इन 10 प्रसिद्द मंदिरों के लिए भी जाना जाता हैं भारत का सिलिकॉन वैली बेंगलुरु

बेंगलुरु का नाम आते ही मन में ख्याल आने लगते हैं बड़ी बिल्डिंग, आईटी का हब, बड़ी कंपनियों के ऑफिस, शॉपिंग मॉल, सिनेमा हॉल आदि। आईटी हब के चलते इसे देश का सिलिकॉन वैली भी कहा जाता हैं। बेंगलुरु शहर की भीड़भाड़ और सड़कों पर ट्रेफिक भी इसका एक अलग पहलू हैं जिसमें कई लोग शांति प्रिय जगहों की तलाश करते हैं। ऐसे में आज इस कड़ी में हम आपके लिए बेंगलुरु के कुछ ऐसे मंदिरों की जानकारी लेकर आए हैं जो मन क शांति और सुकून प्रदान करते हैं। ये मंदिर वास्तुकला की सुंदरता और खूबसूरती के नजारे दिखाते हैं। बेंगलुरु में मंदिरों की कोई कमी नहीं है इसलिए खुद को काम से थोडा आराम देते हुए इन मंदिरों में थोड़ा समय बिताकर अध्यात्मिकता से जुड़े। आइये जानते हैं इन मंदिरों के बारे में...

चोककानाथ स्वामी मंदिर

10 वीं शताब्दी सीई में निर्मित, चोककानाथस्वामी मंदिर बैंगलोर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह डोम्लूर में स्थित है और चोल के शासनकाल के दौरान भगवान विष्णु की भक्ति के रूप में बनवाया गया था। यहां आप तमिल में कुछ खूबसूरती से किए गए शिलालेख और स्थानीय नृत्य रूप और अन्य स्थानीय परंपराओं को दर्शाते हुए स्तंभों पर मूर्तियां देख सकते हैं। इसमें शालिग्राम पत्थर से उकेरी गई देवताओं की छवियां भी हैं जो केवल नेपाल में पाई जाती हैं।

वेंकटरमनस्वामी मंदिर

वासवनगुड़ी में कृष्णराजेन्द्र रोड पर स्थित वेंकटरमनस्वामी मंदिर को कोटे वेंकटरमन मंदिर भी कहा जाता है यह मंदिर 1689 में बना था। जो इसे बेंगलुरु का सबसे पुराना मंदिर बनाता है। मंदिर की वास्तुकला पर द्रविड और विजयनगर शैली की छाप दिखती है यह मंदिर उस समय मैसूर के शासक चिक्का देवराजा वोडयार के आदेश पर बनाया गया था। आप मदिंर के मुख्य हॉल में भगवान वेंकटरमन की पीठासीन मूर्ति देख सकते हैं इसके अलावा ब्राह्मा, विष्णु और शिव की सुंदर मूर्तियां भी मंदिर की दिवारों पर लगी हैं। 300 साल से पुराने इस मंदिर में इंसानों और जानवरों की कई दिलचस्प नक्काशी भी देखने को मिलती है। लोग यहां केवल पूजा करने नहीं बल्कि इन खूबसूरत नक्काशियों को देखने भी आते हैं। बैकुंठ एकादशी के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है यह त्यौहार यहां बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

इस्कॉन मंदिर

बेंगलुरु में स्थित इस्कॉन मंदिर दुनिया के सबसे बड़े इस्कॉन मंदिरों में से एक है। यहां पर आपको भगवान कृष्ण और राधाजी की बेहद सुंदर छवि देखने को मिलेगी। इस मंदिर की स्थापना हरे कृष्णा हिल्स में वर्ष 1997 में की गई थी। यह मंदिर बेंगलुरु के प्रमुख उल्लेखनीय स्थलों में से एक है। मंदिर के अलावा, यहां पर भगवान कृष्ण के जीवन के बारे में पाठ, प्रार्थनाओं और मंत्रोच्चार का आयोजन, भक्तों के लिए ठहरने के लिए कमरे, एक संग्रहालय और एक थिएटर भी है।

शिवोहम शिव मंदिर

इस मंदिर की सबसे विशिष्ट विशेषता सफेद संगमरमर से तराशी गई भगवान शिव की 65 फीट लंबी मूर्ति है। बेंगलुरु में ये मंदिर 1995 में बनकर तैयार हुआ था और इसमें 32 फीट ऊंची गणेश मूर्ति और 25 फीट ऊंचा शिव लिंग भी शामिल है। एयरपोर्ट रोड पर स्थित यह शिव मंदिर भारी संख्या में लोगों को आकर्षित करता है। ये मंदिर 24 घंटे घुला रहता है, आप कभी भी इस मंदिर के दर्शन करने के लिए सकते हैं।

