देहरादून जाएं, तो इन 8 जगहों को जरुर देखे

किसी भी पर्यटक के लिए घूमने की खास जगहों की कमी कभी नहीं होती है। दुनिया में तमाम ऐसी जगहें हैं, जहां आप सैर-सपाटा कर सकते हैं। लेकिन हम आपको अपने देश में ही कुछ ऐसी जगहों पर घुमाते हैं, जोकि काफी आकर्षक हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं, देहरादून के वो 8 स्‍पेशल जगहों के बारें में बताने जा रहे है जिन्‍हें देखकर आपका मन कभी नहीं भरेगा। ये ऐसी जगहें है जहां पर पर्यटक दूर-दूर से आकर आनंद उठाते हैं। तो फिर आप कभी भी देहरादून आएं, तो इन खास जगहों को देखना न भूलें

# बुद्धा टेंपल

राजधानी दून की आईएसबीटी (इंटर स्टेट बस टर्मीनल) महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही तिब्बती समुदाय धार्मिक स्थल स्थित है। जिसे बुद्धा मॉनेस्ट्री या बुद्धा गॉर्डन के नाम से जाना जाता है। तिब्बती समुदाय द्वारा मंदिर की स्थापना 1965 ई। में की गई थी। मंदिर का अदभुत दृश्य टूरिस्ट को अपनी ओर अट्रैक्ट करता है। जानकारों की माने तो मंदिर को गोल्डेन कलर देने के लिए पचास कलाकारों को तीन साल का लंबा वक्त लगा।

# गुच्चुपानी या रावर्स केव

दून सिटी के कैंट एरिया से कुछ ही दूरी पर पहाड़ों की बीच बसा एक प्राकृतिक स्पॉट। जहां गर्मियों के मौसम सैंकड़ों की संख्या सैलानी पिकनिक मनाने आते हैं। पहाड़ों की बीच बसे इस गुफा के बीच से गिरता झरनों का पानी सैलानियों को बहुत अट्रैक्ट करता है।

# मालसी डीयर पार्क

देहरादून मसूरी मार्ग पर मालसी डीयर पार्क स्थित है। मालसी डीयर पार्क को मिनी जू के नाम से भी जाना जाता है। पार्क में मौजूद जानवर जैसे हिरण, चीतल, मोर तेंदूआ और भी कई कई ऐसे जानवरों की प्रजातियां हैं जो टूरिस्ट को काफी अट्रैक्ट करती है। पार्क में पिकनिक मनाने के लिए भी काफी अच्छा माहौल और स्पेस है। जिसमें आप विद फैमिली अपनी वेकेशंस को एंज्वॉय कर सकते हैं।

# सहस्त्रधारा

प्रकृति के गोद में बसा सहस्त्रधारा की एक अपनी अलग पहचान है। कोई सैलानी यहां पिकनिक सेलिब्रेट करने तो कोई प्रकृति के नजारों का आनंद लेने जाता है। वैसे सहस्त्रधारा में एक तरफ जहां छोटे-छोटे झरने, पहाड़ के उपर मौजूद मंदिर तो दूसरी तरफ बुद्धा मॉनेस्ट्री टूरिस्ट को खूब अट्रैक्ट करती है। सहस्त्रधारा वैसे तो सल्फर वाटर के लिए फेमस है। कहते हैं सल्फर वाटर में नहाने से स्कीन से रिलेटेड कोई भी प्रॉब्लम हो वो दूर हो जाती है।

# टपकेश्वर मंदिर

टपकेश्वर महादेव मंदिर एक लोकप्रिय गुफा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह देहरादून शहर के बस स्टैंड से 5।5 किमी दूर स्थित एक तमसा नदी के तट पर स्थित है। मंदिर गुफा में एक शिवलिंग है और गुफा की छत से पानी टपकता रहता है, जो सीधे शिवलिंग पर गिरता है। मंदिर के चारों ओर सल्फर वाटर का झरना गिरता है। सल्फर वाटर स्किन से रिलेटेड बीमारी के लिए काफी लाभदायक होता है। हिंदू त्योहार शिवरात्रि के अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं। इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का शुभ विवाह समारोह भी आयोजित किया जाता है।

# राजाजी नेशनल पार्क

राजाजी नेशनल पार्क देहरादून से 23 किमी की दूरी पर स्थित है। यह पार्क 1966 में स्थापित किया गया था। राजाजी पार्क 830 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। अपने शानदार पारिस्थितिकी तंत्र के कारण पार्क लोगों को खासा प्रभावित करता है। राजाजी, मोतीचूर और चिल्ला रेंज से घिरा हुआ है, जिस कारण यहां की प्राकृतिक छटा बरबस ही लोगों को अपनी ओर अट्रैक्ट करती है। 1983 में इन तीनों पार्कों को मिला कर एक कर दिया गया था। जिसे राजाजी नेशनल पार्क का नाम दिया गया। यह पार्क हाथी की आबादी के लिए जाना जाता है। यहां स्तनधारियों की 23 और पक्षियो की 315 प्रजातियां पाई जाती हैं।

# माल देवता

प्रकृति के गोद में बसा माल देवता दृश्य देखते ही बनता है। यहां की प्राकृतिक सौंदर्य सैलानियों का मन मोह लेती है। कहते हैं कि देहरादून आए और माल देवता का विजिट नहीं किया तो आपने बहुत कुछ मिस कर दिया। माल देवता में पहाड़ों से गिरने वाले छोटे-छोटे झरने टूरिस्ट को अट्रैक्ट ही नहीं बल्कि उन्हें वहां वक्त गुजारने पर मजबूर कर देता है।

# गुरु राम राय दरबार साहिब

देहरादून शहर के सेंटर में स्थित दरबार श्री गुरु राम राय जी महाराज महान स्मारक का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। वास्तव में देहरादून शहर का नाम भी इसी गुरु राम राय जी बदौलत ही है। श्री गुरु राम राय जी, सातवीं सिख गुरू हर राय जी के ज्येष्ठ पुत्र, दून (घाटी) में अपना डेरा डाला था। 1676। में डेरा और दून के बाद में देहरादून बन गया। दरबार साहिब की अपनी अलग मान्यता है। यहां साल लगने वाले झंडा जी मेले में हजारों की संख्या संगतें देश व विदेश आती हैं। झंडा जी मेला दून का सबसे बड़ा लगने वाला मेला है। झंडा जी की भी अपनी अलग मान्यता है। झंडा जी पर शनील के के गिलाफ चढ़ाने के लिए श्रद्धालुओं सालों पहले आवेदन करना पड़ता है। तब जाकर 20 या 25 साल बाद किसी श्रद्धालु को झंडा जी पर गिलाफ चढ़ाने का मौका मिलता है।