ब्रिटिश वास्तुकला का अद्भुद नजारा पेश करते हैं भारत के ये ऐतिहासिक और खूबसूरत निर्माण

भारत एक विशाल देश हैं जिसका इतिहास बेहद अनोखा और संघर्षपूर्ण रहा हैं। यहां अंग्रेजों ने 300 सालों तक राज किया हैं। अंग्रेजों की उपस्थिति में भारत की स्थिति में कई परिवर्तन आए हैं। जहां एक तरफ देश को आर्थिक नुकसान हुआ तो कई नुकसान भी हुए। हांलाकि इसके उलट देश में कई अच्छे बदलाव भी आए हैं जैसे कि कई सामाजिक बुराईयों का अंत हुआ। वहीँ अंग्रेजों के शासन में कई निर्माण हुए हैं जिसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं। आज अंग्रेज भारत छोड़ के जा चुके हैं मगर आज भी उनके द्वारा बनवाई गयी इमारतें और सड़कें वास्तुकला के प्रति उनके लगाव को दर्शाती हैं। आज इस कड़ी में उन निर्माण के बारे में बताने जा रहे हैं जो भारत की आजादी से पहले के समय की बनी हुई हैं।

गेटवे ऑफ इंडिया, मुंबई

मुंबई के कोलाबा में स्थित गेटवे ऑफ इंडिया वास्तुशिल्प का चमत्कार है और इसकी ऊँचाई लगभग आठ मंजिल के बराबर है। वास्तुकला के हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रकारों को ध्यान में रखते हुए इसका निर्माण सन 1911 में राजा की यात्रा के स्मरण निमित्त किया गया। पृष्ठभूमि में गेटवे ऑफ इंडिया के साथ आपकी एक फोटो खिंचवाएँ बिना मुंबई की यात्रा अधूरी है। गेटवे ऑफ इंडिया खरीददारों के स्वर्ग कॉज़वे और दक्षिण मुंबई के कुछ प्रसिद्द रेस्टारेंट जैसे बड़े मियाँ, कैफ़े मोंदेगर और प्रसिद्द कैफ़े लियोपोल्ड के निकट है।

फोर्ट सेंट जॉर्ज चर्च, चेन्नई

चेन्नई का एक महत्वपूर्ण आकर्षण है सेंट जॉर्ज फोर्ट। इसे सन् 1640 में ईस्ट इंडिया कंपनी के फ्रांसिंस डे ने बनाया था। यह किला ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारिक केंद्र था। 150 वर्षों तक यह युद्धों और षड्यंत्रों का केंद्र बना रहा। इस किले में पुरानी सैनिक छावनी, अधिकारियों के मकान, सेंट मेरी गिरजाघर एवं रॉबर्ट क्लाइव का घर है। यह चर्च अँगरेजों द्वारा भारत में बनवाया गया सबसे पुराना चर्च माना जाता है। इसे अंग्रेजों द्वारा भारत में बनाया गया पहला किला भी कहते हैं। इस किले में आज तमिलनाडु विधान सभा मौजूद है।

इंडिया गेट, दिल्ली

दिल्ली के सभी मुख्य आकर्षणों में से पर्यटक, इंडिया गेट जाना सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। दिल्ली के ह्रदय में स्थापित यह भारत के एक राष्ट्रीय स्मारक के रूप में शान से खड़ा है। 42 मी। ऊंचे इस स्मारक का निर्माण पेरिस के आर्क-डी-ट्राईओम्फे की तरह किया गया है। इस स्मारक का मूल नाम अखिल भारतीय युद्ध स्मारक था जिसे लगभग 70000 सैनिकों की याद में बनवाया गया था। ये वे सैनिक थे जिन्होंने अंग्रेजी सेना की तरफ से विश्व युद्ध प्रथम एवं 1919 में तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध में अपने जीवन का बलिदान दिया था। हालाँकि इस इमारत की नींव महामहिम ड्यूक ऑफ़ कनॉट ने 1921 में रखी थी, परन्तु इस स्मारक को 1931 में उस समय के वाइसरॉय लार्ड इरविन ने पूर्ण करवाया।

हावड़ा ब्रिज

रवीन्द्र सेतु, भारत के पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के उपर बना एक कैन्टीलीवर सेतु है। यह हावड़ा को कोलकाता से जोड़ता है। इसका मूल नाम नया हाव दा पुल था जिसे 14 जून सन् 1965 को बदलकर ‘रवीन्द्र सेतु’ कर दिया गया। किन्तु अब ‘यह हावड़ा ब्रिज के नाम से अधिक लोकप्रिय है। इस पुल का निर्माण 1937—1943 के बीच हुआ था। इसे बनाने में 26500 टन स्टील की खपत हई थी। अंग्रेजों ने इस पुल को बनाने में भारत में बनी स्टील का इस्तेमाल किया था। इस पुल को तैरते हुए पुल का आकार इसलिए दिया गया था क्योंकि इस रास्ते से बहुत सारे जहाज निकलते हैं।यदि खम्भों वाला पुल बनाते तो अन्य जहाजों का परिवहन रुक जाता।