बुल टेंपल

बुल टेंपल को डोड्डा बसवाना गुड़ी और नंदी टेंपल के नाम से भी जाना जाता है। यह बेंगलुरु के सबसे पुराने और विशिष्ट मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण 1537 में बेंगलुरु के संस्थापक कैंपे गोड़ा ने करवाया था। यह मंदिर भगवान शिव की सवारी नंदी को समर्पित है और हिंदू समुदाय में इसकी बड़ी मान्यता है। ऐसा माना जा है कि इस मंदिर का निर्माण जंगली बैल को शांत करने के लिए किया गया है जो क्षेत्र में उगने वाली मूंगफली की फसल को खराब कर देता है। मंदिर के अंदर नंदी की 4.5 मीटर ऊंची और 6.5 मीटर लंबी मूर्ति लगी है जो केवल एक ही पत्थर से बनी है। हर साल हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने में मंदिर में प्रसिद्ध ‘कडालेकई पारशी’ (मूंगफली का त्योहार) मनाया जाता है जिसमें हजारो श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं।

कोटे वेंकटरमण स्वामी मंदिर

17 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मैसूर के शासक चिक्का देव राजा द्वारा निर्मित, इस मंदिर में अद्भुत विजयनगर और द्रविड़ शैली की वास्तुकला है। यह टीपू सुल्तान के समर पैलेस के बगल में बसवनगुडी में स्थित है। लोग इस मंदिर में इसके प्रमुख देवता भगवान वेंकटेश्वर की पूजा करने के लिए आते हैं और इसकी खूबसूरत पत्थर की नक्काशी की प्रशंसा जरूर करते हैं।

सोमेश्वर मंदिर

चोल राजवंश द्वारा निर्मित और बाद में विजयनगर साम्राज्य द्वारा पुनर्निर्मित, श्री सोमेश्वर मंदिर बेंगलुरु के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह 1200 वर्ष से अधिक पुराना है और उल्सूर, पूर्वी बेंगलुरु में स्थित है। बेंगलुरु में यह प्रसिद्ध मंदिर राज्य की विरासत और विशेष रूप से स्तंभों पर अपनी अनूठी नक्काशी के कारण एक महत्वपूर्ण वास्तुशिल्प हिस्सा माना जाता है।

बानशंकरी मंदिर

इस मंदिर का निर्माण 1915 में देवी बानशंकरी (अम्मा भी कहा जा है) के परम भक्त सोमना शेट्टी ने करवाया था, बानशंकरी मंदिर बेंगलुरु के प्रमुख मंदिरों में से एक है। मंदिर में लगी अम्मा की प्रतिमा को सोमना शेट्टी खुद बीजापुर जिले के बादामी नामक जगह से लाए थे। इस मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि यहां राहुकाल (प्रत्येक दिन का कुछ समय राहुकाल कहलाता है हर दिन राहुकाल का समय अलग-अलग होता है) के दौरान पूजा की जाती है, हिंदू मान्यता के मुताबिक राहुकाल अशुभ होता है। लेकिन यहां ऐसा माना जाता है कि इस दौरान पूजा करने से जीवन की सभी मुश्किलें खत्म हो जाती हैं। इसके अलावा यहां मंगलवार, शुक्रवार और रविवार को श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती है, ये दिन यहां अम्मा की पूजा के लिए शुभ माने जाते हैं। श्रद्धालु यहां आधे कटे बिना पल्प के नींबू में तेल का दिया जलाकर प्रार्थना करते हैं। हर साल दिसंबर में यहां मेला लगता है जिसे मंदिर की वर्षगांठ के रुप में मनाया जाता है इस दौरान यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती है।

श्री शंखमुख मंदिर

इस मंदिर को भगवान शंखमुख के छः मुखों को शानदार रूप से स्थापित किया गया है। इसके ऊपर क्रिस्टल का एक विशाल गुंबद भी है, जो दिन में बेहद चमकता है, साथ ही रात के समय में भी आप एलईडी की मदद से इसकी चमक देख सकते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर मोर की मूर्तियां स्थापित है, जिन्हें भगवान शनमुगा का मुख्य वाहन माना जाता है। इस मंदिर में आप सूरज की किरण अभिषेक के दौरान जाएं, इस समय इस मंदिर का नजारा देखने लायक होता है।

डोड्डा गणेश मंदिर

बैंगलोर में सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक हैऔर शहर में एक प्रमुख मील का पत्थर भी है। मंदिर का निर्माण केम्पेगौड़ा द्वारा किया गया था, जिन्हें बैंगलोर के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि केम्पेगौड़ा एक बार एक चट्टान पर आया था, जिस पर भगवान गणेश की एक प्रतिमा उकेरी गई थी। वह इसे अपने मूर्तिकारों के पास ले गया और उनसे गणेश की एक विशाल मूर्ति को तराशने के लिए कहा। यह मूर्ति 18 फीट लंबी और 16 फीट चौड़ी है, जो इसे देश की सबसे बड़ी गणेश मूर्तियों में से एक बनाती है। यहां एक और आकर्षण है, प्रतिदिन की जाने वाली मूर्ति पर अलग-अलग सजावट, जैसे मक्खन का आवेदन, जिसे बेने अलंकार के नाम से भी जाना जाता है।