प्राकृतिक सुन्दरता का आनंद लेना चाहते हैं तो घूम आए पूर्वोत्तर भारत के ये खूबसूरत पहाड़

जब भी कभी घूमने का प्लान बनाया जाता हैं तो ऐसी जगहों का चुनाव किया जाता हैं जो प्राकृतिक सुन्दरता का आनंद दें और शांति एवं सुकून की प्राप्ति करवाए। ऐसे में कई लोग पहाड़ियों पर घूमने जाना पसंद करते है जहां की मनमोहक सुन्दरता सैलानियों के लिए आकर्षण बनता हैं। भारत में सबसे ज्यादा पूर्वोत्तर भारत की पहाड़ियों को पसंद किया जाता हैं जो पर्यटन का अविस्मरणीय अनुभव करवाती हैं। अगर आप भी प्रकृति की अद्भुत सुंदरता का आनंद लेना चाहते है तो पूर्वोत्तर भारत के इन खूबसूरत पहाड़ का चुनाव कर सकते हैं। आइये जानते हैं उन पहाड़ों के बारे में जो रोमांच के साथ प्रकृति प्रेम का अद्भुद अहसास कराए।

माउन्ट पन्दिम

पूर्वोत्तर भारत के सबसे खूबसूरत पहाड़ो में शुमार माउंट पंदिम सिक्किम में स्थित एक हिमालय पर्वत है, यह पहाड़ समुद्र तल से 6,691 मीटर (21,952 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है और देश के सबसे ऊंचे पहाड़ों में से एक है। माउंट पन्दिम दोज़ोंगरी से शुरू होने वाले गोइचा ला के लिए पूरे ट्रेकिंग ट्रेल में दिखाई देता है। बता दे बर्फ से ढंका हुआ माउन्ट पन्दिम अपने पर्यटकों का मनमोहनीय और अद्भुद सुन्दरता से स्वागत करता है जिसे कोई एक बार देखे ले तो नजर हटाने का मन नही करता है। इसके अलावा यह पर्वत आसपास के कई क्षेत्रो में ट्रेकिंग ट्रेल्स के साथ धन्य है। इसलिए, आप यहाँ अपने कैमरे में इसकी खूबसूरती को निखारने के अलावा यहां ट्रैकिंग और हाइकिंग जैसी रोमांचक गतिविधियों को एन्जॉय करके सिक्किम की अपनी यात्रा को यादगार और रोमांचक बना सकते है।

कबरू

कबरू पूर्वी नेपाल और भारत की सीमा पर स्थित हिमालय श्रंखला का एक आकर्षक पर्वत है। यह पर्वत रिज का एक हिस्सा है जो कंचनजंगा के दक्षिण में फैला हुआ है। 25000 फीट की ऊंचाई पर स्थित कबरू नॉर्थ ईस्ट का एक अद्भुत पहाड़ है और जोंगरी से इसके सुंदर परिदृश्यो को साफ साफ़ देखा जा सकता है। जो हर साल हजारों पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को अपनी और आकर्षित करने में कामयाब होता है। यदि आप पूर्वोत्तर भारत में प्राकृतिक सुन्दरता के साथ साथ रोमांचक ट्रिप की तलाश में है तो कबरू की यात्रा आपके लिए बेस्ट विकल्प है। यहाँ पर्यटकों, प्रकृति प्रेमियों, रोमांच प्रेमियों सभी के लिए बहुत कुछ मौजूद है और यह पर्वत हर आगंतुक को मंत्रमुग्ध करने में सक्षम है।

जिमिगेला चूली

जिमिगेला चूली पूर्वोत्तर भारत के सबसे खूबसूरत पहाड़ो में से एक है जिसे प्रसिद्ध रूप से द ट्विंस के रूप में भी जाना जाता है। जिमिगेला चूली कंचनजंगा के आसपास के क्षेत्र में स्थित है और सिक्किम से जिमिगेला चूली के मनमोहक नजारों को आसानी से देखा जा सकता है। बता दे जिमिगेला चूली पर्वत पर पहली बार बर्ष 1995 में तीन पर्वतारोहियों द्वारा चढ़ाई गई थी, जो एक साल पहले किए गए अपने अभियान में असफल रहे थे। अगर आप भी जिमिगेला चूली पर्वत की ट्रेकिंग करना चाहते है तो हम आपको बता दे जिमिगेला चूली पर्वत की यात्रा में आपको सुन्दरता और रोमांच के साथ साथ खतरों का भी सामना करना पड़ सकता है क्योंकि हिमस्खलन के कारण यहां अनेको मौतों की कई घटनाएं सामने आई हैं। इसीलिए जिमिगेला चूली की यात्रा के दौरान सतर्क रहने की आवश्यकता होती है।

किरत चुली

समुद्र तल से लगभग 24000 फीट की ऊंचाई पर स्थित किरत चुली नार्थ ईस्ट के सबसे सुंदर और सबसे बड़े पहाड़ो में से एक है जिसे टेंट पीक के नाम से भी जाना जाता है। किरत चुली हिमालय के जातीय समूह के बीच धार्मिक महत्व भी रखता है जिसे उनकी सर्वशक्तिमान देवी यूमा सम्मंग का निवास माना जाता है। इसी बजह से इस पर्वत को हिमालय के सबसे पवित्र पहाड़ो में से एक माना जाता है और यह पर्वत भारत के साथ साथ नेपाल के साथ अपनी सीमा साझा करता है।

सिनिओलचु

सिनिओलचु पूर्वोत्तर भारत के सबसे खूबसूरत पहाड़ो में से एक है जो फोटोग्राफर और नेचर प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान माना जाता है। आपको बता दे सिनिओलचु अपनी अविश्वसनीय पर्वत वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है जिसे दुनिया में कहीं और नहीं देखा जा सकता है, और इसे दुनिया में सबसे सुंदर बर्फ पहाड़ के रूप में घोषित किया गया है। सिनिओलचु पर्वत समुद्र तल से लगभग 23000 फीट की ऊंचाई के साथ सिक्किम राज्य में स्थित है। सिनिओलचु भारत की आकर्षक पहाडियों में से एक है जिसकी खूबसूरती देखते ही बनती है और पर्यटकों के साथ साथ बड़ी मात्रा में फोटोग्राफर भी सुंदर जगह के दृश्यों को अपने कैमरे में कैद करने के लिए इस आकर्षक जगह का दौरा करते है।

पुहुन्द्री

पूर्वी हिमालय में 7,128 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पुहुन्द्री भारत के सबसे विशाल और सुंदर पहाड़ो में से एक है जो तीस्ता नदी की उत्पत्ति का प्रतीक भी है। पुहुन्द्री पर्वत पर्यटकों के लिए मंत्रमुग्ध करने वाली सुन्दरता की पेशकश करता है और यह पर्वत भारत और चीन के साथ अपनी सीमा को साझा करता है। इस पर्वत पर पहली बार सन 1911 अलेक्जेंडर मिशेल कैलस द्वारा चढ़ाई की गयी थी।