राष्ट्रपति भवन, दिल्ली

राष्ट्रपति भवन भारत में मौजूद सबसे प्रतिष्ठित इमारतों के अलावा अपनी प्रभावशाली वास्तुकला के और भारत के राष्ट्रपति के सरकारी निवास स्थान के रूप में जाना जाता है। ये इमारत तब अस्तित्व में आयी जब देश की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित करा गया। इस संरचना का निर्माण ब्रिटिश वाइसराय को समायोजित करने के लिए किया गया था और इस प्रकार यह इमारत शाही मुगल वास्तुकला और सुरुचिपूर्ण के रूप में अच्छी तरह से यूरोपीय वास्तुकला का एक शास्त्रीय मिश्रण दर्शाती है।

पमबन का पुल

भारत का पहला समुद्री पुल यानी कि ‘पमबन पुल’ 1914 में यातायात के लिए खोला गया था। फरबरी 2016 में इस पुल के निर्माण ने 102 वर्ष पूरे कर लिए हैं। यह 6776 फीट लम्बा पुल धार्मिक स्थल रामेश्वरम को भारत की मुख्य भूमि से जोड़ता है। 22 दिसंबर 1964 को आये एक भयंकर तूफ़ान में यह पुल बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था लेकिन भारतीय रेलवे के कर्मचारियों की अथक मेहनत की वजह से इसे 2 माह के अन्दर ही ठीक भी कर लिया गया था। यह पुल इस बात का बढ़िया प्रमाण है कि अंग्रजों के ज़माने की निर्माण तकनीकी कितनी बेमिशाल थी। बड़े जहाजों को रास्ता देने के लिए यह पुल 2 भागों में खुल भी जाता है।

विक्टोरिया मैमोरियल, कोलकाता

विक्टोरिया मैमोरियल भारत में अंग्रेजी राज को दी गई एक श्रद्धांजलि है, इसे पुनः निर्मित किया गया था और यह ताजमहल पर आधारित था। इसे आम जनता के लिए 1921 में खोला गया था, इसमें शाही परिवार की कुछ तस्वीरें भी हैं। इन बेशकीमती प्रदर्शन के अलावा पर्यटक विक्टोरिया मेमोरियल की ख़ूबसूरत संरचना को देखने यहाँ आते हैं। यह कोलकाता के सबसे मशहूर दर्शनीय स्थलों में से एक है।

विक्टोरिया टर्मिनस, मुंबई

वी। टी। स्टेशन जिसे छत्रपति शिवाजी स्टेशन भी कहा जाता है, कई वर्षों से मुंबई का प्रमुख व्यापारिक केंद्र है। यहाँ शहरी युवाओं की भीड़ रहती है और इस क्षेत्र के फुटपाथ और सबवे में कई आवश्यक वस्तुएँ जैसे इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ, कंप्यूटर बाज़ार और कपड़े की दुकाने हैं। वे पर्यटक जो दक्षिण मुंबई में ठहरें हैं उन्हें होटल के नीचे ही अनेक विकल्प उपलब्ध हैं जहाँ वे 17 वीं शताब्दी की पुस्तकों, स्टैम्प और सिक्के बेचने वाली दुकानों में सौदेबाज़ी कर सकते हैं।

दिल्ली का पुल

यमुना नदी पर बने इस पुल को पूर्वी दिल्ली का पुल भी कहा जाता है। इस जगह पर सबसे पहले मुग़ल सम्राट जहाँगीर ने किले को शहर से जोड़ने के लिए 1622 में लकड़ी के एक पुल का निर्माण कराया था।अंग्रजों ने इसी पुल को लोहे के गर्टरों से बनवाया था जो कि 12 अक्टूबर 1883 को बनकर तैयार हुआ था। 1917 में आये एक तूफ़ान में यह गंभीर रूप से क्षति ग्रस्त हो गया था लेकिन दुबारा बना लिया गया। यह पुल अभी भी प्रयोग में है परन्तु अब इसे 2018 में बंद कर दिया जायेगा। इसकी गणना भारत के सबसे पुराने पुलों में होती है। यह पुल अंग्रेजों की निर्माण प्रतिभा का अनौखा उदाहरण है।

सेल्यूलर जेल, अंडमान निकोबार

यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी, जो कि मुख्य भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी, व सागर से भी हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पडता था। यह काला पानी के नाम से कुख्यात थी। अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह इस जेल की नींव 1897 में रखी गई थी। इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल जोल को रोकना था। आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं।