिए प्रसिद्ध है। इसलिए इसे के नाम से भी जाना जाता है। यह देवी का चमत्कार ही है कि सैकड़ों सालों से इतने चूहों के बाद भी यहाँ कभी कोई बीमारी नहीं फैली, अपितु जब आस-पास के क्षेत्रों को महामारी ने चपेट में ले रखा था तब भी यह स्थान पूरी तरह सुरक्षित था।

शीतला माता मन्दिर

राजस्थान के पाली जिले में एक अद्भुत चमत्कार हर साल दोहराया जाता है। यहाँ स्थित एक छोटे से घड़े में हजारों लीटर पानी डाला जाता है परन्तु यह घड़ा बिल्कुल नहीं भरता। तथा माताजी का थोड़ा सा चरणामृत डाला जाने के बाद यह घड़ा भर जाता है। वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हैं कि भला इस घड़े का पानी जाता कहाँ है? करीब 800 साल से लगातार साल में केवल दो बार आधा फीट गहरा और इतना ही चौड़ा घड़ा भक्तों के सामने लाया जाता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा अब तक इसमें 50 लाख लीटर से ज्यादा पानी भरा जा चुका है।

जीण माता मन्दिर

राजस्थान शेखावाटी अंचल के सीकर जिले में स्थित जीण माता के दर्शन करने देश भर से माता भक्त यहाँ आते रहते हैं। नवरात्र के समय यहाँ विशाल मेला भरता है, जिसमे असंख्य श्रद्धालु यहाँ माता की झलक पाने हेतु आते हैं। जीण माता धाम से मात्र 28 किमी की दूरी पर विश्व-प्रसिद्ध खाटू श्यामजी का मन्दिर है। लोक विश्वास तथा ज्ञात इतिहास के अनुसार वर्तमान चुरू जिले के घांघू गाँव की चौहान राजकन्या जीण ने अपनी भावज के व्यंग्य बाणों और प्रताड़ना से व्यथित होकर सांसारिक जीवन छोड़कर आजीवन अविवाहित रहकर इस स्थान पर कठोर तपस्या की तथा लोकदेवी के रूप में प्रख्यात हुई।

आशापूरा माता मन्दिर

आशापूरा माता का प्रसिद्ध मन्दिर राजस्थान के पाली जिले के नाडोल नामक गाँव में स्थित है। यह शाकम्भरी के चौहान राजवंश की कुलदेवी थी। नैणसी की ख्यात का उल्लेख है कि लाखणसी चौहान को नाडौल का राज्य आशापूरा देवी की कृपा से मिला। तदनन्तर चौहान इसे अपनी कुलदेवी मानने लगे। आशा पूर्ण करने वाली देवी आशापूरा के नाम से विख्यात हुई। लाखणसी या लक्ष्मण नामक चौहान शासक द्वारा नाडौल में आशापूरा देवी का भव्य मन्दिर बनवाया गया जहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु जाते हैं।

तनोट माता मन्दिर

भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय माताजी ने जो चमत्कार दिखाए उनसे यह मन्दिर विश्वप्रसिद्ध हो गया। राजस्थान के जैसलमेर जिले में भारत – पाकिस्तान की बॉर्डर के नजदीक स्थित तनोट नामक गांव में विराजमान माताजी के अभूतपूर्व चमत्कारों का लोहा पाकिस्तान भी मान चुका है। भारत- पाकिस्तान युद्ध के समय देवी स्वांगियां ने अपनी शक्ति से इस धरा की रक्षा कर अद्भुत चमत्कार दिखाए। 16 नवम्बर 1965 ई। को पाकिस्तान के सैनिकों ने आगे बढ़कर शाहगढ़ तक 150 कि।मी। कब्जा कर लियऔर तन्नोट के चारों ओर घेरा डालकर करीब 3000 बम बरसाए लेकिन मंदिर को एक खरोंच तक नहीं आई।

शिला देवी मन्दिर

राजस्थान के जयपुर जिले में आम्बेर के महल में स्थित शिला देवी की आकर्षक प्रतिमा अपने भक्तों का मन मोह लेती है। यह आम्बेर जयपुर के राजवंश की कुलदेवी है। मंदिर में संगमरमर का सुंदर अलंकरण, चाँदी की परत से सुसज्जित किवाड़, पूजा के लिए चाँदी का घण्टा शाही शान की झलक प्रस्तुत करते हैं। इस मूर्ति के विषय में दो मत प्रचलित हैं एक तो यह कि यह मूर्ति राजा के पूजान्तर्गत थी तथा राजा को यह वरदान था कि जब तक इस प्रतिमा की अनवरत पूजा होती रहेगी वह अपराजेय रहेगा। महाराजा मानसिंह को इस रहस्य की जानकारी होने पर उसने पुजारी के माध्यम से पूजा के क्रम में विघ्न उत्पन्न करवाया, जिससे केदार राजा पराजित हुआ।

शाकम्भरी माता मन्दिर

शाकम्भरी माता का मन्दिर राजस्थान के जयपुर जिले के सांभर कस्बे में सांभर झील के पेटे में स्थित है। इस क्षेत्र में एक बार भयावह अकाल व सूखा पड़ा था तब देवी माँ ने शाक, वनस्पतियाँ व जल उत्पन्न करके यहाँ के निवासियों की रक्षा की थी। इस कारण देवी शाकम्भरी कहलाई। चौहान वंश के शासक वासुदेव ने सातवीं शताब्दी में साँभर झील और साँभर नगर की स्थापना शाकम्भरी देवी के मंदिर के पास में की। विक्रम संवत 1226 (1169 ई.) के बिजोलिया शिलालेख में चौहान शासक वासुदेव को साँभर झील का निर्माता व वहाँ के चौहान राज्य का संस्थापक उल्लेखित किया गया है।